HomeAdivasi Dailyबांदीपुर टाइगर रिजर्व के अफ़सरों की आदिवासियों का भरोसा जीतने की कोशिश

बांदीपुर टाइगर रिजर्व के अफ़सरों की आदिवासियों का भरोसा जीतने की कोशिश

वन विभाग के द्वारा बांदीपुर के 25 आदिवासी नेताओं के लिए बैठक के साथ ही जगंल सफारी का भी आयोजन किया. अगर दोस्ती की इस पहल को प्रभावी बनाना है तो फिर वन विभाग को आदिवासियों के साथ रिश्तों के साथ उनके अधिकारों की भी कद्र करनी होगी.

कुछ समय पहले कर्नाटक में चामराजनगर ज़िले में स्थित बांदीपुर टाइगर रिजर्व (Bandipur Tiger Reserve) में वन सीमांत गांवों में रहने वाले आदिवासी समुदाय के सदस्यों के लिए मुफ्त एम्बुलेंस सेवा शुरू की गई थी.

इस सेवा के शुरु करने के बाद अब वन विभाग के संरक्षक और बांदीपुर टाइगर परियोजना निदेशक पी रमेश कुमार के नेतृत्व में आयोजित सलाहकार बैठक और चर्चा में भाग लेने के लिए बांदीपुर टाइगर रिजर्व के विभिन्न आदिवासी समुदायों के लगभग 25 नेता शामिल हुए.

बांदीपुर टाइगर रिजर्व के आसपास लगभग 53 आदिवासी बस्तियां है. इन 53 बस्तियों में विभिन्न समुदाय के आदिवासी जैसे जेनु कुरुबा (Jenu Kuruba), बेट्टा कुरुबा (Betta Kuruba), सोलिगा (Soliga), कडु कुरुबा (Kadu Kuruba) और अन्य आदिवासी शामिल है.

ये सारे आदिवासी बाघों और जंगली जानवरों की रक्षा करने के साथ-साथ जंगलो की संरक्षण में भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं.

वन विभाव ने आदिवासी नेताओं के साथ ही अन्य लोगों को दोपहर के भोजन का आयोजन किया.

विभाग के द्वारा आमंत्रित किए गए आदिवासी नेताओं को जंगल सफारी पर भी ले जाया गया था.

बांदीपुर टाइगर रिजर्व के निदेशक पी रमेश कुमार ने एक इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने आदिवासी विकास के लिए लगभग 125 करोड़ रुपयों की धनराशी रखी हुई है.

इसके साथ ही इसमें आदिवासी महिलाओं के द्वारा बनाई गई लैंटाना शिल्प, एलपीजी गैस कनेक्शन, सिलेंडर वितरण के साथ ही कृषि विकास को प्रायोजित करना वाली चीजें जैसे बीज, खाद, मधुमक्खी के शहद बॉक्स वितरण आदि शामिल है.

इसके अलावा आदिवासी छात्रों के लिए बांदीपुर ग्रीन छात्रवृत्ति (Bandipur Green Scholarship), 24×7 एम्बुलेंस सेवाएं, परिवार को वित्तीय सहायता देना, बाघ या अन्य जानवर के हमले में अपने परिवार के किसी सदस्य को खोना, आदिवासी बस्तियों की मरम्मत करना, रिवर्स ऑस्मोसिस पेयजल उपलब्ध कराना, जनजातियों को ड्राइविंग, सिलाई का प्रशिक्षण देना और प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने के लिए प्रशिक्षित प्रदान करना आदि सुविधाएं शामिल है.

इस बैठक में भाग लेने वाली सोलिग समुदाय की प्रतिनिधि रत्नम्मा ने कहा कि आदिवासियों के लाभ के लिए दो एम्बुलेंस सौंपी दिए गए है, जो चिकित्सा आपात स्थिति के दौरान आदिवासियों के लिए बहुत मददगार साबित होंगे.

उन्होंने बताया कि जब 108 एम्बुलेंस के घटनास्थल पर पहुंचने में देरी होती है तो आदिवासी को निजी वाहनों पर निर्भर रहना पड़ता है.

एक एम्बुलेंस मंगला में और दूसरा वाहन मद्दूर क्लस्टर क्षेत्र में तैनात है, जो कई बस्तियों को कवर करता है.

आदिवासियों ने वन विभाग से भी रास्ता साफ करने का अनुरोध किया था. सड़कों पर लैंटाना की झाड़ियां, किसी भी मानव-पशु संघर्ष को रोकने के लिए, मुख्य वन क्षेत्र में बस्तियों में उचित सड़कें और पीने का पानी उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है.

इसके साथ ही रत्नम्मा ने बताया कि बांदीपुर के करेमला हांडी (Karemala Haadi) में एक आंगनवाड़ी केंद्र (Anganwadi Centre) का भी उद्घाटन किया गया है.
टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट के अधिकारियों का यह पहल बेशक काबिले तारीफ़ है. क्योंकि अक्सर वन विभाग और आदिवासियों के बीच टकराव की स्थिति बनती रहती है.

लेकिन इस पहले के साथ साथ बांदीपुर रिजर्व में रहने वाले आदिवासियों आवंटित धन का सही उपयोग भी ज़रूरी है. इस जंगल में रहने वाले ज़्यादातर आदिवासी पीवीटीजी की श्रेणी मे आते हैं.

यानि उनकी आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं है. इसके अलावा टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट होने की वजह से स्थानीय प्रशासन इन आदिवासियों की बस्तियों में विकास के मामूली काम भी नहीं करा पाते हैं. क्योंकि उसके लिए वन विभाग की अनुमित की ज़रूरत होती है.

यहां के ज़्यादतर आदिवासी वन उपज और ख़ासतौर से शहद पर निर्भर रहते हैं. लेकिन कई बार वन विभाग के कर्मचारी आदिवासियों को परेशान भी करते हैं.

इसलिए दोस्ती की इस पहल को अगर प्रभावी बनाना है तो फिर वन विभाग को आदिवासियों के साथ रिश्तों के साथ उनके अधिकारों की भी कद्र करनी होगी.

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