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मणिपुर हिंसा पर CJI ने कहा- हाई कोर्ट के पास अनुसूचित जनजाति सूची में बदलाव का निर्देश देने की शक्ति नहीं है

जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपनी मौखिक टिप्पणी में कहा कि होई कोर्ट के पास अनुसूचित जाति की लिस्ट में संशोधन का अधिकार नहीं है. ये अधिकार राष्ट्रपति के पास है कि वो किसे अनुसूचित जाति या जनजाति का दर्जा दे.

मैतेई और कुकी समुदायों के हिंसक संघर्ष के बीच जहां एक तरफ मणिपुर और केंद्र सरकार दावा कर रही है कि राज्य सामान्य स्थिति में लौट रहा है. वहीं दूसरी ओर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि बहुसंख्यक मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने वाले अदालती आदेश पर सभी पक्षों के साथ मिल कर बात की जाएगी. उन्होंने कहा कि किसी को डरने की जरूरत नहीं है.

इस सबके बीच सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में मणिपुर हिंसा मामले पर सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मणिपुर हाई कोर्ट के पास राज्य सरकार को अनुसूचित जनजाति सूची के लिए जनजाति की सिफारिश करने का निर्देश देने का अधिकार नहीं है.

भारत के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मणिपुर हाई कोर्ट को इस संबंध में 23 साल पुराने संवैधानिक पीठ का फैसला क्यों नहीं दिखाया गया. इस फैसले में कहा गया है कि कोई भी अदालत या सरकार को अनुसूचित जनजाति की लिस्ट में कुछ जोड़ने, घटाने या उसे संशोधित करने का अधिकार नहीं है.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपनी मौखिक टिप्पणी में कहा कि होई कोर्ट के पास अनुसूचित जाति की लिस्ट में संशोधन का अधिकार नहीं है. ये अधिकार राष्ट्रपति के पास है कि वो किसे अनुसूचित जाति या जनजाति का दर्जा दे.

मणिपुर हाई कोर्ट का निर्देश

दरअसल, मणिपुर हाई कोर्ट ने 27 मार्च को राज्य सरकार को ये निर्देश दिया था कि वो मैतेई को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के लिए अपनी सिफारिश दे. कोर्ट ने राज्य सरकार को चार हफ्ते में इस प्रस्ताव पर विचार कर लेने को कहा था. हालांकि अंतिम फैसला केंद्र का होगा.

लेकिन मणिपुर की मौजूदा 34 अनुसूचित जनजातियों ने कोर्ट के इस प्रस्ताव का विरोध किया. राज्य में इन जनजातियों की 41 फीसदी आबादी है और ये पहाड़ी इलाकों में रहते हैं. कोर्ट के इस निर्देश के बाद तीन मई को चुराचांदपुर में एक ट्राइबल ‘सॉलिडेरिटी रैली’ निकाली गई.

इसके बाद राज्य में हिंसा भड़क उठी. मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के मुताबिक़ इस हिंसा में 60 लोग मारे गए हैं. सिंह ने बताया कि 60 ‘बेकसूर’ लोगों की मौत हुई. 231 लोग घायल हुए हैं और 1700 घरों को जला दिया गया है.

उन्होंने बताया कि हिंसा भड़काने वाले लोगों का पता करने के लिए एक हाई लेवल कमिटी बनाई जाएगी. साथ ही अपना कर्तव्य निभाने में नाकाम रहे अधिकारियों की भी पहचान की जाएगी.

दरअसल, मणिपुर में मैतई समुदाय बहुसंख्यक है. राज्य की आबादी का करीब 65 फीसदी. इस विरोध की सबसे बड़ी वजह बताई जाती है राज्य की आबादी और राजनीति दोनों में मैतेई का प्रभुत्व है. मैतेई समुदाय को ओबीसी और अनुसूचित जाति यानी एससी कैटेगरी में सब कैटेगराइज भी किया गया है और इसके तहत आने वाले लोगों को कैटेगरी के हिसाब से रिजर्वेशन भी मिलता है.

कुकी और नागा समुदायों के पास आजादी के बाद से ही आदिवासी का दर्जा है. अब मैतेई समुदाय भी इस दर्जे की मांग कर रहा है जिसका विरोध कुकी और नागा समुदाय के लोग कर रहे हैं. कुकी और नागा समुदाय का कहना है कि मैतेई समुदाय तो बहुसंख्यक समुदाय है उसे ये दर्जा कैसे दिया जा सकता है.

कोर्ट के फैसले के विरोध में ‘ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर’ ने 3 मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ का आयोजित किया था. इसी दौरान चुरचांदपुर जिले के तोरबंग क्षेत्र में हिंसा भड़क गई थी. इसके बाद हिंसा की आग बाकी जिलों में भी फैली. 4 मई को जगह-जगह पर गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया.  पांच मई को जब हालात खराब हुए तो वहां पर सेना पहुंची.

मणिपुर के हालात

फिलहाल राज्य में हालात सामान्य करने की कोशिश हो रही है. आर्मी और असम राइफल्स ने अब तक अपने घरों से विस्थापित हुए 23 हजार लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया है.

इनमें 9500 हजार लोग मैतेई समुदाय के हैं और 10 हजार लोग कुकी समुदाय के. इन्हें राज्य के अलग-अलग मिलिट्री कैंपों में रखा गया है. दूसरे राज्यों के भी कुछ हजार लोगों को राज्य से बाहर ले जाया गया है. हिंसा भड़कने के बाद राज्य में भारी संख्या में सुरक्षाबल अब भी तैनात हैं.

वहीं केंद्र और मणिपुर सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अब मणिपुर में हालात सुधर रहे हैं. उनके मुताबिक, पिछले दो दिनों में राज्य से किसी दुर्घटना की सूचना नहीं मिली है और इसी के मद्देनजर कर्फ़्यू में भी ढील दी गई है.

किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की प्रक्रिया क्या है

किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने की प्रक्रिया काफी लंबी और पेचीदा है. साल 1999 में इस संबंध में कुछ हद तक प्रक्रिया को स्थापित करने का प्रयास किया गया था.

इसके अनुसार किसी राज्य में किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के लिए सबसे पहली शर्त है कि राज्य सरकार उस समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने की सिफ़ारिश का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजे.

राज्य सरकार का प्रस्ताव जनजातीय कार्य मंत्रालय में पहुंचे के बाद अगर मंत्रालय को लगता है कि प्रस्ताव में उचित सिफ़ारिश की गई है तो फिर इस प्रस्ताव को रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया को भेजा जाता है.

यहां से प्रस्ताव अगर अनुमोदित हो जाता है तो फिर यह प्रस्ताव राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग भेजा जाता है.

अनुसूचित जनजाति आयोग भी अगर इस प्रस्ताव को सहमति दे देता है तो फिर वहां से किसी समुदायो के अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का यह प्रस्ताव कैबिनेट को भेजा जाता है.

अंत में इस प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी के बाद संसद में लाया जाता है.

संसद के दोनों सदनों से बिल पास होने के बाद ही राष्ट्रपति की तरफ से किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की अधिसूचना जारी की जाती है.

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