छत्तीसगढ़ (chattisgarh) के अबूझमाड़ (Abhujmad) को रहस्यमय क्षेत्र कहा जाता है. ये बात इसके नाम से ही स्पष्ट होती है. ‘अबूझमाड़ ’ दो शब्दों का मेल जोल है. अबूझ यानी जिसे कोई बूझा न सका और माड़ यानी घहरी पहाड़ी या घाटियां.
ये पूरा क्षेत्र बड़ी बड़ी पहाड़ियों और जंगलों से ढका हुआ है. यहां रहना खुद में ही बहुत बड़ी चुनौती है. पिछले कई सौ सालों से इस इलाके के भीतर 237 गांव बसे हैं लेकिन इन गांवों में रहने वाले किसी भी आदिवासी के पास उसकी ज़मीन या मकान का कोई कागज़ नहीं है. सरकार के पास भी इनकी जानकारी नहीं है.
आज़ादी के बाद भी यह इलाका अबूझा रह गया, जहां धीरे-धीरे माओवादियों ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया. आज की तारीख में इसे माओवादियों का गढ़ कहा जाता है. बल्कि यह माना जाता है कि अब देश भर में अबूझमाड़ ही माओवादियों का अभेद्य किला बचा है.
यह क्षेत्र चुनाव के दौरान चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती पेश करता है. विधानसभा चुनाव 2023 (Abhujmad assembly election 2023) में भी हालात बहुत बदले नहीं हैं.
छत्तीसगढ़ के बस्तर में 12 विधानसभा सीटें है. जिसमें से एक सीट नायरणपुर ज़िले (Naryanpur District) की अबूझमाड़ भी है. 2018 के विधानसभा चुनाव (2018 assembly election) में इस सीट पर कांग्रेस ने 44.34 प्रतिशत वोट पा कर जीत हासिल की थी. वहीं बीजेपी के खाते में 42.34 प्रतिशत वोट आए.

पिछले चुनावों के आंकड़ो के मुताबिक यहां मतदान देने वाले लोग बेहद कम है. पिछले बार हुए चुनाव में अबूझमाड़ में बस 32.40 प्रतिशत लोगों ने ही वोट किए थे.
यह पूरे ज़िले के वोटिंग के आंकड़ो का आधा भी नहीं है. वहीं इस क्षेत्र का ज़िला नारायणपुर में 74.88 प्रतिशत लोगों ने वोट दिए थे और पूरे राज्य में 76.45 प्रतिशत लोगों ने वोट दिए गए.

ये आंकड़े ही स्पष्ट रूप से बता रहे है. कि अबूझमाड़ में वोटिंग करवाना कितना मुश्किल है. चुनाव के बारे में मिली जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ में 12,000 लाइव वेबकास्टिंग की सुविधा दी जाएगी. वहीं पूरे बस्तर में 2000 पोलिंग बूथ (polling booth) के लिए लाइव वेबकासटिंग (live webcasting for election) उपलब्ध करावाएं जाएंगे.
लेकिन इन 2000 में से कोई भी वेबकास्टिंग की सुविधा अबूझमाड़ में नहीं दी जाएगी. क्योंकि इस क्षेत्र के 70 प्रतिशत इलाकों में मोबाइल नेटवर्क की भी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है. हालांकि कुछ वक्त पहले ही यहां दो मोबाइल टावर लगाए गए थे.
चुनाव के बारे में मिली जानकारी के मुताबिक वोटिंग के लिए एक बूथ को छोड़कर सभी बूथों में आधिकारियों को हेलिकॉप्टर से भेजा जाएगा. इस पूरे क्षेत्र में 30 मतदान केंद्र है. इनमें से तीन चौथाई पर आम तौर पर मतदान बेहद कम होता है.
इतनी कम मात्रा में मतदान होने की कई वज़ह है. जिसमें से मुख्य वज़ह ये है की ये पूरा क्षेत्र माओवाद से प्रभावित है. हाल ही में एक खबर सामने आई थी. जिसमें ये बताया गया की अभी तक 5 बीजेपी नेताओं को मओवादियों द्वारा मारा जा चुका है.
वहीं इस साल फरवरी के महीने में मओवादियों ने भाजपा नारायणपुर उपप्रमुख सागर साहू को भी मार दिया था. ज़िले के बीजेपी समन्वयक रतन दुबे ने कहा, “ मैने पार्टी के वर्कर्स को कहा भी है की अबूझमाड़ में पोलिंग के लिए जाने की कोई जरूरत नहीं है और कांग्रेस के लोगों को भी नहीं जाना चाहिए. क्योंकि ये पूरा ही क्षेत्र माओवादियों से प्रभावित है.
इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा की ना जाने इन इलाकों में रहने वाले कैसे वोट देंगे. क्योंकि अगर नेता ही यहां सुरक्षित नहीं तो आम जनता कैसे सुरक्षित रह सकती है. वहीं कई लोगों को सरकार की तरफ से सुरक्षा के लिए भी फोन आए है.
समस्याओं पर बात करने से पहले हम अबूझमाड़ में रहने वाले निवासी यानी अबूझमाड़ियों के बारे में जान लेते है.
अबूइमाड़ की भौगोलिक स्थिति

अबूझमाड़ छत्तीसगढ़ के नारायणपुर ज़िले में पड़ता है. ये राज्य के दंतेवाड़ा और बीजापुर ज़िले से घिरा हुआ है और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के साथ अपनी सीमा बांटता है. वहीं ये पूरा क्षेत्र बड़ी बड़ी पहाड़ियों और जंगलो से घिरा हुआ है. जंगलों के बीच में बसे हुए इस क्षेत्र के लोग काफी मुश्किलों के साथ जीवन व्यापन कर रहे हैं.

मुख्यधारा से भी इनका कोई संपर्क नहीं. शायद कोई मकान ऐसा होगा जो पक्की ईटों और सीमेंट से बना हुआ हो. ज्यादातर यहां लकड़ी से ही बने हुए मकान है. जो दिखने में पक्के मकान नहीं लगते. कोई भी प्राकृतिक आपदा से ये टूट भी सकते है.
इन मकानों में शौचालय जैसी कोई सुविधा तक मौजूद नहीं है. इसलिए अबूझमाड़िया शौच के लिए अक्सर जंगल में जाया करते है. जो इनके स्वास्थ्य के लिए भी एक चिंता का विषय है.

ये सभी घर अलग अलग पारों या टोलो (ग्राम) में बसे हुए है. जो बेहद दूर दूर स्थित है. इस पूरे क्षेत्र में 200 गाँव स्थित है. जहां लगभग 40000 के करीब लोग रहते हैं. लेकिन ये सिर्फ एक अनुमान ही है.
जीपीएस और गूगल मैप के इस दौर में भी अबूझमाड़ में कुल कितने गांवों में किसके पास कितनी ज़मीन है, चारागाह या सड़कें हैं या नहीं या जीवन के दूसरी ज़रूरी चीजों की उपलब्धता कैसी है, इसका कोई रिकार्ड कहीं उपलब्ध नहीं है. ये गांव कहां हैं या इनकी सरहद कहां है, यह भी पता नहीं है.
इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि बस्तर के चार हज़ार वर्ग किलोमीटर इलाके में फैले हुए नारायणपुर ज़िले के अबूझमाड़ में पहली बार अकबर के ज़माने में राजस्व के दस्तावेज़ एकत्र करने की कोशिश की गई थी. लेकिन घने जंगलों वाले इस इलाके में सर्वे का काम अधूरा रह गया.
ब्रिटिश सरकार ने 1909 में लगान वसूली के लिये इलाके का सर्वेक्षण शुरू किया लेकिन वह भी अधूरा रह गया. हालत ये हुई कि अबूझमाड़ के इलाकों में बसने वाली आदिवासी आबादी आदिम हालत में जीवन जीती रही. 80 के दशक में माओवादियों ने इस इलाके में प्रवेश किया और फिर इसे अपना आधार इलाका बनाना शुरू किया.
यही वो दौर था, जब अबुझमाड़ के इलाके में प्रवेश के लिये कलेक्टर से अनुमति लेने का नियम बना दिया गया. प्रवेश के इस प्रतिबंध को कई सालों बाद 2009 में ख़त्म किया गया.
अबूझमाड़ियों की शिक्षा में रूकावट

पिछले महीने ही माओवादी प्रभावित इलाकों में स्कूल को फिर से खोला गया है. इन इलाकों में या तो स्कूल की बिल्डिंग मौजूद नहीं है या फिर इसे नकसलवादियों द्वारा तोड़ा जा चुका है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक माओवादी प्रभाव के कारण 2013-14 से ही कोढेर और हिरांगाई इलाके में सकूलों को बंद किया है और 2018 में मतावंड और हाथीबेड़ा में स्कूल बंद है.
इन स्कूलों को अब दोबारा खोला जा रहा है. स्कूल के अलावा शिक्षक भी बेहद कम है.
इन्हीं सब कारणों की वज़ह से इस पूरे क्षेत्र के सक्षारता दर 29.88 प्रतिशत ही रहे गया है. शिक्षा के अलावा यहां के बच्चों में कुपोषण की समस्या भी देखने को मिलती है. जो इस क्षेत्र की एक बड़ी समस्या भी है.
मुख्यधारा से संपर्क ना होने के कारण इनके बच्चों का इलाज करना भी असंभव सा हो जाता है. सड़के और साफ पानी जैसे मूलभूत सुविधा भी उपलब्ध नहीं है. इन्हीं सब समस्याओं से अनुमान लगाया जा सकता है की अबूझमाड़िया किस तरीके जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
अबूझमाड़ियों का इतिहास और संस्कृति

अबूझमाड़ में रहने वाले लोगों को गोंड आदिवासियों का ही उपसमूह माना जाता है. यह माना जाता है कि यहां रहने वाले आदिवासी समुदाय माड़िया आदिवासी का भाग है. माड़ियाओं को तीन भागों में बांटा गया है.
· अबूझमाड़िया
· कुवाकोंडा (कम माड़िया)
· तेलंगे

मुख्यधारा से कोई संपर्क ना होने के कारण यहां के लोग अपनी संस्कृति को जिंदा रखे हुए है. और सभी लोग उत्सवों पर नाच गाना भी करते है. इस नाच गाना में वे लोक गीत गाते है और वाद्य यंत्र जैसे ढोल, मांदर, नगाड़ा, बासुरी आदि बाजाते हैं.

यहां की महिलाओं को सजने संवरने का बेहद शोक है. सजने के लिए ये कोई शिंगार नहीं करती बल्कि अपने सर के दोनों तरफ फूल लगाती है. जो इन महिलाओं की खास पहचान बन गया है.
वहीं अपूझमाड़िया नाच गाना मुख्य रूप से अपने त्यौहारों और उत्सवों में ही करते हैं.

वैसे तो आदिवासी समाज में कई त्यौहार मनाएं जाते हैं. लेकिन इनमें से मुख्य त्यौहार है:- विजा कोड़तांग (हरियाली), जोन्ना कोड़तांग (मक्का खाने का त्यौहार), वंजा कोड़तांग (नवाखाई), पुन कोहला (नया कोसरा खाने का पर्व), कंकसाड़ जन्ना (गोत्रदेवी की पूजा पर्व) हैं.
रोज़गार और खान-पान

बाकी आदिवासियों के तरह ये भी अपने जीवन व्यापन के लिए मुख्य रूप से झूम खेती करते है. जिसकी वज़ह से ये एक जगह से दूसरी जगह स्थान बदलते रहते हैं. इसके अलावा यहां पेंदा कृषि और दिप्पा कृषि भी की जाती है. खेती के अलावा यहां रोजगार का कोई और विकल्प नहीं है.
ये ज्यादातर कोदो, कुटकी, धान, कोसरा, मुंग, उड़द आदि की खेती करते है. वहीं आवला, आम, इमली, जामुन, कोसा, शहद, चार, फुलबाहरी, महुआ चार, साल बीज आदि का संग्रहण बाजार में पैसे के लिए बेचते है.


छत्तीसगढ़ में विकास नहीं हो पाने का दोष अक्सर माओवादी हिंसा को दे दिया जाता है. वहीं एक तर्क यह भी दिया जाता रहा है कि विकास नहीं होने की वजह से ही अबूझमाड़ में माओवाद पनपा है. इन दोनों तर्कों में से ना जाने कौन सा तर्क सही है…लेकिन एक बाद दोनों ही तर्कों में मौजूद है कि विकास अबूझमाड़ तक नहीं पहुंचता है.