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तमिलनाडु: अन्नामलाई टाइगर रिजर्व के आदिवासी दशकों से बिना बिजली के रहने को मजबूर

प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि वन विभाग उन्हें यह कहकर इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास से वंचित कर रहा है कि उनकी बस्तियां टाइगर रिजर्व के अंतर्गत आती हैं. उन्होंने कहा कि वन विभाग की देखरेख में आने वाले पर्यटक रिसॉर्ट में बिजली है लेकिन हमें बिजली की सुविधा से वंचित रखा गया है.

अन्नामलाई टाइगर रिजर्व (Anamalai Tiger Reserve) में आदिवासी बस्तियों के 100 से अधिक निवासियों ने रविवार, 9 अप्रैल को तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले के टॉप स्लिप में उलैंडी में फॉरेस्ट रेंज ऑफिस के सामने विरोध प्रदर्शन किया.

इन आदिवासियों का प्रदर्शन बिजली की मांग के लिए था. वे अपने गांवों के लिए लंबे समय से बिजली की मांग कर रहे हैं.

आदिवासियों ने सरकारी योजनाओं के तहत मिले टीवी, मिक्सी और ग्राइंडर को माला पहनाई. दरअसल आदिवासी यही बताना चाहते हैं कि जब बिजली ही नहीं हैं तो भला इन उपकरणों का क्या इस्तेमाल है.

अन्नामलाई टाइगर रिजर्व में कम से कम छह आदिवासी समुदायों रहते हैं. जिसमें कादर (Kadar), मालासर (Malasar), माला मालासर (Mala Malasar), मुधुवर (Mudhuvar), एरावलर (Eravalar) और पुलैयार (Pulaiyar) समुदाय शामिल है.

दशकों से उनकी कई बस्तियों में बिजली, सड़क, पर्याप्त आवास और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं. यहाँ की 18 आदिवासी बस्तियों में से 15 में अभी भी बिजली नहीं है.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और तमिलनाडु ट्राइबल पीपल्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित इस विरोध प्रदर्शन में नागरोथु और कूमाट्टी बस्तियों के माला मालासर, कोझिकमुथी के मालासर और एरुमापराई के कादर समुदाय ने भाग लिया.

कोझिकमुथि विशेष रूप से हाल ही में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन द्वारा इस बस्ती से महावत और कावड़ियों (सहायकों) के लिए 1 लाख रुपये का इनाम और आवास इकाइयों की घोषणा के बाद चर्चा में था.

यह द एलिफेंट व्हिस्परर्स द्वारा पिछले महीने सर्वश्रेष्ठ शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री के लिए ऑस्कर जीतने के बाद की बात है. 39 मिनट की यह फिल्म कहानी बताती है कि कैसे एक आदिवासी दंपति बोमन और बेली एक अनाथ हाथी के बच्चे की देखभाल करते हैं. कोझिकमुथि की जनजातियां बंदी और अनाथ जंगली हाथियों की देखभाल करती हैं.

प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि वन विभाग उन्हें यह कहकर इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास से वंचित कर रहा है कि उनकी बस्तियां टाइगर रिजर्व के अंतर्गत आती हैं. प्रदर्शनकारियों ने कहा, “वन विभाग की देखरेख में आने वाले पर्यटक रिसॉर्ट में बिजली है लेकिन हमें बिजली की सुविधा से वंचित रखा गया है.”

प्रदर्शनकारियों ने 10 साल से अधिक समय से वन विभाग के साथ काम कर रहे आदिवासी लोगों के लिए स्थायी नौकरी के आदेश और इको डेवलपमेंट कमेटी (Eco Development Committee) की दुकानों में काम करने वालों के लिए 5,000 रुपये से 15,000 रुपये तक वेतन वृद्धि की भी मांग की है.

नगरोथु 1 सरकारपथी पावर प्लांट के काफी करीब है फिर भी वन विभाग ने एक ही कारण का हवाला देते हुए बिजली देने से मना कर दिया है कि बस्ती एक टाइगर रिजर्व के अंदर है.

कोझिकमुथि हाथी शिविर में वन कार्यालयों में बिजली है लेकिन बस्ती के निवासियों के लिए बिजली नहीं है.

नगरोथु 2 और कूमाटी दुर्गम क्षेत्रों में स्थित हैं और यहां बिजली कनेक्शन के लिए केंद्र सरकार से मंजूरी की आवश्यकता है.

एरुमापरई के निवासी 1985 से ही अपने गांव के लिए बिजली की मांग कर रहे हैं, जब सरकार ने उनके लिए आठ घरों का निर्माण किया था. पहले ये झोपड़ियों में रहा करते थे.  

यहाँ के रहने वालों ने बताया कि वन्य जीव अभ्यारण्य से टाइगर रिजर्व में संरक्षित वन की स्थिति बदलने से पहले अन्नामलाई टाइगर रिजर्व के कई आदिवासी गांवों में बिजली कनेक्शन था.

दरअसल इन इलाक़ों में लगातार बारिश होती है. इसलिए यहाँ पर सौर पैनलों (Solar Panel) भी बहुत उपयोगी नहीं हैं.

रिज़र्व फ़ॉरेस्ट में रहने वाले आदिवासियों की यह कहानी नई नहीं है. अक्सर इन जंगलों के गाँवों में बसे आदिवासी परिवारों को मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित रखा जाता है.

ऐसा भी बताया जाता है कि वन विभाग आदिवासियों गाँवों को इन जंगलों से बाहर निकालने की रणनीति के तहत भी उन गाँवों तक बिजली या सड़क नहीं पहुँचने देता है.

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