तेलंगाना के आदिवासी इलाक़ों में यह त्यौहार और उत्सव का समय है. इस समय आदिवासी इलाक़ों में कई दिन लगातार उत्सव होता है. इसी सिलसिले में आदिलाबाद ज़िले में खामदेव जात्रा नरनूर मंडल में शुरू हुई है.
इस मेले में अपने आदिवासी समुदाय की परंपरा को ज़िंदा रखते हुए एक आदिवासी महिला ने ढाई किलो तिल का तेल पी लिया. इस महिला की उम्र 62 साल बताई गई है.
पौष माह की पूर्णिमा के दिन यह रिवाज निभाया जाता है. महाराष्ट्र के चंद्रपुर की रहने वाली मेश्रम नगुबाई ने तिल का तेल पी कर इस सालाना उत्सव की शुरुआत की. यहाँ की मंदिर कमेटी ने बाद में इसके लिए उनका सम्मान किया.
यहाँ की परंपरा के अनुसार तोडासम गोत्र के आदिवासी खामदेव को अपने परिवार के देवता के तौर पर पूजते आए हैं. इस गोत्र के आदिवासी लोगों की परंपरा के अनुसार परिवार में जन्मी किसी महिला को तिल का तेल पी कर सभी परिवारों के सुख और शांति की कामना करनी होती है.
यह माना जाता है कि खामदेव की आराधना और इस परंपरा को निभाने से अच्छी फ़सल मिलती है. इसके अलावा गाँव के सभी परिवार बीमारियों से भी बचे रहते हैं.
यह बताया जाता है कि यह परंपरा बहुत पुरानी नहीं है. साल 1961 में यह परंपरा शुरू हुई है. उसके बाद अभी तक कम से कम 20 महिलाओं ने इस परंपरा को निभाया है.
इस परंपरा के तहत एक महिला को तेल पीने की परंपरा कम से कम तीन साल तक निभानी ही पड़ती है. अब इस परंपरा के तहत मेश्रम नगुबाई को यह परंपरा अगले तीन साल तक निभानी पड़ेगी.
आमतौर पर आदिवासी समुदायों में अपने पुरखों पर काफ़ी आस्था होती है. साल के अलग अलग समय उनके समुदाय के पुजारी पुरखों को अपने शरीर में प्रवेश कराने का दावा करते हैं.
उस दौरान वे जो भी कहते हैं, उसे देवता या पुरखों का आदेश माना जाता है. इस तरह की परंपराएँ अक्सर पुजारी के कहने पर ही शुरू हो जाती हैं.