HomeAdivasi Dailyसाल 2022 में भी आदिवासियों पर ज़ुल्म कम नहीं हुए हैं

साल 2022 में भी आदिवासियों पर ज़ुल्म कम नहीं हुए हैं

साल 2022 में आज़ादी के 75 साल पूरे होने पर आदिवासियों की चर्चा भी हो रही है. आज़ादी की लड़ाई में योगदान के लिए आदिवासी नायकों को सम्मान दिये जाने का दावा किया जा रहा है. लेकिन आदिवासियों के प्रति पूर्वाग्रहों या अपराध में कोई कमी नहीं देखी गई है.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों से पता चला था कि साल 2021 में उसके पहले साल यानि 2020 की तुलना में आदिवासियों और दलितों पर अत्याचार के मामले बढ़े थे.

अगर आदिवासियों की बात करें तो इस रिपोर्ट में पता चला था आदिवासियों के ख़िलाफ़ अत्याचार ज़्यादा संख्या में बढ़े थे. 2020 कि तुलना में  2021 में आदिवासियों के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों में कम से कम 6.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी.

साल 2022 में आज़ादी के 75 साल पूरे होने का जश्न शुरू हुआ. इसे सरकार ने आज़ादी का अमृत महोत्सव नाम दिया. इस उत्सव में चल रहे कार्यक्रमों के दौरान देश के आदिवासियों पर लगातार चर्चा की जा रही है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आदिवासियों से जुड़े कई बड़े कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है. इसके अलावा बिरसा मुंडा के जन्मदिन को जनजातीय गौरव दिवस घोषित किया गया है. 

साल 2022 में आदिवासियों के ख़िलाफ़ अत्याचार के मामले में कमी आई होगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के

साल 2022 के आँकड़े अभी तक सामने नहीं आए हैं. लेकिन 2022 में सिर्फ़ मीडिया में रिपोर्ट किये गए मामलों को देखें तो यह लगता नहीं है कि आदिवासियों पर अत्याचार के मामले कम हुए हैं. 

मीडिया में रिपोर्ट हुए आदिवासियों पर अत्याचार के कुछ मामले – 

मध्यप्रदेश में गाय के नाम पर दो आदिवासियों की हत्या

मई 2022 में मध्य प्रदेश के सिवनी ज़िले में दो आदिवासियों को पीट पीट कर मार डाला गया. इन आदिवासियों को इस लिए मारा गया क्योंकि कुछ लोगों को लगता है कि इन आदिवासियों ने गाय को मारा है. 

आदिवासियों की हत्या के इस मामले में बजरंग दल के लोगों का नाम सामने आया था. इस अपराध के लिए पुलिस ने कुल 20 लोगों को गिरफ्तार किया था.

धर्मांतरण के नाम पर हमले

साल 2022 के आख़िरी दो महीनों यानि नवंबर और दिसंबर में छत्तीसगढ़ के नारायणपुर और कोंडागांव में ईसाई बन चुके आदिवासियों पर हमले की ख़बरें आईं. 

9 दिसंबर से 18 दिसंबर तक बस्तर के कम से कम 18 गाँवों में आदिवासी परिवारों के साथ हिंसा की गई. यह सिलसिला जनवरी महीने तक चलता रहा है. छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में फ़िलहाल शांति क़ायम है. लेकिन तनाव अभी ख़त्म नहीं हुआ है. 

यहाँ कई आदिवासी परिवार अभी भी अपने घरों को नहीं लौट पाए हैं. यहाँ पर धर्मांतरण के नाम पर हिंसा के लिए बीजेपी और उससे जुड़े संगठनों को ज़िम्मेदार बताया जा रहा है.

ट्यूबवेल से पानी भरने पर आदिवासी की हत्या

यह घटना नवंबर महीने में राजस्थान से सामने आई थी. यहाँ के जोधपुर ज़िले में 46 साल के एक आदिवासी को कुछ लोगों ने ट्यूबवेल से पानी लेने की वजह से पीट पीट कर हत्या कर दी. 

जिस आदिवासी की हत्या की गई थी उसका नाम किशन लाल भील था. 

नक्सल ऑपरेशन के नाम पर ज़ुल्म

नवंबर के महीने में ही झारखंड के चाईबासा ज़िले के अनजेबेड़ा गाँव से ख़बर मिली की वहाँ पर नक्सलियों को ढूँढने के बहाने सुरक्षा बलों के लोगों ने गाँव में मारपीट की थी. 

इस घटना में सुरक्षा बलों के कुछ जवानों पर बलात्कार और औरतों से छेड़छाड़ के गंभीर आरोप लगे हैं. 

तमिलनाडु के आदिवासी ज़मीन से बेदख़ल 

तमिलनाडु के अन्नामलाई टाइगर रिज़र्व फ़ॉरेस्ट में आदिवासी गाँव नवमलाई के क़रीब 40 परिवारों को बेघर कर दिया गया. यहाँ बेघर हुए आदिवासियों का कहना है कि वे कई पीढ़ियों से वहाँ रह रहे हैं.

वन अधिकार क़ानून 2006 के तहत इन आदिवासियों को ज़मीन का अधिकार देने की बजाए इन आदिवासियों को बेघर कर दिया गया. 

तमिलनाडु की इस घटना के अलावा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी पोडू ज़मीन के मामले में आदिवासी लगातार प्रशासन की सख़्ती का शिकार होते रहे हैं. 

ये कुछ घटनाएँ हैं, इन घटनाओं के अलावा भी साल के लगभग हर महीने में देश के हर उस राज्य में जहां आदिवासी जनसंख्या मौजूद है, इस तरह की ख़बरें मिलती हैं.

आदिवासियों के ख़िलाफ़ अत्याचार को रोकने के लिए कड़े क़ानून मौजूद हैं. लेकिन इन क़ानूनों का भय लोगों के मन में नहीं है. इसकी एक वजह है कि अदालतों का भारी ख़र्च उठाना आदिवासियों के बस की बात नहीं है.

इसके अलावा पुलिस प्रशासन और न्याय व्यवस्था भी आदिवासी मसलों के प्रति बहुत संवेदनशील नहीं हैं. 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments