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नंदकुमार साय काम की बजाए कर रहे हैं ढोंग, ऐसे नेताओं से बचें आदिवासी

भाजपा के दिग्गज आदिवासी नेता व अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष नंदकुमार साय जशपुर जिले के ग्राम भगोरा पहुँचे. यहाँ पर कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए उन्होंने गड़गोशिया देवता, गांव के खूंटा देवता और देवी का अनुष्ठान कर पूजन हवन किया.

देश के लोगों को कोरोना महामारी से बचाने के लिए वैक्सीन, दवाओं और ऑक्सीजन का इंतज़ाम करना ज़रूरी है. लेकिन इस मोर्चे पर केंद्र सरकार के साथ साथ ज़्यादातर राज्य सरकारें फेल रही हैं. 

लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी के नेताओं ने अपनी ज़िम्मेदारी निभाने की बजाए लोगों को अंधविश्वास की तरफ़ धकेला है. किसी ने हवन करने की सलाह दी, तो किसी ने मिट्टी के लेप लगाने की.

एक सांसद महोदय ने तो शंख बजा कर कोरोना से छुटकारा पाने का रास्ता भी बताया था.

बीजेपी के आदिवासी नेता भी इस मामले में इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण काम कर रहे हैं.

पूर्व राज्यसभा सदस्य व भाजपा के वरिष्ठ आदिवासी नेता नंद कुमार साय कोरोना को रोकने के लिए देवी देवताओं की पूजा की है. नंदकुमार साय ने उनके गांव व क्षेत्र में कोरोना को रोकने के लिए एक धार्मिक अनुष्ठान कराया है. 

उन्होंने बैगा आदिवासियों के साथ मिलकर पारंपरिक अनुष्ठान कराया. उन्होंने अपने इस आयोजन का पोस्ट इंटरनेट मीडिया में भी साझा किया है.

स्थानीय मीडिया के अनुसार ये दिग्गज आदिवासी नेता व अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष नंदकुमार साय जशपुर जिले के ग्राम भगोरा पहुँचे.

यहाँ पर कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए उन्होंने गड़गोशिया देवता, गांव के खूंटा देवता और देवी का अनुष्ठान कर पूजन हवन किया.

इस अनुष्ठान में उन्होंने गाँव के आदिवासियों को भी शामिल किया था. आदिवासियों के इस पारंपरिक आयोजन में गांव व क्षेत्र के लोगों तक बीमारी न फैले के लिए मनोकामना की गई.

नंद कुमार साय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष रह चुके हैं

भाजपा नेता साय का कहना है कि क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के लोग किसी भी संकट की स्थिति उत्पन्न होने पर बचाव के लिए अपने कुल देवी व देवताओं का पूजन करते हैं.  इस धार्मिक कार्यक्रम में भी कोरोना वायरस जैसी महामारी से बचाव की दुआ मांगी गई है.

छत्तीसगढ़ में किसी नेता या मंत्री की ओर से इस तरह का पूजा पाठ या अनुष्ठान का पहला मामला नहीं है. बीते कुछ माह पहले राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम ने अंबिकापुर में स्थानीय सरगुजा विधायक बृहस्पति सिंह पर जान से मारने का आरोप लगाकर अनुष्ठान किए थे.

आदिवासी नेताओं की ये हरकतें अफ़सोसनाक और ख़तरनाक हैं. पहली बात तो इस तरह के अनुष्ठान में आम आदिवासियों को शामिल किया जा रहा है. जबकि कोरोना वायरस से बचने के लिए ज़रूरी है कि लोग एक दूसरे से एक निश्चित दूरी बना कर रखें. 

इसके अलावा आदिवासी इलाक़ों में कोरोना वायरस से बचने के लिए वैक्सीन लेने में एक झिझक देखी गई है. इस तरह के अनुष्ठान आदिवासियों को वैक्सीन, टेस्टिंग या फिर इलाज से दूर ले जाते हैं. 

देश के जिन राज्यों में आदिवासी आबादी है, लगभग हर उस राज्य से ख़बरें आ रही हैं कि इस संक्रमण के प्रति अभी भी आदिवासी इलाक़ों में जागरूकता की कमी है. 

भारत में कोरोना की दूसरी और घातक लहर ने इस बार देश के ग्रामीण इलाक़ों को भी चपेट में ले लिया है. इस वायरस की पहली लहर ग्रामीण इलाक़ों तक नहीं पहुँच पाई थी. आदिवासी इलाक़े मौटेतौर पर इस वायरस की मार से पहली लहर में बच ही गए थे. लेकिन दूसरी लहर आदिवासी इलाक़ों में पहुँच ही गई.

कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद इसका कोई सटीक इलाज अभी भी संभव नहीं है. क्योंकि इस वायरस से निपटने के लिए अभी तक कोई विशेष दवाई नहीं बनी है. इस वायरस से निपटने के लिए डॉक्टर रेमेडिसिविर और कुछ दूसरी दवाओं का इस्तेमाल कर मरीज़ों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं.

इस वायरस से बचाव के लिए वैक्सीन ही एक ज़रिया फ़िलहाल नज़र आता है. इसके अलावा मास्क और एक दूसरे से दूरी बना कर रखना ज़रूरी बताया जा रहा है.

इस वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए टेस्टिंग भी एक कारगर उपाय बताया जाता है. टेस्ट कराने से संक्रमित व्यक्ति ख़ुद को अलग कर सकता है, जिससे यह वायरस दूसरे लोगों में ना फैले.

आदिवासी इलाक़ों में कमज़ोर स्वास्थ्य सेवाएँ, जागरूकता की कमी और झाड़फूंक में अंधविश्वास कोरोना से लड़ाई को और मुश्किल बना देते हैं. इन हालात में आदिवासी नेताओं की ज़िम्मेदारी है कि वो अपने समुदाय में जागरूकता फैलाएँ.

इसके अलावा आदिवासी नेताओं की यह भी ज़िम्मेदारी है कि वो यह सुनिश्चित करें कि संक्रमित लोगों को समुचित इलाज समय से मिल सके. लेकिन अफ़सोस कि ये नेता आदिवासी नेता इसके उलट काम कर रहे हैं. 

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