हाल ही में आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने संसद में अपने भाषण के दौरान उन आदिवासी समुदायों के बारे में बताया जो लुप्त होने की कगार पर है.
उन्होंने यह जानकारी दी की इन जनजातियों की संख्या 1000 से भी कम हो गई है. इनकी जनसंख्या की तुलना 2001 और 2011 की जनगणना से करे तो पता चलता है की इन आदिवासियों की घटती जनसंख्या एक बड़ी समस्या है.
विलुप्त होती जनजातियों में से बिंझिया भी एक है. 2011 की जनगणना के अनुसार बिंझिया की जनसंख्या बिहार में 33 थी. लेकिन अब यह 15 ही रह गई है.
आइए जानते है बिंझिया जनजाति के बारे में….
कौन है बिंझिया आदिवासी
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बिंझिया को बिझिओ भी कहा जाता है. ये जनजाति सबसे ज्यादा झारखंड में रहती है. इसके अलावा इन आदिवासियों का निवास स्थान ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश राज्य भी है.
बिंझिया आदिवासी खुद को विंध्यनिवासी या बिंध्यबासिनी ख्याति कहते है. यह नाम इनके मूल निवास स्थान से जुड़ा है.
आदिवासियों का कहना है की यह कोलनगिरी के विंध्या वैली के निवासी थे. विंध्या वैली अब मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का भाग है.
समय के साथ धीरे-धीरे ये आदिवासी झारखंड के छोटानागपुर, छत्तीसगढ़ के केओनझर, सुंदरगढ़ और बरगढ़ में आकर बस गए.
इन आदिवासियों को झारखंड में बिंझिया कहा जाता है और छत्तीसगढ़ में इन्हें बिंझवाड़ा के नाम से जाना जाता है.
बिंझिया नाम इन्हें इनके पड़ोसियों द्वारा दिया गया है.
भाषा:- छत्तीसगढ़ में रहने वाले बिंझिया क्रूड हिंदी बोलते है, जिसे जसपुरी कहा जाता है. इसके अलावा ओडिशा में यह आदिवासी हिंदी और ओडिया भाषा का मेलजोल अपनी बोली में इस्तेमाल करते हैं.
अब बहुत से बिंझिया आदिवासी ओडिया भाषा को अपनी बोली और लिपि में उपयोग करने लगे है. इसके साथ ही इन्हें सादरी भाषा का भी ज्ञान है.
आदिवासी कैसे चुनते है घर के लिए स्थान
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बिंझिया आदिवासी भी अन्य आदिवासियों की तरह छोटी-छोटी बस्तियों में बसे है. इनके घरों में कोई खास तरह का पैटर्न नहीं देखा गया है. लेकिन किस स्थान पर घर बनाया जाए, इसके लिए यह एक पांरपरिक प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं.
जिस भी जगह पर घर बनाना हो, वहां आदिवासियों के पुजारी (पाहन या कालो) द्वारा कुछ चावल के दाने डाल दिए जाते है. जिसे बरगद के पत्तो से ढका जाता है. अगले दिन अगर चावल के दाने अवितरित अवस्था में है, तो यहां घर बनाया जा सकता है.
घर के निर्माण कार्य शुरू होने से पहले आम का पेड़ लगाया जाता है.
घर बनने के बाद बिंझिया आदिवासी इसे अलग-अलग रंगों से पेंट करते हैं. उनका माना है की इससे घर को बुरी नज़र से बचाया जा सकता है.
रोज़गार
बिंझिया आदिवासियों में खेती-बाड़ी रोज़गार का मुख्य साधन है. हालांकि ये बिल्डिंग के निर्माण कार्य या अन्य ज़गहों पर भी मज़दूर के रूप में काम करते हैं.
यह आदिवासी धान जैसे मक्का, रागी, दाल और तिलहन की खेती करते है. इसके अलावा सबई खास से रस्सी और चटाई बनाना, सेज के पत्तों से छाता बनाकर इसे बाज़ारों में बेचते हैं.
इसके अलावा जंगलों से मिले वन उपज को भी यह बाज़ारो में जाकर बेचते है.
खान-पान
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बिंझिया आदिवासियों के खान-पान में चावल सबसे पसंदीदा व्यंजन है. ये आदिवासी सुबह चावल को प्याज़, नमक और इमली के साथ खाते है.
त्योहारों में बिंझिया आदिवासी चावल और चावल की शराब (हांडिया) से केक बनाते है.
विवाह
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बिंझिया आदिवासियों में बहुविवाह और एकविवाह प्रचलित है. शादी के दौरान दुल्हा या दुल्हन का परिवार किसी पड़ोसी के वहां खाना नहीं खा सकते और ना ही उस समय वह मांसाहारी खाना खाते है.
मुख्यधारा से जुड़ने के बाद इन आदिवासियों में अब दहेज़ प्रथा देखी गई है. लेकिन इसे दहेज कहना थोड़ा गलत होगा क्योंकि दुल्हन का परिवार दहेज़ में धान, कुछ पैसे, कपड़े जैसे मूलभूत वस्तु ही देते है.
शिशु
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बच्चे होने के 21 दिन बाद ही परिवार किसी सामाजिक उत्सव में शामिल हो सकता है. 21 दिन बाद बच्चे का नामकरण किया जाता है.
जैसे ही बच्चा दो साल का हो जाता है उसे मासाहारी खाना खिलाना शुरू किया जाता है.
और सात से आठ वर्ष मे बच्चे के लिए चावाल खिलाने से जुड़ा समरोह होता है.
पूजा-पाठ
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बिंझिया आदिवासी सरना धर्म को मानते है. वह सरना देवता को ग्रामसिरी कहते है, जिनका स्थान उप वन (grove) के पेड़ों के अंदर होता है. यह उप वन गांव की सीमा से बाहर स्थापित है.
इसके अलावा बुधवार के किसी एक दिन को चुनकर इसे पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है.
ये आदिवासी अपने कुल देवता(बांसा देवता और समलाई मां) की पूजा भी करते है. इसके साथ ही बिंझिया आदिवासी अपने संरक्षक के लिए विंध्यबासिनी देवी की पूजा भी करते है.
इसके अलावा आप इनके पूजा-पाठ में हिंदू देवी-देवताओं को भी देख सकते है.
सामाजिक व्यवस्था
बिंझिया आदिवासी इलाकों में पांरपरिक ग्राम परिषद और ग्राम पंचायत दोनों ही मौजूद होते है. पांरपरिक ग्राम परिषद में गाँव के हर परिवार को पुरूष इसका सदस्य होता है.
पांरपरिक ग्राम परिषद के मुख्य को गांजू कहा जाता है. और गाँव का सबसे वृद्ध वयक्ति ग्राम परिषद का उपाध्यक्ष होता है.
हालांकि अब ग्राम पंचायत बिंझिया आदिवासी इलाकों में प्रचलित हो गया है और इनके पास अधिक ताकत भी देखी गई है.
अब बिंझिया आदिवासी के लोग भी राजनीति में शामिल हो रहे हैं.