देश में अनुसूचित जाति (ST) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के खिलाफ अपराध के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है. सरकार की तरफ से संसद के मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 से साल 2020 के बीच दलित और आदिवासियों के खिलाफ अपराधिक मामले बढ़े हैं.
देश के गृहराज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने लोकसभा में ये आंकड़े तब पेश किए जब तेलंगाना से कांग्रेस के सांसद कोमाती रेड्डी और टीआरएस के सांसद मन्ने श्रीनिवास रेड्डी ने इस मामले को लेकर सवाल पूछा था.
अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध के मामले 2018 में 42,793 से बढ़कर 2020 में 52,291 से अधिक हो गए. तीन साल में 17.5 फीसदी की वृद्धि हुई. वहीं दूसरी तरफ इसी दौरान अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराध के मामलों में भी वृद्धि हुई है. अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ इसी अवधि में यह संख्या 6,528 से बढ़कर 8,272 हो गई, जो 26.71 फीसदी की वृद्धि है.
यह राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों में सामने आया है, जिसे गृह राज्य मंत्री (MoS) अजय कुमार मिश्रा द्वारा लोकसभा में पेश किया गया था.
एनसीआरबी के अनुसार, 2020 तक, अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के 50,202 मामलों में से 39,075 में चार्जशीट दायर की गई थी, जबकि 19,696 मामलों में जांच लंबित थी. इसी तरह, 2020 में अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अपराध के 8,268 मामलों में से 6,477 में चार्जशीट दायर की गई, जबकि 3,341 मामलों में जांच लंबित थी.
उत्तर प्रदेश और बिहार दलित उत्पीड़न में सबसे आगे
अनुसूचित जाति और जनजाति के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में दर्ज किए गए. राज्यवार देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में 2018 और 2020 के बीच अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले दर्ज किए. 2018 में, राज्य में 11,924 मामले आए थे, इसके बाद 2019 में यह संख्या थोड़ी कम होकर 11,829 हो गई.
जबकि 2020 में यह बढ़कर 12,714 (25.2 फीसदी) हो गई. उत्तर प्रदेश के बाद बिहार में 2020 में 7,368 मामले आए, राजस्थान में 7,017 मामले, मध्य प्रदेश में 6,899 मामले और महाराष्ट्र 2,569 मामले आए थे.
मध्य प्रदेश और राजस्थान आदिवासियों के उत्पीड़न में सबसे आगे
मध्य प्रदेश ने 2018 और 2020 के बीच अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले दर्ज किए. 2018 में कुल 1,868 मामले दर्ज किए गए. 2019 में यह संख्या बढ़कर 1,922 और 2020 में 2,401 (29 फीसदी) हो गई.
मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान 1,878 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है. महाराष्ट्र में 663 मामले, ओडिशा में 624 मामले और तेलंगाना में 573 मामले दर्ज किए गए.
देश के विभिन्न हिस्सों में अत्याचार-प्रवण क्षेत्रों की पहचान करते हुए, MoS (गृह) ने अपने प्रस्तुतीकरण में कहा, “13 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं, जिनमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अपराध की संख्या में वृद्धि देखी गई है.”
तमिलनाडु में, 38 में से 37 जिलों की पहचान “अत्याचार-प्रवण” क्षेत्रों के रूप में की गई है.