झारखंड में पूर्वी भारत का पहला जनजातीय विश्वविद्यालय खुलेगा. विश्वविद्यालय पंडित रघुनाथ मुर्मू के नाम पर होगा. झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन पंडित रघुनाथ मुर्मू जनजातीय विश्वविद्यालय विधेयक 2021 सदन से पास हो गया.
हालांकि पक्ष और विपक्ष के कई विधायकों ने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की मांग की. बीजेपी विधायकों का साथ कांग्रेस के बंधु तिर्की, प्रदीप यादव और झामुमो के लोबिन हेम्ब्रम ने भी किया.
कांग्रेस के बंधु तिर्की ने इसे स्वागत योग्य कदम बताया है लेकिन कहा कि इस विधेयक में कई तरह की त्रुटियां है. आदिवासी समाज के लिए यह एक महत्वपूर्ण पहल है, पास करने से पहले इसे प्रवर समिति को भेजे और जनजातीय विशेषज्ञ से इस पर राय लें.
कांग्रेस के प्रदीप यादव ने भी इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की मांग की. उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी जनजाति विश्वविद्यालय अमरकंटक में बने हुए विश्वविद्यालय का पहले अध्ययन किया जाए. झारखंड में बनने वाले जनजाति विश्वविद्यालय में कई ऐसे अनछुए पहलू हैं, जिसे शामिल किए जाने की आवश्यकता है.
उन्होंने कहा कि पंडित रघुनाथ मुर्मू जनजाति विश्वविद्यालय में फिजिक्स, मैथ, केमिस्ट्री विषय को शामिल किए जाने की आवश्यकता है. इसलिए इसे प्रवर समिति को भेजा जाए.
प्रभारी मंत्री मिथलेश ठाकुर ने कहा कि जनजाति विश्वविद्यालय में सभी पहलुओं को शामिल किया गया है. ऐसे ही इस विधेयक को प्रवर समिति को भेजे जाने का कोई औचित्य नहीं है
इस विधेयक पर बीजेपी विधायक अनंत ओझा और आजसू विधायक लंबोदर महतो ने संशोधन प्रस्ताव लाया था. दोनों विधायकों ने इस विधेयक में स्पीकर द्वारा नामित विधायकों को भी विश्वविद्यालय के कार्यकारी परिषद में सदस्य बनाने का आग्रह किया.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि देश के विभिन्न राज्यों ने अपनी भाषा-संस्कृति को संरक्षण दिया है. लेकिन झारखंड में अब तक इसके बारे में ईमानदारी से नहीं सोचा गया था. इसलिए हमारी सरकार ने अपने राज्य की भाषा-संस्कृति को ध्यान में रखते हुए जनजातीय विश्वविद्यालय खोलने का निर्णय लिया है.
जमशेदपुर में अपने मुख्यालय के साथ विश्वविद्यालय का अधिकार क्षेत्र पूरे राज्य में होगा और सभी समुदायों और धर्मों के उम्मीदवारों को प्रवेश की अनुमति होगी. विश्वविद्यालय जमशेदपुर के गालूडीह और घाटशिला के बीच स्थापित होगी. इसके लिए 20 एकड़ जमीन भी चिह्नित की जा चुकी है. विश्वविद्यालय किसी भी राज्य में अपनी तरह का पहला होगा जहां आदिवासी संस्कृति के वैज्ञानिक संरक्षण और विषयों पर अध्ययन पर विशेष ध्यान दिया जाएगा.
प्रस्तावित यूनिवर्सिटी का नाम पंडित रघुनाथ मुर्मू जनजातीय विश्वविद्यालय होगा. पंडित मुर्मू को जनजातीय संताली भाषा का सबसे बड़ा संवर्धक माना जाता है. उन्होंने ‘ओलचिकी’ का आविष्कार किया. संथाली भाषा की ज्यादातर कृतियों और साहित्य की रचना इसी लिपि में की गई है. मयूरभंज आदिवासी महासभा ने उन्हें गुरु गोमके (महान शिक्षक) की उपाधि प्रदान की थी. ये विश्वविद्यालय उनकी स्मृतियों को समर्पित होगा.
कुछ महीने पहले हुए जनजातीय सलाहकार परिषद (TAC) की बैठक में आदिवासियों को लेकर कई बड़े फैसले लिए गए थे. इसमें सबसे बड़ा फैसला यह था कि झारखंड सरकार राज्य में जनजातीय विश्वविद्यालय खोलेगी. बैठक में फैसला हुआ था कि सरकार इस संबंध में विधेयक लाकर विश्वविद्यालय निर्माण की प्रक्रिया शुरू करेगी.
टीएससी की बैठक में सीएम हेमंत सोरेन ने भी कहा था कि राज्य के पहले जनजातीय विश्वविद्यालय के निर्माण का उद्देश्य जनजातीय भाषा और आदिवासी समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को सहेजना है. साथ ही उन पर शोध करने तथा आदिवासी समाज के मेधावी विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करना है.