कोरोनोवायरस महामारी की नई लहर ने ओडिशा के आदिवासी समुदायों के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं. गर्मियों में जंगलों से महुआ के फूल इकट्ठा कर, उसे बाज़ार में बेचना इन आदिवासियों की आजीविका का बड़ा सधान है.
लेकिन, कोविड के बढ़ते मामलों के चलते लॉकडाउन की आशंका से यह आदिवासी सस्ते दामों पर महुआ के फूल बेचने को मजबूर हो रहे हैं.
ओडिशा 62 जनजातियों का घर है, जो राज्य की आबादी का 22.50 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा हैं. अधिकांश आदिवासी, खासकर महिलाएं, गर्मियों के दिनों में इन फूलों को इकट्ठा करते हैं.
आदिवासियों को पिछले साल ही महामारी के दौरान भारी नुकसान उठाना पड़ा था, जब कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन लगा दिया गया था.
आदिवासियों का कहना है कि उन्होंने पिछले साल 15 से 25 रुपये के बेहद सस्ते दाम पर सूखे फूल बेचे थे. इस साल भी ज़्यादातर आदिवासी महुआ के ताज़ा फूल 15 रुपए, और सूखे फूल 25 रुपये प्रति किलो पर बेचने को मजबूर हैं.
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कोरोनावायरस के चलते खरीदारों की कमी भी इन आदिवासियों को परेशान कर रही है. आदिवासी कहते हैं कि वो फूल जल्द से जल्द बेचना चाहते हैं, क्योंकि उनके पास इन फूलों को रखने की जगह नहीं है.
महुआ के सूखे फूलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी 17 रुपये प्रति किलोग्राम है.
ओडिशा के ज्यादातर आदिवासी साल के छह से सात महीने जीविका के लिए जंगल से मिलने वाली उपज पर निर्भर रहते हैं. मार्च और मई के बीच महुआ के फूलों को इकट्ठा करने का पीक सीज़न है. महुआ के फूलों का ज़्यादा इस्तेमाल देशी शराब बनाने में होता है.
एक्साइज़ डिपार्टमेंट (Excise Department) द्वारा मान्यता प्राप्त लाइसेंस धारक, आदिवासियों से महुआ के फूलों की खरीदते हैं, और इसे आगे देशी-शराब निर्माताओं को बेचते हैं.
साधारण समय में भी यह लाइसेंस धारक आदिवासियों से 20-25 रुपये प्रति किलो के हिसाब से फूल खरीदते थे, और शराब निर्माताओं को 50-60 रुपये प्रति किलो में बेचते थे. लेकिन अब आदिवासियों का हिस्सा और भी कम हो गया है.
आदिवासियों के जीवन में महुआ के फूलों का महत्व इस बात से लगाया जा सकता है कि आदिवासी हर साल लगभग 20,000 क्विंटल महुआ के फूल इकट्ठा करते हैं.
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ओडिशा में कंधमाल, मयूरभंज, संबलपुर, देवगढ़, कोरापुट, रायगढ़, मलकानगिरी, गजपति, कालाहांडी, बलांगीर, धेनकनाल और सुंदरगढ़ प्रमुख केंद्र हैं. महुआ के फूल ओडिशा के आदिवासी लोगों की आजीविका का एक प्रमुख स्रोत है.
आदिवासियों की मांग है कि राज्य सरकार का आदिवासी विकास सहकारी निगम ( Tribal Development Cooperative Corporation – TDCC) आदिवासियों से सीधे उत्पाद खरीदे. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में यही होता है.
TDCC के उत्पाद खरीदने से आदिवासियों को कम से कम अपनी मेहनत का मिनिमम सपोर्ट प्राइस तो मिल सकेगा.