तेलंगाना के भद्राद्री-कोठागुडम ज़िले में क़रीब 100 बस्तियों में रहने वाले गोट्टीकोया आदिवासी समुदाय के 20,000 से ज़्यादा लोग दयनीय हालात में जी रहे हैं.
लॉकडाउन की वजह से इन बस्तियों के निवासियों के पास न खाने को कुछ है, न पैसे कमाने का कोई ज़रिया. इनके पास कोविड-19 से लड़ने के लिए कोई चिकित्सा सहायता भी उपलब्ध नहीं है. निराश होकर इनमें से कई अपने मूल राज्य छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं.
कोविड-19 ने इन आदिवासियों के जीवन अस्त व्यस्त कर दिया है. लॉकडाउन से पहले इनमें से ज़्यादातर बिल्डिंग निर्माण में या खेत में मज़दूरी करते थे. 12 मई को मौजूदा लॉकडाउन लागू होने के बाद से राज्य में सभी निर्माण कार्य ठप हैं. यहां तक कि फ़सलों की कटाई भी बंद हो गई है.
ज़ाहिर है, इन हालात में उन्हें काम नहीं मिल रहा है, और कई परिवार भूख से मरने के कगार पर हैं. सरकार से राशन भी इन्हें नहीं मिल रहा है.
चारला और दुम्मागुडेम मंडलों में कोविड से अब तक 30 आदिवासियों की मौत हो चुकी है. आदिवासी कार्यकर्ता कहते हैं कि पार्टियां चुनाव के समय इन आदिवासियों को लुभाती हैं, लेकिन मुसीबत के समय कोई मदद के लिए नहीं आता.
गोट्टीकोया आदिवासी क़रीब 15 साल पहले छत्तीसगढ़ से भद्राद्री-कोठागुडेम ज़िले में अलग-अलग जगहों पर आकर बस गए. इतने लंबे समय से यहां रह रहे आदिवासियों के पास आधार कार्ड भी हैं, और इनके कल्याण की ज़िम्मेदारी इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट एजेंसी यानि ITDA के पास है.
हालांकि इनमें से अधिकांश कोविड-19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित हैं, लेकिन अभी तक कोई भी ITDA अधिकारी उनके पास नहीं आया है.
आदिवासी गिरिजाना संक्षेमा परिषद के संस्थापक अध्यक्ष सोंडे वीरैया गोट्टीकोया आदिवासियों की दुर्दशा के लिए आईटीडीए के अधिकारियों को दोषी ठहराते हैं. वो कहते हैं कि सरकार को समुदाय की फिक्र नहीं है, इसीलिए इन क्षेत्रों में कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए जा रहे हैं.