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आदिवासियों के औषधीय ज्ञान और चिकित्सा पद्धति पर शोध करा रही केंद्र सरकार

इस फंडिंग का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा- 195 लाख, प्रवरा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, लोनी, उत्तर प्रदेश को दिया गया है. जिसका इस्तेमाल महाराष्ट्र राज्य में विभिन्न जनजातीय समुदायों की पहचान के लिए सर्वेक्षण, पारंपरिक जनजातीय चिकित्सकों की सूची, जनजातीय स्वास्थ्य परंपराओं का अध्ययन, डॉक्यूमेंटेशन और टेस्टिंग के लिए किया जाएगा.

अब आदिवासी समुदायों (Tribal communities) की औषधीय प्रथाओं और चिकित्सा परंपराओं पर शोध होगा. जनजातीय मामलों के मंत्रालय (Ministry of Tribal Affairs) ने सोमवार को लोकसभा को बताया कि केंद्र सरकार ने देश भर में आदिवासी समुदायों की औषधीय प्रथाओं और चिकित्सा परंपराओं पर शोध के लिए विभिन्न संस्थानों, विश्वविद्यालयों और अकादमियों को 864 लाख रुपये से अधिक की मंजूरी दी है.

सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि इस फंडिंग का एक बड़ा हिस्सा- 312 लाख से अधिक हरिद्वार में पतंजलि अनुसंधान संस्थान (Patanjali Research Institute) को आवंटित किया गया है. पतंजलि को यह राशि जनजातीय चिकित्सा से संबंधित परियोजनाओं के लिए भी प्राप्त हुई है.

इस फंडिंग का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा- 195 लाख, प्रवरा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, लोनी, उत्तर प्रदेश को दिया गया है. जिसका इस्तेमाल महाराष्ट्र राज्य में विभिन्न जनजातीय समुदायों की पहचान के लिए सर्वेक्षण, पारंपरिक जनजातीय चिकित्सकों की सूची, जनजातीय स्वास्थ्य परंपराओं का अध्ययन, डॉक्यूमेंटेशन और टेस्टिंग के लिए किया जाएगा.

वहीं जिन परियोजनाओं के लिए पतंजलि अनुसंधान संस्थान (PRI) को धन स्वीकृत किया गया है, उनमें से कुछ में विभिन्न आदिवासी क्षेत्रों में पारंपरिक चिकित्सकों से जातीय-औषधीय जानकारी का संग्रह, अनुसंधान समीक्षा दृष्टिकोण के साथ पौधों की औषधीय जानकारी का डॉक्यूमेंटेशन, संग्रह और जड़ी-बूटियों की तैयारी और पौधों की पहचान शामिल है.

इसके अलावा सरकार ने कहा कि पीआरआई को चयनित औषधीय पौधों का एक हर्बल मोनोग्राफ तैयार करने, इन पौधों की रूपरेखा तैयार करने और “आदिवासी पारंपरिक चिकित्सकों के मार्गदर्शन, समन्वय और प्रशिक्षण” पर काम करने के लिए फंड सौंपा गया है.

जिन कुछ परियोजनाओं के लिए पीआरआई धन का उपयोग कर रहा है, उनमें से कुछ का जनजातीय समुदायों के जनजातीय दवाओं या चिकित्सा पद्धतियों के अध्ययन से कोई संबंध नहीं लगता है.

इनमें शामिल हैं, “जियो-टैगिंग के साथ डिजिटल समर्थन के माध्यम से जनजातीय समुदाय की जनसांख्यिकीय और सामाजिक-आर्थिक जानकारी, सरकारी योजनाओं का सर्वेक्षण और उनके वास्तविक लाभार्थियों का विवरण, जनजातीय कारीगरों के विभिन्न कार्यों का डॉक्यूमेंटेशन, मधुमक्खी पालन, कृषि और पारंपरिक कलाओं के माध्यम से जनजातीय समुदायों को आजीविका सहायता प्रणाली, आजीविका सहायता के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और वेब-पोर्टल.

इसके अलावा इस क्षेत्र में रिसर्च के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, जोधपुर, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (NIPER), गुवाहाटी, सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन आयुर्वेदिक साइंस (CCRAS) और सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन होम्योपैथी (CCRH) नई दिल्ली में और कई राज्यों में और केंद्र शासित प्रदेश के ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट्स (TRI) को धन का आवंटन किया गया है.

लेकिन CCRH दो आदिवासी जिलों (ओडिशा के संबलपुर और महाराष्ट्र के नासिक) में कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम में होम्योपैथी और योग को एकीकृत करने के लिए एक पायलट परियोजना पर काम कर रहा है. जबकि एम्स, जोधपुर राजस्थान के सिरोही में स्वदेशी लोगों के पारंपरिक ज्ञान और चिकित्सा पद्धतियों के सिद्धांत का अध्ययन करने पर काम कर रहा है.

इसके अलावा कई ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट्स झारखंड, ओडिशा, असम, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और कई अन्य राज्यों में आदिवासी समुदायों की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के दस्तावेजीकरण के लिए परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं.

उदाहरण के लिए, केरल 300 आदिवासी चिकित्सकों के ज्ञान का दस्तावेजीकरण करने के लिए एक परियोजना पर काम कर रहा है. जबकि एम्स, भोपाल राज्य में स्थानीय आदिवासियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले “औषधीय पौधों की जातीय-वानस्पतिक भूमिका” का अध्ययन करने पर काम कर रहा है.

इनमें से कुछ परियोजनाओं को जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने जनजातीय महोत्सव अनुसंधान सूचना शिक्षा, संचार और कार्यक्रम (TRI-ECE) योजना के तहत मंजूरी दी है. सरकार ने कहा कि अन्य को ‘टीआरआई योजना के लिए समर्थन’ और आयुष मंत्रालय के तहत मंजूरी दी गई है.

केंद्र सरकार का यह कदम निश्चित ही तारीफ़ के लायक़ है. आदिवासी समुदायों के औषधीय ज्ञान के बारे में पता लगाने और उसे दर्ज करने के लिए एक संगठित प्रयास से बेहतर नतीजे निकल सकते हैं.

लेकिन इस प्रयास में यह भी ध्यान रखना होगा कि यह औषधीय ज्ञान जिन आदिवासी समुदायों या व्यक्तियों से हासिल हो रहा है उन्हें उसका श्रेय और पैसा दोनों मिल सके.

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