HomeAdivasi Dailyकेंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के 4 हजार आरक्षित पद खाली: केंद्र

केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के 4 हजार आरक्षित पद खाली: केंद्र

दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) में 526 आरक्षित श्रेणी के पद खाली हैं. इसमें अनुसूचित जाति के लिए 123, अनुसूचित जानजाति के लिए 61, ओबीसी के लिए 212, ईडब्ल्यूएस के लिए 86 और पीडब्ल्यूडी के लिए 44 सीटें हैं.

सरकार ने सोमवार को संसद में बताया है कि देश के 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और विकलांगों के लिए लगभग 4 हजार पद खाली हैं. वहीं एक साल में 1400 से अधिक उम्मीदवारों की भर्ती की जा चुकी है.

केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार ने लोकसभा में बीजेपी के सदस्य धर्मेंद्र कश्यप द्वारा उठाए गए एक सवाल का जवाब देते हुए ये जानकारी दी.

शिक्षा मंत्रालय ने संसद को बताया कि टीचिंग पोस्ट पर 549 वैकेंसी थीं जो कि भरी नहीं जा सकीं. उन्होंने कहा कि 549 आरक्षित पद खाली हैं क्योंकि विश्वविद्यालयों का कहना है कि उन्हें पिछले पांच वर्षों के दौरान इन पदों के लिए योग्य अभ्यर्थी नहीं मिल रहे हैं.

जिन पांच केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने योग्यता की कमी को कारण बताया है उनमें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru University) और हैदराबाद विश्वविद्यालय शामिल हैं.

संसद में साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) में शिक्षकों के सबसे ज्यादा खाली पद हैं.

सभी श्रेणियों में 576 खाली पदों में से दलितों के लिए 108, आदिवासी उम्मीदवारों के लिए 81, ओबीसी के लिए 311, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 53 और 23 पीडब्ल्यूडी (विशेष रूप से सक्षम) के लिए हैं.

इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) में 526 आरक्षित श्रेणी के पद खाली हैं. इसमें अनुसूचित जाति के लिए 123, अनुसूचित जानजाति के लिए 61, ओबीसी के लिए 212, ईडब्ल्यूएस के लिए 86 और पीडब्ल्यूडी के लिए 44 सीटें हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर स्तर पर 299 और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में 228 आरक्षित श्रेणियों के लिए सबसे अधिक रिक्तियां हैं.

इन विश्वविद्यालयों के अलावा इलाहाबाद विश्वविद्यालय, विश्व भारती विश्वविद्यालय और हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय जैसे अन्य विश्वविद्यालयों में प्रत्येक में 200 से अधिक रिक्तियां हैं.

इससे पहले बीते फरवरी महीने में सरकार ने बताया था कि देश भर के केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों और केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के 58 हजार से ज्यादा पद खाली हैं.

सरकार के मुताबिक, केंद्रीय विद्यालयों में शिक्षकों के 12,099 और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के 1,312 पद खाली हैं. इसी तरह जवाहर नवोदय विद्यालयों में शिक्षकों के 3,271 और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के 1,756 पद खाली हैं.

उच्च शिक्षण संस्थानों में सबसे ज्यादा खाली पद केंद्रीय विश्वविद्यालयों में हैं, जहां शिक्षकों के 6,180 और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के 15,798 पद अभी भरे जाने हैं.

लोकसभा में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IIT) में शिक्षकों के 4,425 और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के 5,052 पद, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (NIT) और भारतीय आभियांत्रिकी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Engineering Science and Technology) में शिक्षकों के 2,089 और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के 3,773 पद खाली हैं.

इसी तरह भारतीय विज्ञान संस्थान और भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान में रिक्त शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों की संख्या 353 और 625 है. भारतीय प्रबंधन संस्थानों (IIM) में 1,050 टीचिंग और गैर-शैक्षणिक पद खाली हैं.

संसद के लगभग हर सत्र में सरकार से इस सिलसिले में सवाल पूछे जाते हैं. सरकार आँकड़े भी उपलब्ध करवा देती है. लेकिन इन आँकड़ों से जो तथ्य सामने आता है उसके समाधान के लिए कोई ठोस नीति या उपाय नहीं किया जाता है.

मसलन सरकार ने जवाब में बताया है कि कुछ विश्वविद्यालयों का दावा है कि उन्होंने अध्यापन के लिए आदिवासियों को इसलिए नहीं रखा क्योंकि उन्हें योग्य अभ्यर्थियों के आवेदन नहीं मिले थे. लेकिन क्या यह बात सही है, इसकी जाँच कभी करवाने की ज़रूरत नहीं समझी गई.

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