नई शिक्षा नीति के तहत प्रारंभिक कक्षाओं से ही पढ़ाई में स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया गया है. लेकिन 29 बोलियां ऐसी हैं जिन्हें गुजरात के आदिवासियों ने पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रखा है.
दिलचस्प बात यह है कि इनमें से किसी भी बोली के पास कोई विशेष लिपि नहीं है. ये बोलियां आज भी आदिवासियों द्वारा उपयोग की जाती है और यह इनकी पहचान से जुड़ी हुई है.
आदिवासियों से जुड़े बुद्धिजीवियों का कहना है की आदिवासी इसलिए अपनी भाषा को जिंदा रख सके. क्योंकि इन पर बाहरी लोगों का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा.
आदिवासी बोलियों पर व्यापक शोध करने वाले पडवी ने कहा,“कुल 29 आदिवासी समूहों की अपनी अलग-अलग बोलियाँ हैं और इसका उल्लेख एक सरकारी अधिसूचना में किया गया है. मेरे अध्ययन के अनुसार अधिकांश बोलियाँ भील से विकसित हुई हैं.”
आदिवासियों की समझ रखने वाले बुद्धिजीवियों द्वारा इन 29 भाषाओं की विशेष लिपि को ज्ञात करने की कई बार कोशिश की गई.
कुंकना बोली के एक शोधकर्ता, डॉ. उत्तम पटेल ने कहा, “बोलियाँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होती रहती है. इन बोलियों को अलग-अलग लिपियों में लिखा जा सकता है, लेकिन इनमें किसी भी भाषा की विशेष लिपि नहीं है.”
तीन दशकों से कुंकना भाषा के संरक्षण के लिए काम कर रहे, दह्या वधू का कहना है कि कुंकना समुदाय के सदस्य जब मिलते हैं तो अपनी भाषा में ही बात करते हैं. यहां तक कि उच्च शिक्षित व्यक्ति भी मातृभाषा में बात करना पसंद करते हैं.
विशेष लिपि ना होने के बावजूद भी गुजरात के आदिवासियों ने 29 भाषाओं को जिंदा रखा हुआ है. ये बात जितनी हैरान करने वाली है उतना ये दर्शाती है की आदिवासी आज भी अपनी संस्कृति से कितना जुड़े हुए हैं.