HomeColumnsअसम के आदिवासियों में 'अंधविश्वास' नहीं 'धर्मांतरण' निशाना है?

असम के आदिवासियों में ‘अंधविश्वास’ नहीं ‘धर्मांतरण’ निशाना है?

असम में अंधविश्वास और जादू-टोने के ख़िलाफ़ प्रस्तावित बिल के पीछे की मंशा में खोट है. यह बिल समाज में वैज्ञानिक दृषिकोण को बढावा देने की बजाए समाज को बांटने का मकसद रखता है.

असम में जादू-टोने से बीमारियों के इलाज पर पाबंदी लगाने वाला विधेयक (Healing (prevention of evil) Practices Bill, 2024) को विधान सभा में पेश कर दिया गया है. 

इस बिल को संसदीय कार्यमंत्री पिजुष हज़ारिका ने मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की तरफ से पेश किया. असम विधान सभा में पेश इस विधेयक उद्देश्य समाजिक जागरुकता, वैज्ञानिक जानकारी पर आधारित एक स्वस्थ वातावरण तैयार करना है. 

इस बिल के उद्देश्य के बारे में आगे कहा गया है कि यह कानून बीमारी और जानकारी के अभाव में ग़लत उद्देश्यों के लिए जादू टोने के इस्तेमाल पर रोक लगाएगा. 

21 फ़रवरी 2024 को पेश इस बिल पर राज्य के ईसाई धर्म के नेताओं और धर्म गुरुओं में नाराज़गी और चिंता दिखाई देती है. जब एक हफ़्ते पहले इस बिल को पेश करने के बारे में असम मंत्रिमंडल ने प्रस्ताव पास किया था, तभी ईसाई समुदाय की तरफ से गहरी नाराज़गी और चिंता व्यक्त की गई थी. 

इस मामले में ईसाई संगठन असम क्रिश्चियन फोरम (Assam Christians Forum) ने कहा था, “मुख्यमंत्री का जादू-टोने से इलाज की तुलना धर्मांतरण से करना लोगों को गुमराह करने वाला बयान है.”

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा था “जादू से इलाज आदिवासियों का धर्म परिवर्तन का ज़रिया बन गया है. इसलिए हम यह विधेयक ला रहे हैं. मुसलमान, मुसलमान रहें, ईसाई भी ईसाई रहें और हिंदू, हिंदू ही रहें. हम असम में धर्मांतरण को रोकना चाहते हैं, इसलिए जादू-टोने के ज़रिये इलाज पर पाबंदी लगना एक मील का पत्थर साबित होगा.”

असम के मुख्यमंत्री के इस बयान की ईसाई धर्म संगठनों ने जो आलोचना में एक अल्पसंख्य समुदाय की जायज़ चिंता है. लेकिन इस चिंता को छोड़ भी दें तो आदिवासियों के नज़रिये से भी हिमंता बिस्वा सरमा के बयान में खोट है.

मुख्यमंत्री के बयान पर विस्तार में खोट इसलिए है कि उनकी सरकार और उनकी पार्टी की नज़र में आदिवासियों की एक ही समस्या ‘धर्मांतरण’ हैं. इस प्रस्तावित क़ानून के अलग अलग प्रावधानों को पढ़ने पर पता चलता है कि इस बिल का उद्देश्य समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करना या आधुनिक इलाज के प्रति जागरुकता पैदा करना नहीं है.

इस प्रस्तावित कानून का सेक्शन 5 और 6 एक साल से तीन साल तक की सज़ा का प्रावधान करता है. इसके अलावा इस बिल में 50 हज़ार से एक लाख तक का ज़ुर्माना भी प्रस्तावित है. 

इस बिल की प्रस्तावना कहती है, ‘किसी भी व्यक्ति को किसी बीमारी या रोग के इलाज के लिए जादू-टोना करने की इजाजत नहीं होगी. किसी भी व्यक्ति को प्रत्यक्ष या पोरक्ष रुप से जादू टोने के ज़रिये इलाज का फ़र्जी दावा करने की अनुमति नहीं होगी.’

इस बिल की प्रस्तावना का यह हिस्सा प्रगतिशील है. लेकिन प्रस्तावना की अगली ही पंक्ति में जादू टोने की कुप्रथा को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि इलाज के नाम पर ऐसा कोई भी जादू टोना जिसका उद्देश्य आम आदमी का शोषण है. 

मूलत: इस बिल का उद्देश्य राज्य में और ख़ासतौर से आदिवासी इलाकों में जादू-टोने के खिलाफ़ जागरुकता पैदा करना होना चाहिए था. इस बिल में उस पृष्ठभूमि का ज़िक्र भी होना ज़रूरी था जिसमें यह बिल लाया गया है. 

इसके अलावा यह भी बताया जाना चाहिए था कि समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करने और बीमारियों का आधुनिक तकनीक और दवाओं से इलाज के प्रति जागरुकता पैदा करने के लिए सरकार क्या क्या कदम उठाएगी. 

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि आदिवासी इलाकों जादू-टोना से इलाज एक सच्चाई है. बल्कि अंधविश्वास की वजह से इन इलाकों में हत्याएं तक हो जाती हैं. मसलन पिछले एक सप्ताह में ओडिशा के मयूरभंज और झारखंड के चाईबासा से इस तरह की हत्याओं की ख़बरें आई हैं. 

इस दृष्टि से असम में एक ऐसा बिल लाना जिसमें जादू टोना को प्रतिबंधित किया गया है, स्वागत योग्य कदम होना चाहिए था. लेकिन इस बिल के प्रस्ताव के साथ ही मुख्यमंत्री के जो बयान आए हैं उससे यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार का उद्देश्य इस बिल के ज़रिए अंधविश्वास या काले जादू के नाम पर हत्याओं को रोकना नहीं है. 

बल्कि इस बिल का उद्देश्य ईसाई धर्म प्रचारकों में एक भय का वातवरण तैयार करना है. इससे पहले पिछले साल यानि फ़रवरी 2023 में अरुणाचल प्रदेश के अपर सियांग ज़िला प्रशासन ने एक आदेश जारी किया था. इस आदेश में प्रशासन ने प्रार्थना के ज़रिये इलाज के प्रचार-प्रसार पर पाबंदी लगा दी थी.

असम के आदिवासियों को अंधविश्वासों और जादू-टोने से बचाने के नाम पर प्रस्तावित बिल का मूल उद्देश्य दरअसल आदिवासी समाज में धर्म के नाम पर बंटवारा पैदा करना नज़र आता है.

यह देखा गया है कि पिछले 2 साल में आरएसएस से जुड़े संगठन डीलिस्टिंग यानि धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की सूचि से बाहर करने की मांग करने के मुद्दे पर कई राज्यों के आदिवासियों में बंटवारा पैदा करने में कामयाब रहे हैं.

इस सिलसिले में उत्तर-पूर्व के कई राज्यों में हाल ही में कई बड़ी रैलियां आयोजित की गई हैं. इन राज्यों में असम और त्रिपुरा शामिल हैं. इसी क्रम में अब असम सरकार ने यह बिल भी पेश किया है. 

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