HomeAdivasi Dailyआदिवासी महिला ने सोशल मीडिया की ताक़त कर कलेक्टर की नींद उड़ाई

आदिवासी महिला ने सोशल मीडिया की ताक़त कर कलेक्टर की नींद उड़ाई

सोशल मीडिया का दमदार इस्तेमाल कर अपनी गहरी नींद को बदनाम नौकरशाही को भी झिंझोड़ा जा सकता है. एक आदिवासी महिला ने तमिलनाडु में यह साबित किया है.

तमिलनाडु में नारिकुरावर आदिवासी समुदाय की एक महिला के वायरल वीडियो ने प्रशासन को झिंझोड़ कर रख दिया. इस वीडियो में इस औरत ने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने इस आदिवासी समुदाय से जो वादे किये थे वो पूरे नहीं हुए हैं. 

इस वीडियो के वायरल होने के बाद चेंगलपेट के जिला कलेक्टर ए आर राहुल नाध गुरुवार को नारिकुरावर समुदाय के सदस्यों से मुलाकात करने पहुँचे. कलेक्टर ने यहां दुकानें आवंटित कीं और उन्हें आश्वासन दिया कि जल्द ही उनकी सहायता के लिए और उपाय किए जाएंगे.

इस वायरल वीडियो में इस आदिवासी औरत ने बताया था कि मुख्यमंत्री स्टालिन ने आदिवासी समुदाय को ऋण सहायता का जो वादा किया था वो अभी तक अधूरा ही है. 

प्रशासन ने कहा है कि कुल तीन दुकानों के लिए आदेश जारी किए गए हैं. इसके साथ ही प्रशासन ने दावा किया है कि महाबलीपुरम के पुंजेरी गांव में सड़क, पीने के पानी और शौचालय सहित 1.5 करोड़ रुपये की बुनियादी सुविधाएं लागू की गई हैं.

पिछले साल नवंबर में मुख्यमंत्री स्टालिन ने पुंजेरी में इरुलर और नारिकुरावर समुदायकी बस्तियों का दौरा किया था. उन्होंने इस दौरे में कई और कल्याणकारी योजनाओं को शुरू करने के अलावा घर के पट्टे (कर्म) और सामुदायिक प्रमाण पत्र वितरित किए थे.

कुछ दिनों पहले नारिकुरावर समुदाय के लोगों ने एक स्थानीय समाचार चैनल को बताया कि उनके समुदाय में किसी को भी दुकानें शुरु करने के लिए बैंक लोन नहीं मिला है. उन्होने बताया था कि वोटर आईडी और आधार जैसे सभी ज़रूरी दस्तावेज होने के बाद भी बैंक ने उन्हें लोन देने से मना कर दिया. जबकि ख़ुद मुख्यमंत्री उनके घर आ कर उनसे वादा करके गए थे.

गुरुवार को इस मामले में प्रशासन ने माना कि लोन देने में बैंक की तरफ़ से देरी की गई थी. उन्होंने पत्रकारों से कहा कि कुल आठ सदस्यों ने प्रधान मंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) के माध्यम से ऋण के लिए आवेदन किया था. उनमें से एक अश्विनी सेकर ने 5 लाख रुपये के ऋण के लिए आवेदन किया था.

उन्होंने कहा, “ऋण स्वीकृत किया गया था, लेकिन चूंकि इसका निपटान केवल तभी किया जा सकता था जब वे एक दुकान किराए पर लें और दुकान का समझौता बैंक को जमा करें. इसलिए लोन देने में देरी हुई.

कलेक्टर ने कहा कि जिला प्रशासन ने कई क्षेत्रों में सेकर को दुकानें दिखाई थीं, लेकिन चूंकि वह एक ख़ास जगह पर ही दुकान चाहती थी और जगह पहले से ही भरी हुई थी, इसलिए उन्हें वहाँ दुकान नहीं दी जा सकती थी. 

यह अक्सर देखा जाता है कि नेता ग़रीबों और वंचितों के गाँवों या बस्तियों का दौरा करते हैं. उस दौरान कई तरह की घोषणाएँ की जाती है. इन घोषणाओं का खूब प्रचार होता है.

लेकिन जब बड़े नेता लौट जाते हैं तो अफ़सरशाही अपने चिर परिचित अंदाज़ में इन वंचितों को दिए गए वादों को भूल जाता है. अगर उन पर अमल भी होता है तो ज़रूरतमंद व्यक्ति को इतना दौड़ाया जाता है कि उसकी उम्मीद और उत्साह सब टूट जाता है.

लेकिन एक आदिवासी महिला ने सोशल मीडिया का बेहतरीन इस्तेमाल करके ना सिर्फ़ ख़ुद का हक़ हासिल किया बल्कि समुदाय के सभी परिवारों का भला कर सकी.  

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