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बैशागू: असम की बोडो जनजाति का बेहद ख़ास त्योहार कैसे मनाया जाता है

जब उत्तर भार में बैसाखी आदि त्योहार मनाते है लगभग उसी समय असम की बोडो जनजाति का त्योहार बैशागू (Baishagu) भी मनाया जाता है.

असम के सबसे बड़े जनजाति समुदाय के लोग बैसाखी के दिन बैशागू (Baishagu) मनाते है. बैशागू आमतौर पर असम के बोडो कछारी (Boro Kacharis) या बोडो जनजाति के लोग मनाते है. यह त्योहार अप्रैल महीने के बीच में मनाया जाता है.

इस त्योहार को नए साल के आगमन पर वसंत उत्सव के रूप में मनाया जाता हैं. बैशागु में कई पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों का उपयोग किया जाता है. उनमें ख्वाबंग, जोथा, गोगोना, सिफुंग, खाम (Khawbang, Jotha, Gogona, Siphung, Kham) आदि वाद्ययंत्रों शामिल है.

त्योहार में प्रथा

बैशागू त्योहार के पहला दिन गोरू बिहू (Goru Bihu) यानी गाय को समर्पित होता है. इस दिन बोडो जनजाति लोग अपने घरों में मवेशियों को नहलाते है, मालाओं से सजाते है, उनके सींगों पर तेल लगाने के साथ उनके माथे पर हल्दी का लेप लगाया जाता है.

जैसे ही जातीय समुदाय इस अनुष्ठान को करते है, वे गायों के लिए लोक गीत भी गाते हैं. फिर मवेशियों को पूरे दिन स्वतंत्र रूप से घूमने की अनुमति दी जाती है. इसके बाद शाम को गाय को चिड़ा यानी चपटा चावल (Chira- flattened rice), पिठा यानी चावल का केक (Pitha- rice cake), और पाउडर चावल (powdered rice) और सब्जियां (vegetables) दी जाती हैं.

इस बीच हर घर में युवा पीढ़ी बुजुर्गों से आशीर्वाद लेते है.

इसके अलावा इस अवसर पर जहां मवेशी चिड़ा और चावल के केक खाते है वहीं बोडो लोग लाल चाय, सोबाई ग्व्रान (सूखा चिपचिपा चावल तला हुआ), सौराई (मीठा चिपचिपा चावल), बोरा शाऊल (उबला हुआ चिपचिपा चावल) तैयारी करते है.

इस दिन देशी चिकन और काले चने कम से कम 101 स्थानीय जड़ी-बूटियों और पत्तेदार सब्जियों का उपयोग करके बनाते है. त्योहार के दूसरे दिन ‘ह्यूमन बिहू’ (Human Bihu) होता है.

इसमें अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के साथ ही जनजाति के सर्वोच्च देवता बथौ की पूजा करते है. इस त्योहार पर ग्रामीण सुबह अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलते हैं.

इसके बाद दोपहर तक, बोडो जनजाति में खाम, सिफंग, झोटा, सेरजा और जाबसिंग जैसे पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों बजाते है. क्योंकि लोग मौसम और नए साल का जश्न मनाने के लिए गाते है, नाचते है और खेलते भी है.

इन समारोहों का एक प्रमुख हिस्सा बागुरुम्बा उर्फ बागुरुंगबा है, यह एक लोक नृत्य है जिसमें तितली की गतिविधियों की नकल करना शामिल है.

बागुरुम्बा का प्रदर्शन समुदाय की महिलाओं द्वारा किया जाता है, जो जीवंत पारंपरिक पोशाक पहनती हैं, जिसमें डोखोना (ड्रेप्ड स्कर्ट), ज्वमगरा (ऊपरी शरीर के लिए एक बड़ा दुपट्टा) और अरोनई (आमतौर पर कमर के चारों ओर बंधा हुआ एक छोटा दुपट्टा) आदि शामिल होता है.

त्योहार के दूसरे दिन बोडो जनजाति की महिलाओं के साथ पुरुष भी वाद्ययंत्र बजाते हैं. ऐसा माना जाता है कि बगुरुम्बा, जिसे अपनी तितली की गतिविधियों के कारण तितली नृत्य (Butterfly Dance) भी कहते है, इस नृत्य का उद्देश्य बथौ (Bathou) यानि देवता को प्रसन्न करना है.

त्योहार के दूसरे दिन खेल

इस त्योहार के दूसरे दिन खेल का समारोहों में महत्वपूर्ण भूमिका है. इसलिए सारे गांव के लोग एकत्रित होकर बत्तख पकड़ने, अंडे की लड़ाई, मुर्गों की लड़ाई और स्प्रिंट दौड़ जैसे खेलों में भाग लेते है.

दूसरे दिन यानी ह्यूमन बिहू के दिन त्योहार खत्म होने वाला होता है और उसी दिन बोडो परिवारों में सुअर का मांस पकाया जाता है. जिसे परिवार और मित्र मिल कर खाते हैं.

जो लोग पूर्वोत्तर भारत की जनजातियों के बारे में जानते हैं उन्हें पता है कि बना राईस बियर के बोडो जनजाति का कोई भी उत्सव पूरा नहीं हो सकता है.

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