तेलंगाना (Telangana) के कुमुरामभीम आसिफाबाद (Kumurambheem Asifabad) ज़िले के पवारगुडा में एक कमरे वाला जनजातीय कल्याण प्राथमिक विद्यालय (Tribal Welfare Primary School) बना हुआ है. यहां शोर के बीच छात्रों और शिक्षकों के द्वारा बोली जा रही भाषा को पहचानने में मुश्किल होती है. पहाड़ी वन क्षेत्रों में बसा, पवारगुडा पड़ोसी महाराष्ट्र में चंद्रपुर के करीब है.
इस स्कूल में छात्रों और उनके शिक्षकों द्वारा बोली जाने वाली विभिन्न भाषाएं और टेक्स्टबुक में शामिल लिपि छात्रों के लिए एक विदेशी भाषाई वातावरण बनाती है. इस पूरे क्षेत्र के स्कूलों में यह आम बात है.
दरअसल, आदिवासी समुदायों से आने वाले ज्यादार छात्र या तो कोलामी या अंध बोलते हैं. वहीं शिक्षक, जिन्होंने वर्षों पहले मराठी में अपनी शिक्षा पूरी की थी, गोंडी बोलते है. जबकि पाठ्यपुस्तकें तेलुगु या अंग्रेजी में हैं. यहां के निवासी अपनी मूल भाषाओं के अलावा ज्यादातर मराठी बोलते हैं.
लगभग दो साल पहले आदिवासी कल्याण विभाग ने अविश्वसनीय रूप से कक्षा 3 से स्कूलों को मर्ज करने का निर्णय लिया. अधिकारियों ने शिक्षकों से कक्षा 3 के सभी बच्चों को अनिवार्य रूप से तेलुगु माध्यम आवासीय आश्रम स्कूलों में दाखिला लेने के लिए कहा है.
ऐसे में क्षेत्र में प्राथमिक विद्यालय केवल कक्षा 2 तक ही संचालित होते हैं. इसका मतलब है कि नामांकन अपेक्षाकृत कम है. सूत्रों ने बताया कि यहां के अधिकांश स्कूलों में 25 से अधिक छात्र नहीं हैं.
आदिवासी कल्याण विभाग राज्य भर में 43 हज़ार स्कूलों में से 1,920 चलाता है. हालांकि, ऐसे लगभग 40 फीसदी (765) स्कूल एक शिक्षक द्वारा प्रबंधित किए जाते हैं. जिसमें से लगभग 40 प्रतिशत यानी 765 विद्यालयों को एक शिक्षक के द्वारा संभाला जाता है.
कुमुरामभीम आसिफाबाद जिले में राज्य में सबसे अधिक 489 एकल-शिक्षक स्कूल हैं, इसके बाद नलगोंडा में 340 और भद्राद्री कोठागुडेम में 297 हैं.
वहीं गडवाल के ग्रामीण इलाकों में ऐसे 67 स्कूल पाए जा सकते हैं. इसके अलावा जिले भर में अन्य 285 स्कूल दो शिक्षकों द्वारा प्रबंधित किए जाते हैं.
इन स्कूलों में बच्चे फर्श पर बैठते हैं. बच्चों के पास बिना दरवाजे वाले बाथरूम में शौच करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. लंच ब्रेक के तुरंत बाद शिक्षक को एक मंडल-स्तरीय बैठक में भाग लेना पड़ता है, जिससे छात्रों को छुट्टी के निर्धारित समय से बहुत पहले स्कूल से जाना पड़ता है.
क्षेत्र भर के स्कूलों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. जिसमें जर्जर कक्षाएँ, अस्वच्छ शौचालय, पीने के पानी की सुविधा का अभाव और रखरखाव के लिए अपर्याप्त कर्मचारियों की समस्या शामिल है.
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे क्षेत्रों में शिक्षकों को अक्सर कम से कम संसाधनों से काम चलाना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है.