दिल्ली में गणतंत्र दिवस समारोह में इस बार छत्तीसगढ़ राज्य की झांकी में बस्तर के आदिवासियों की 600 साल पुरानी की परंपरा की झलक देखने को मिलेगी. इस झांकी में आदिवासी परंपरा मुरिया दरबार को प्रदर्शित किया जाएगा.
बस्तर का यह मुरिया दरबार हर साल दशहरा के समापन के बाद लगाया जाता है, जो करीब 75 दिनों तक चलता है और 600 साल से आदिवासी पंरपरा का एक हिस्सा है.
इस दरबार में आदिवासी स्थानीय समस्याओं पर बहस करने और समाधान खोजने के लिए पुरुषों और महिलाओं दोनों को ही सदस्य चुनते हैं और समान शाक्तियां प्रदान करते हैं.
इस बारे में मिली जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ की झांकी की थीम “बस्तर की आदिम जन संसद: मुरिया दरबार” होगी.
राज्य सरकार द्वारा झांकी में मुरिया दरबार को इसलिए चुना गया, ताकि दिखाया जा सके कि लोकतंत्र देश के इतिहास से जुड़ा है. साथ ही इस साल का थीम है – “भारत लोकतंत्र की जननी है” इसलिए भी इसे झांकी में चुना गया.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने रविवार को कहा कि यह झांकी देश के संपूर्ण आदिवासी समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है.
सीएम साय ने कहा, “इस झांकी में शामिल मुरिया दरबार सदियों से आदिवासियों के बीच प्रचलित लोकतांत्रिक भावना का प्रमाण देती है.”
उन्होंने आगे कहा कि हमारी सरकार आदिवासी समुदाय की संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों को दुनिया में परिचित करने की दिशा में लगातार प्रयास कर रही है.
इसके साथ ही यह झांकी बस्तर के आदिवासी समुदायों की महिला-प्रधान प्रकृति को भी दर्शाएगी. इसमें पारंपरिक पोशाक पहने एक महिला को अपने विचार व्यक्त करते हुए दिखाया जाएगा और झांकी के मध्य भाग में मुरिया दरबार को दर्शाया जाएगा.
इसके अलावा झांकी के पृष्ठ भाग में बस्तर की प्राचीन राजधानी बड़े डोंगर में स्थित ‘लिमाऊ राजा’ नामक स्थान को दर्शाया गया है.
लोककथाओं के अनुसार प्राचीन काल में जब कोई राजा नहीं होते थे तो आदिवासी समुदाय प्राकृतिक रूप से पत्थर से बने सिंहासन पर नींबू रखकर खुद से ही हर सामाधान का निर्णय लेते थे.