झारखंड सरकार के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग ने अगले शैक्षणिक सत्र से कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों को आदिवासी भाषाओं में पढ़ाने का एक मॉडल पेश किया है. यह मॉडल 5,600 से ज़्यादा सरकारी प्राथमिक स्कूलों में चलाया जाएगा.
केवल उन स्कूलों को इस परियोजना के लिए चुना गया है जहां बड़ी संख्या में ऐसे छात्र हैं, जिनकी पहली भाषा कोई आदिवासी भाषा है. उम्मीद की जा रही है कि इस योजना से ऐसे छात्रों की शिक्षा नींव को मज़बूत किया जा सकेगा.
झारखंड पहले ही ऐसे छात्रों के लिए आदिवासी भाषाओं में किताबें जारी कर चुका है, और इस नए मॉडल से इन किताबों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित होगा. एक बार जब छात्र भाषा की मूल बातें समझ जाएंगे, तो शिक्षा का माध्यम धीरे-धीरे हिंदी या अंग्रेज़ी में बदला जाएगा.
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (Quality Education) के राज्य समन्वयक अभिनव कुमार ने कहा, “आदिवासी भाषाओं में छात्रों को पढ़ाने से छात्रों की पढ़ाई में रुचि बढ़ेगी, और उन्हें अपने विषयों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी. फ़िलहाल संथाली, मुंडारी, हो और कुडुक में किताबें प्रकाशित की गई हैं.”
शिक्षा विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, झारखंड में लगभग 40,000 सरकारी स्कूल हैं और इन स्कूलों में 5 लाख से ज़्यादा छात्र पढ़ते हैं. वैसे तो इनमें से ज़्यादातर स्कूल हिंदी मीडियम हैं, राज्य के कुछ आदिवासी बहुल इलाक़ों में छात्रों को आदिवासी भाषाओं में बातचीत करने में ज़्यादा सुविधा होती है.
2011 की जनगणना के अनुसार, आदिवासी समुदाय झारखंड की कुल 3.29 करोड़ की आबादी का कम से कम 26.3 प्रतिशत हिस्सा हैं. राज्य के कुछ आदिवासी बहुल इलाक़ों में स्कूल ड्रॉपआउट दर भी ज़्यादा है. विषयों की ख़राब समझ की वजह से पढ़ाई में रुचि की कमी प्राथमिक शिक्षा के बाद छात्रों के स्कूल छोड़ने का एक कारण माना जा रहा है.
अब नए मॉडल के तहत किसी इलाक़े में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाली आदिवासी भाषा को वहां के स्कूलों में शिक्षा के माध्यम के रूप में किया जाएगा. उदाहरण के लिए, संथाली भाषा आमतौर पर झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में बोली जाती है, जबकि मुंडारी आमतौर पर कोल्हान में बोली जाती है, जिसमें पश्चिमी सिंहभूम और पूर्वी सिंहभूम ज़िले शामिल हैं.
Jharkhand Education Project Council यानि JEPC के एक अधिकारी के मुताबिक़ कक्षा 1 के छात्रों का पूरा सिलेबस आदिवासी भाषा में पढ़ाया जाएगा, ताकि वे हर सबजेक्ट को अच्छी तरह समझ सकें. हालांकि, कक्षा 2 में, सिर्फ़ 60 प्रतिशत सिलेबस आदिवासी भाषा में, और बाक़ी 40% अंग्रेजी या हिंदी में पढ़ाया जाएगा.