केरल के कासरकोड ज़िले की मंजेश्वरम पंचायत और वोरकाडी पंचायत के तीन गांवों में रहने वाले इकलौती आदिम जनजाति (पीवीटीजी) कोरागा समुदाय के लगभग 250 परिवार अपनी ज़मीन के मालिकाना हक़ के इंतज़ार में हैं.
हाल ही में राज्य सरकार द्वारा ज़िले में 589 टाइटल डीड दिए जाने के बावजूद, इन आदिवासी परिवारों को कोई कागज़ नहीं मिला है.
इन आदिवासी परिवारों, जिनमें से कई ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं, का दावा है कि 1913 में मद्रास प्रेसिडेंसी ने फ़ादर अलेक्ज़ैंडर कोमिसा को 308 एकड़ जमीन कोरागा समुदाय और दूसरे वंचित समूहों को सौंपने के लिए दी थी. यह ज़मीन अब मंजेश्वरम और वोरकाडी पंचायतों में फैली हुई है.
हालांकि कोरागा समुदाय के सदस्य ज़मीन के स्वामित्व का दावा करने में असमर्थ हैं, मैंगलोर डायोसीस के होली क्रॉस चर्च का दावा है कि ज़मीन उनकी ही है.
होली क्रॉस चर्च के फ़ादर वर्गीस का कहना है कि उनके पास यह साबित करने के लिए दस्तावेज़ हैं कि ज़मीन आदिवासियों और दूसरे पिछड़े समूहों के कल्याण के लिए थी. ज़मीन अब मैंगलोर डायोसीस के बिशप के नाम पर है.
फ़ादर वर्गीस ने द हिंदू को बताया, “हमने मैंगलोर डायोसीस के साथ इस मामले को उठाया है. इस मुद्दे को हल करने और ज़मीन के कब्ज़े वाले आदिवासियों को पट्टा देने के लिए एक समिति का गठन किया गया है.”
हालांकि, समुदाय के सदस्यों ने आरोप लगाया कि इस मुद्दे के समाधान के लिए चर्च या सरकारी अधिकारियों द्वारा कोई क़दम नहीं उठाया गया है.
मंजेश्वरम पंचायत की पावूर बस्ती में रहने वाले कोरगा समुदाय के एक सदस्य रॉबर्ट पेरा ने कहा कि जब भी समुदाय ने इस मुद्दे को उठाया है, तो चर्च ज़मीन पर अपने अधिकार का दावा करता है.
पंचायत और ग्राम कार्यालयों ने भी ज़मीन के संबंध में जानकारी देने से इनकार कर दिया है. रॉबर्ट पेरा ने दावा किया कि हालांकि चर्च वोरकाडी पंचायत के उदयवारु और कुंजतूर गांवों में भूमि कर का भुगतान कर रहा था, लेकिन मामला सामने आने के बाद गांव के अधिकारियों ने इसे जमा करना बंद कर दिया.
हालांकि, वोरकाडी पंचायत कार्यालय ने कर वसूलना जारी रखा है.
एक दूसरे आदिवासी, स्टीफ़न वरदा ने कहा कि चर्च ज़मीन पर दावा कर उसपर बिल्डिंग खड़ी कर रहा है, जिससे आदिवासियों का हक़ छिन रहा है. वरदा का दावा है कि विरोध करने पर चर्च के अधिकारियों ने आदिवासियों को धमकाया कि वो ज़मीन पर पूरा हक़ खो देंगे.
यहां के कोरागा आदिवासी दावा करते हैं कि अधिकारियों के मामले को गंभीरता से न लेने की वजह से बाहरी लोगों ने भी ज़मीन पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया है.
कई आदिवासियों ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय की पीवीटीजी समुदयों के लिए ख़ास परियोजना के तहत दिए गए पैसों का इस्तेमाल कर अपने लिए घरों का निर्माण किया है. इसी तरह से आदिवासी विकास विभाग के तहत समुदाय के लोगों को दिए गए फ़ंड का भी इस्तेमाल किया गया है.
हालांकि, टाइटल डीड के अभाव में, समुदाय के सदस्य LIFE मिशन परियोजना के तहत घरों के निर्माण जैसी योजनाओ का लाभ उठाने में असमर्थ हैं. संपर्क करने पर वोर्कडी और मंजेश्वरम के पंचायत सचिवों ने कहा कि उन्हें ऐसे आदिवासी समुदाय का पता ही नहीं है.
ट्राइबल एक्स्टेंशन ऑफ़िसर टी. मधु ने कहा कि अधिकारियों ने चर्च के साथ इस मुद्दे पर बात की है, और इसे सुलझाने की कोशिश हो रही है. आदिवासी दलित मुनेट्ट समिति के अध्यक्ष श्रीराम कोय्योन ने कहा कि इस मुद्दे को हल करने में सरकार की विफलता अन्याय की तरह है.
उन्होंने कहा कि भले ही ज़मीन चर्च के नाम हो, सरकार 50 एकड़ से ज़्यादा ज़मीन अपने क़ब्ज़े में रख सकती है. ऐसे में आदिवासी समुदाय को दी गई ज़मीन पर मैंगलोर डायोसीस कैसे दावा कर सकता है.