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आदिवासियों पर जेपी नड्डा और भूपेश बघेल की तक़रार में दम नहीं है

अभी तक के दावों या आरोपों में कुछ ऐसा नज़र नहीं आता है जिससे यह माना जाए कि इन राज्यों में कोई दूरगामी नीतिगत फैसले आदिवासियों के हक में लिए जाने के मामले में ये पार्टियां गंभीर हैं. इन पार्टियों के घोषणा पत्रों में शामिल वादों को लागू कराने के लिए भी जनदबाव की ज़रूरत होगी.

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) ने बीजेपी (BJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्‌डा (JP Nadda)  के दावों पर सवाल पूछा है. 

रायपुर के कार्यकर्ता सम्मेलन में नड्‌डा ने दावा किया था कि दो दिन पहले छत्तीसगढ़ में 71 आदिवासी मारे गए हैं. इस पर मुख्य मंत्री बघेल ने पूछा है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बताएं कि कहां 71 आदिवासियों की दो दिन पहले मौत हुई है?

रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान के कार्यकर्ता सम्मेलन में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कांग्रेस नेता राहुल गांधी दोनों ही की काफी आलोचना की थी. 

उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मौजूदगी पर निशाना साधते हुए उन्होंने आदिवासियों की मौत से जुड़ा बड़ा दावा कर दिया था. 

उन्होंने कहा, यहां हमारे 71 आदिवासी भाई मारे गए और भूपेश बघेल जी केरल में राहुल गांधी के साथ ताली बजा रहे थे. जेपी नड्डा का जवाब देते हुए देर रात मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट से नड्डा का वीडियो साझा किा. 

जेपी नड्डा आरएसएस की बैठक में हिस्सा लेने छत्तीसगढ़ पहुंचे हैं.

उन्होंने इस साझा करते हुए लिखा, झूठ बोले..बार-बार झूठ बोलो..जोर-जोर से बोलो। बस्तर से सरगुजा तक मेरे सभी आदिवासी भाई सुखी रहें, प्रसन्न रहें.  

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बताएं कि कहां 71 आदिवासियों की दो पहले मौत हुई है। आदिवासियों का बुरा सोचने वालों को ईश्वर सद्बुद्धि दे.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को थोडी़ नसीहत भी दी. उन्होंने कहा, भाजपा के अध्यक्ष को पहले मानचित्र का अध्ययन कर केरल और तमिलनाडु में अंतर जानना चाहिए. 

तभी तमिल, तेलगु, मलयालम और कन्नड़ में अंतर समझ में आएग.।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-RSS की समन्वय बैठक में भाग लेने आए हैं. RSS के प्रमुख मोहन भागवत की अध्यक्षता में यह बैठक शनिवार को शुरू होगी, और 12 सितम्बर तक चलेगी.  

तकरारा बढ़ेगी, कुछ बदलेगा नहीं

छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान में अगले साल में चुनाव होंगे. इसके अलावा गुजरात में इसी साल चुनाव होंगे. फिलहाल तो इन सभी राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही टक्कर दिखाई देती है. 

इन सभी राज्यों की सत्ता तक पहुंचने में आदिवासी मतदाता का साथ बड़ी ज़रूरत है. इसलिए दोनों ही पार्टियों की तरफ से आदिवासी आबादी के लिए एक के बाद एक बड़ी घोषमाएं की जा रही हैं. 

बीजेपी की तरफ से आदिवासियों का भरोसा जीतने के अभियान का नेतृत्व कोई और नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी गुजरात के आदिवासी इलाकों में जनसभाओं को संबोधित किया है. 

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के शासन में आदिवासियों पर अत्याचार का आरोप लगाने वाले जेपी नड्डा की पार्टी की राज्य में लंबे समय तक सरकार रही है. 

छत्तीसगढ़ में 15 साल सत्ता में रहने के बवाजूद बीजेपी ने राज्य में आदिवासी इलाकों के लिए बने विषेष कानून पेसा (PESA) को लागू नहीं किया था. 

बीजेपी के शासन के दौरान नक्सलवाद से निपटने के लिए सलवा जुडुम की शुरूआत की गई थी. इस अभियान की भारत ही नहीं विदेशों में भी आलोचना हुई थी. 

5 जुलाई 2011 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुडुम को ग़ैरकानूनी घोषित किया था. सलवा जुडुम कि वजह से हज़ारों विस्थापित परिवारों में से अधिकतर का अभी भी पुनर्वास नहीं हो पाया है. 

मध्य प्रदेश में भी लंबे समय से बीजेपी की ही सरकार है. बीच में कुछ महीने कांग्रेस की सरकार का समय छोड़ दें तो बीजेपी का राज मध्य प्रदेश में चल रहा है. 

लेकिन मध्य प्रदेश में भी अभी तक पेसा कानून (PESA) लागू नहीं हुआ है. 1996 में बने इस कानून को अब राज्य में लागू करने का ऐलान हुआ है. हांलाकि अभी भी राज्य में पेसा से जुड़े नियम नहीं बने हैं. 

गुजरात में कुछ महीने पहले ही नर्मदा-पार-तापी नदी जोड़ परियोजना को थोपे जाने के विरोध में आदिवासियों ने लंबा आंदोलन चलाया था. 

इस आंदलोन के दबाव में राज्य सरकार ने फिलहाल इस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया है.

आदिवासी मसलों पर संवेदनशीलता और ज़िम्मेदारी के मामले में कांग्रेस का दामन भी बहुत साफ नहीं है. छत्तीसगढ़ में पेसा कानून (PESA) लागू करने की पहल ज़रूर की गई है. 

लेकिन हसदेव अरण्य में कोयला खादान के मामले में राज्य सरकार के दामन पर कालिख लग गई है. जनदबाव में बेशक राज्य सरकार ने फिलहाल कोयला खादान के काम को मंजूरी देने के बाद इसे फिलहाल रोक दिया है. लेकिन आदिवासी अभी भी आश्वास्त नहीं है कि उनकी जमीन और जंगल बच गए हैं. 

गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव की वजह से आदिवासी चर्चा में रहेगा. बीजेपी और कांग्रेस दोनों के पास इस लिहाज़ से दो-दो राज्यों में अपनी सरकार बचाने की चुनौती भी है.

लेकिन अभी तक के दावों या आरोपों में कुछ ऐसा नज़र नहीं आता है जिससे यह माना जाए कि इन राज्यों में कोई दूरगामी नीतिगत फैसले आदिवासियों के हक में लिए जाने के मामले में ये पार्टियां गंभीर हैं.

इन सभी राज्यों में जो थोड़ा बहुत आदिवासियों के लिए हुआ है वो पार्टियों की भली नीयत की वजह से नहीं बल्कि जनदबाव की वजह से हुआ है. 

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