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कर्नाटक: खानाबदोश जनजातियों ने अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए मंत्री का घेराव करने की कोशिश की

आंदोलन की अगुवाई कर रही दलित संघर्ष समिति (डीएसएस) के चोरनल्ली शिवन्ना ने पत्रकारों को स्पष्ट किया कि उनका इरादा कन्नड़ राज्योत्सव दिवस समारोह को बाधित करने का नहीं था. बल्कि सोमशेखर का घेराव करना था जिन्होंने उनकी दुर्दशा से आंखें मूंद रखी है.

मैसूर के बाहरी इलाके में बसे एकलव्यनगर में रहने वाले खानाबदोश जनजातियों के परिवारों ने मंगलवार को मैसूर में राज्योत्सव दिवस समारोह में ज़िले के प्रभारी मंत्री एस टी सोमशेखर को उनकी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए घेराव करने की कोशिश की.

हक्की पिक्की, डोंबी दासा, शील क्यथा और बुडबुदुके के रूप में खानाबदोश जनजातियों के 100 से अधिक परिवार पिछले 50 दिनों से मैसूर में उपायुक्त कार्यालय के पास अपने आंदोलन के तहत  एकलव्यनगर में उनके घरों को हक्कू पात्र या टाइटल डीड देने के लिए डेरा डाले हुए हैं.

मैसूरु महल के बलराम गेट के पास राज्योत्सव दिवस समारोह के अंत में, खानाबदोश जनजातियों के परिवार जिनमें पुरुष, महिलाएं और बच्चे शामिल थे. अचानक वो भीड़ से निकल आए और सोमशेखर का घेराव करने की कोशिश की. तुरंत, पुलिस ने मंत्री के चारों ओर एक सुरक्षा घेरा बना दिया और कार्यक्रम स्थल से बाहर निकलने का रास्ता बना लिया.

लेकिन प्रदर्शनकारी उनकी समस्याओं का समाधान नहीं करने पर मंत्री की आलोचना करते हुए जमीन पर बैठ गए. उन्होंने उनकी समस्याओं की उपेक्षा करने के लिए सरकार के खिलाफ नारे भी लगाए.

आंदोलन की अगुवाई कर रही दलित संघर्ष समिति (डीएसएस) के चोरनल्ली शिवन्ना ने पत्रकारों को स्पष्ट किया कि उनका इरादा कन्नड़ राज्योत्सव दिवस समारोह को बाधित करने का नहीं था. बल्कि सोमशेखर का घेराव करना था जिन्होंने उनकी दुर्दशा से आंखें मूंद रखी है.

उन्होंने कहा, “हम पिछले 50 दिनों से उपायुक्त कार्यालय के पास धरने पर बैठे हैं. हमारे धैर्य की भी एक सीमा होती है. हम भी कन्नड़ हैं. हम कन्नड़ बोलते हैं और कन्नड़ में पढ़ते और लिखते भी हैं.”

शिवन्ना ने दावा किया कि उन्होंने सोमशेखर से मिलने के लिए पहले कई प्रयास किए लेकिन सब बेकार साबित हुआ. उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि मंत्री ने खुद को हमारे लिए उपलब्ध नहीं कराया था. उन्होंने आज भी ऐसा ही किया है.

उन्होंने कहा कि जिले के प्रभारी मंत्री का दायित्व न सिर्फ दशहरा कार्यक्रम आयोजित करना और सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाषण देना है, बल्कि जिले के गरीब लोगों की समस्याओं को हल करना भी है. 50 दिन बीत जाने के बाद भी अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों से पूछताछ करने की जहमत नहीं उठाई. उन्होंने सवाल किया, “क्या जिला प्रशासन को खुद पर शर्म नहीं आती?”

महिलाओं और बच्चों सहित प्रदर्शनकारियों को बाद में पुलिस वाहनों में बांधकर ले जाया गया. उन्हें हटाए जाने से पहले, शिवन्ना ने कहा कि अगर सरकार ने सकारात्मक रूप से मांगों का जवाब नहीं दिया तो आंदोलन तेज़ कर दिया जाएगा.

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