HomeAdivasi Dailyआदिवासियों की ज़मीन हड़पने के मामलों की जाँच करेगा केरल मानवाधिकार आयोग

आदिवासियों की ज़मीन हड़पने के मामलों की जाँच करेगा केरल मानवाधिकार आयोग

अट्टापाड़ी की आदिवासी बस्तियों में स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव एक बड़ा मसला रहा है. जुलाई 2017 से लेकर अगस्त 2019 के बीच यानि लगभग दो साल और एक महीने में यहाँ की बस्तियों में 23 नवजात बच्चों की मौत हो गई थी.

केरल का राज्य मानवाधिकार आयोग अट्टापडी में आदिवासियों की जमीन हड़पने के आरोपों की जांच करेगा. मानवाधिकार आयोग को शिकायत मिली है कि भू माफ़िया आदिवासियों की ज़मीन क़ब्ज़ा कर रहा है. राज्य मानवाधिकार आयोग के सदस्य के. बैजूनाथ ने कहा कि आयोग की जांच शाखा जांच करेगी. 

उन्होंने बुधवार को अगाली, अट्टापडी में आयोजित बैठक के दौरान आदिवासी भूमि हड़पने की शिकायतों की जांच के बाद जांच के आदेश दिए.

आयोग ने जिला स्वास्थ्य विभाग को अट्टापडी के आदिवासियों के लिए लागू की जा रही योजनाओं के बारे में एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है.  उन्होंने आदेश दिया है कि रिपोर्ट आयोग की अगली बैठक में प्रस्तुत की जानी चाहिए.

इसके अलावा आयोग ने बैंक अधिकारियों से प्रधानमंत्री रोजगार योजना (पीएमआरवाई) योजना के तहत पात्र लोगों के लिए बैंक ऋण सुनिश्चित करने को भी कहा है. आयोग ने इस बारे में भी लीड बैंकों को इस बारे में अगली बैठक में रिपोर्ट देने को कहा है.

आयोग ने आदिवासियों पर पुलिस द्वारा ज्यादतियों के खिलाफ कई शिकायतों की जांच की. श्री बैजूनाथ ने पहले दर्ज की गई लगभग 100 शिकायतों के अलावा 20 नई शिकायतों की जांच की है. आयोग की अगली बैठक 14 जून को पलक्कड़ में होगी.

पलक्कड़ के अट्टापाड़ी ताल्लुक़ में क़रीब 192 आदिवासी बस्तियाँ हैं. इन बस्तियों में कुल 10549 परिवारों की कुल आबादी क़रीब 32614 बताई जाती है. इस ब्लॉक की कुल आबादी का क़रीब 44 प्रतिशत आबादी आदिवासी है.

अट्टापाड़ी की आदिवासी बस्तियों में स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव एक बड़ा मसला रहा है. जुलाई 2017 से लेकर अगस्त 2019 के बीच यानि लगभग दो साल और एक महीने में यहाँ की बस्तियों में 23 नवजात बच्चों की मौत हो गई थी.

इन मौतों की वजह से यह इलाक़ा चर्चा में रहा था. उस समय राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस मामले में दखल दिया था. आयोग के दखल देने के बाद ही पीड़ित परिवारों को कुछ आर्थिक मदद भी दी गई थी. 

हालाँकि आयोग के दखल देने के बावजूद परिवारों को मदद देने में दो साल से ज़्यादा का समय लग गया था. आख़िर दो साल बाद इस साल ही सरकार ने उन आदिवासी परिवारों को एक-एक लाख रूपये की मदद दी थी जिनके बच्चों की मौत हुई थी. 

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