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महाराष्ट्र: 5 सालों में 593 आदिवासी बच्चों ने गंवाई अपनी जान, आक्समिक कारणों से हुई मौत

इस 593 बच्चों में से 544 की मौत उनके माता-पिता के घर पर हुई है. शेष 49 की मौत स्कूलों में हुई.

महाराष्ट्र (Maharashtra) में पिछले 5 सालों में करीब 600 आदिवासी बच्चों (Tribal Children) ने अपनी जान गंवाई है. राज्य के जनजातीय विकास मंत्री विजयकुमार गावित (Vijay Kumar Gavit) ने शुक्रवार को विधान परिषद को ये जानकारी दी. मंत्री ने बताया कि पिछले पांच वर्षों में राज्य के 593 आदिवासी बच्चों की मौत सर्पदंश, आत्महत्या और बिजली के झटके सहित आकस्मिक कारणों से हुई है.

मंत्री ने कहा, “साल 2017-18 और 2021-22 के बीच विभिन्न कारणों से 593 आदिवासी बच्चों की मौत हुई है, जिनमें से 544 की मौत उनके माता-पिता के घर पर हुई है. शेष 49 की मौत स्कूलों में हुई. राज्य में 499 सरकारी आश्रम शालाएं या आदिवासी स्कूल हैं.”

उन्होंने बताया कि ये सभी मौतें दुर्घटनाओं में हुई है. डूबना, बिजली का करंट लगना, आत्महत्या और सर्पदंश आदि इनका प्रमुख कारण हैं.

उप सभापति नीलम गोरहे द्वारा जारी निर्देश के अनुसार जनजातीय विकास मंत्री विजयकुमार गावित उच्च सदन में बोल रहे थे.

इस दौरान उन्होंने कहा कि छात्रों की आत्महत्या के मामले में राज्य सरकार ने बेंगलुरू में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान (निम्हान्स) को अपने साथ जोड़ा है.

गवित ने कहा, “सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के दो सेवानिवृत्त अधिकारियों को आत्महत्या से मरने वाले छात्रों के माता-पिता से बात करने और इसके पीछे के कारणों को नोट करने के लिए कहा गया है. राज्य निम्हान्स के मार्गदर्शन के अनुसार अगला कदम उठाएगा.”

मंत्री ने कहा कि कुछ माता-पिता अपने बीमार बच्चों को पास के डॉक्टरों के पास ले जाने के बजाय झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी मौतें होती है.

इसके साथ ही मंत्री ने ये भी बताया कि सितंबर, 2022 में जिस आदिवासी लड़की की मौत हुई थी वह एक बंधुआ मजदूर के तौर पर काम करती थी.

नासिक में करीब छह महीने पहले दस साल की एक आदिवासी लड़की की मौत होने की घटना के बारे में मंत्री से पूछा गया था.

सदन में एकनाथ खडसे, शशिकांत शिंदे और कई अन्य विपक्षी सदस्यों ने मंत्री पर दबाव बनाया कि वह इस मामले पर जवाब दें और यह बताएं कि क्या लड़की को बेचा गया था.

इस पर मंत्री ने कहा, ‘‘लड़की को बेचा नहीं गया था. वह एक बंधुआ मजदूर थी. वह अहमदनगर में एक परिवार के यहां काम करती थी.’’

दरअसल, पिछले साल सितंबर में नासिक के इगतपुरी तालुका के उभाडे गांव के 8 आदिवासी बच्चे लापता हो गए थे और 10 साल की एक बच्ची की मौत हो गई थी जिसके बाद ये खबर सुर्खियों में आई थी.

खबरों के मुताबिक कातकरी समुदाय के गरीब माता-पिता ने पैसों के लिए इन बच्चों को अहमदनगर में बंधुआ मजदूर के तौर पर काम करने के लिए गिरवी रखते थे. इन बच्चों को भेड़ चराने वाले अपने साथ ले जाते थे.

मां-बाप के कहने पर दलाल इन बच्चों को भेड़ और बकरी मालिकों तक पहुंचाते थे. इसके बदले में बच्चों के घरवालों को कुछ पैसे और दलालों को कमीशन मिलता था.

इस बच्ची को भी अहमदनगर जिले में काम के लिए ले जाया गया था, लेकिन जब वह बहुत बीमार हो गई तो उसके नियोक्ता ने उसे उसके मां-बाप के घर के बाहर छोड़ दिया था. लड़की के शरीर पर चोट के निशान थे. बाद में उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई थी.

इस खबर के मीडिया में आने के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने इस मामले पर स्वसंज्ञान लिया था. आयोग ने नासिक और अहमदनगर के डीएम और एसपी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था.

इगतपुरी तालुका में उभाडे गांव में कातकरी समाज के 26 आदिवासी परिवार रहते है. आदिवासी कल्याण के लिए सरकार द्वारा घोषित कई योजनाओं के बावजूद ये समुदाय बिना किसी मदद के अत्यधिक गरीबी में जी रहा है.

इस पूरे मामले में सरकार का रवैया बेहद लापरवाही का रहा है. विधान परिषद में इस मसले पर सरकार ने जो कदम उठाने का आश्वासन भी दिया है, वह पर्याप्त नहीं है.

सरकार की बातों से तो ऐसा लगता है कि जैसे वह उन कारणों से अनभिज्ञ है जिनकी वजह से आदिवासी बच्चों की मौत हो रही है या फिर आदिवासी मानव तस्करी के शिकार बन रहे हैं.

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