HomeAdivasi Dailyमणिपुर के चुराचांदपुर में क्यों सरकार के विरोध में उतरे आदिवासी

मणिपुर के चुराचांदपुर में क्यों सरकार के विरोध में उतरे आदिवासी

जंगल नई सभ्यता की तरह-तरह की जरूरतों को पूरा करने और पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी हो गए हैं. वहीं आदिवासी विकास के रास्ते में बाधक और अवांछनीय की तरह देखा जाता है. मणिपुर सरकार राज्य में वनों और संरक्षित भूमि के साथ वेटलैंड्स का सर्वे करा रही है. सरकार का कहना है कि इन जगहों पर अवैध रुप से प्रवासी बस रहे हैं, जिससे वनों के साथ ही वेटलैंड्स को नुकसान पहुंच रहा है. वहीं आदिवासियों का दावा है कि इस सर्वे से उनके हक छीने जा रहे हैं और चर्चों को तोड़ा जा रहा है.

मणिपुर (Manipur) में आरक्षित वन क्षेत्रों से किसानों और आदिवासियों को बेदखल करने के खिलाफ इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (Indigenous Tribal Leaders Forum) द्वारा चुराचांदपुर जिले में आज 8 घंटे के बंद ने आदिवासी बहुल दक्षिणी मणिपुर जिले में सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया.

जिला मुख्यालय न्यू लमका शहर, जहां मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह पहले एक कार्यक्रम में शामिल होने वाले थे वो सुनसान नजर आया. क्योंकि सुरक्षाकर्मियों को छोड़कर सभी निजी और सार्वजनिक वाहन सड़क से नदारद थे.

पुलिस ने कहा कि सभी दुकानों के शटर गिराकर बाजार बंद कर दिए गए हैं. प्रदर्शनकारियों को सुबह सड़क जाम करते और टायर जलाते देखा गया था. उन्होंने न्यू लमका शहर के प्रवेश द्वार पर भी मलबा जमा कर दिया था लेकिन बाद में पुलिस टीमों ने इसे साफ करा दिया.

दरअसल, चुराचांदपुर में उग्र भीड़ द्वारा एक आयोजन स्थल पर तोड़फोड़ करने और उसे आग लगाने के बाद निषेधाज्ञा आदेश लागू किया गया. इसके अलावा मोबाइल इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गई है. 

चुराचांदपुर के जिलाधिकारी ने पुलिस अधीक्षक से मिली रिपोर्ट के आधार पर आदिवासी बहुल जिले में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि क्षेत्र में शांति भंग होने की आशंका है और लोगों के जीवन और सार्वजनिक संपत्ति को गंभीर खतरा है.

राज्य के गृह विभाग द्वारा जारी एक आदेश में कहा गया है, ‘‘सोशल मीडिया अफवाह फैलाने वालों के लिए एक हथियार बन गया है और इसका इस्तेमाल आम जनता को भड़काने में किया जा रहा है जिसका चुराचांदपुर तथा फेरजॉल जिलों में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर असर पड़ सकता है.’’

गृह विभाग द्वारा जारी आदेश में कहा गया है, ‘‘शांति और व्यवस्था को बाधित करने से रोकने के लिए चुराचांदपुर और फेरजॉल जिलों में तत्काल प्रभाव से अगले पांच दिन तक मोबाइल इंटरनेट सेवाएं निलंबित रहेगी.’’

इससे पहले, चुराचांदपुर के अतिरिक्त उपायुक्त एस थिनलालजॉय गांगते ने आयुक्त (गृह) को एक पत्र लिखकर सूचित किया, ‘‘इंडिजीनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने पूर्ण बंद का आह्वान किया है और सोशल मीडिया तथा नेटवर्किंग साइट के जरिए लोगों को इकट्ठा किए जाने की आशंका है जिससे चुराचांदपुर जिले में गैरकानूनी गतिविधियां तथा अशांति बढ़ सकती है.’’

वहीं फोरम ने आरोप लगाया कि मणिपुर में आरक्षित वन क्षेत्रों से किसानों और अन्य आदिवासी निवासियों को निकालने के लिए चलाए जा रहे बेदखली अभियान के विरोध में बार-बार ज्ञापन सौंपे जाने के बावजूद सरकार ने लोगों की दुर्दशा को दूर करने की कोई इच्छा या मंशा होने के संकेत नहीं दिए हैं.

मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के न्यू लमका में भीड़ ने एक कार्यक्रम के आयोजन स्थल पर बृहस्पतिवार रात तोड़फोड़ और आगजनी की. 

क्यों हो रहा है विरोध 

मणिपुर सरकार राज्य में वनों और संरक्षित भूमि के साथ वेटलैंड्स का सर्वे करा रही है. सरकार का कहना है कि इन जगहों पर अवैध रुप से प्रवासी बस रहे हैं, जिससे वनों के साथ ही वेटलैंड्स को नुकसान पहुंच रहा है. वहीं आदिवासियों का दावा है कि इस सर्वे से उनके हक छीने जा रहे हैं और चर्चों को तोड़ा जा रहा है.

दरअसल, बेदखली के खिलाफ आदिवासी काफी समय से राज्य में प्रदर्शन कर रहे हैं. इतना ही नहीं उन्होंने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए दस मार्च को संसद के पास जंतर-मंतर पर एक विरोध प्रदर्शन किया गया और प्रधानमंत्री कार्यालय को ज्ञापन सौंपा था.

ये विरोध प्रदर्शन ‘कुकी’ (Kuki) की दिल्ली इकाई द्वारा किया गया था. इसके अलावा इसी तरह मणिपुर में भी छात्र संगठनो के साथ ही आदिवासी नागरिक संगठनों ने एक साझा मंच बनाकर विरोध प्रदर्शन किया था.

प्रदर्शनकारियों का कहना था कि राज्य और केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा अमानवीय और क्रूर तरीके से मणिपुर में जनजातीय गांवों से-आज़ादी के पहले से रह रहे-लोगों को बेदखल किया जा रहा है. प्रदर्शनकारियों ने इसे पूरी तरह से अवैध बेदखली बताते हुए तुरंत इस कदम को वापस लेने की मांग की थी.

प्रदर्शनकारियों के मुताबिक मणिपुर सरकार ने 20 फरवरी, 2023 को मणिपुर के चुराचंदपुर जिले के हेंगलेप (Henglep) सब-डिवीजन के अंतर्गत आने वाले के. सोंगजैंग (K. Songjang) गांव के ग्रामीणों को बेदखल कर दिया था. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि सरकार ने संरक्षित वन के दायरे में रहने के बहाने उन्हें उनके घरों से बेघर कर दिया. इस दौरान लगभग 20 घरों को सरकारी बुलडोज़र से पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया.

आदिवासी और बेदखली

जंगल नई सभ्यता की तरह-तरह की जरूरतों को पूरा करने और पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी हो गए हैं. वहीं आदिवासी विकास के रास्ते में बाधक और अवांछनीय की तरह देखा जाता है.  

साल 1980 में लागू हुए ‘वन संरक्षण अधिनियम’ के बाद साल 2004 तक देश की 11 हजार 282 विकास परियोजनाओं के लिए 9.81 लाख हेक्टेयर वनभूमि का गैर-वनीकरण किया गया. साल 2004 से 2013 के बीच 4.07 लाख हेक्टेयर वनभूमि विकास परियोजनाओं एवं तेल और खनन के लिए गैर-वनीकरण में परिवर्तित की गईं.

‘केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री’ ने 20 मार्च 2020 को संसद में जानकारी दी कि 2014 – 15 से 2018-19 के बीच ‘वन संरक्षण अधिनियम– 1980’ के तहत 69,414.32 हेक्टेयर वनभूमि, 3616 परियोजनाओं के लिए दी गई. 

हाल के 2023 के संसद के शीतकालीन सत्र में पर्यावरण राज्यमंत्री अश्विनीकुमार चौबे ने सदन में जानकारी दी कि पिछले पांच सालों में 88,903.80 हेक्टेयर वनभूमि अलग- अलग प्रोजेक्ट के लिए गैर-वानिकी उद्देश्य से परिवर्तित की गई है. मध्यप्र देश के संदर्भ में देखें तो 1980 से 2021-22 तक विभिन्न परियोजनाओं के लिए 2,87,336.711 हेक्टेयर वनभूमि, गैर-वनभूमि में परिवर्तित की गई है.

वनक्षेत्र में आयी कमी, जंगल की जमीन का अवमूल्यन तथा परती भूमि में आयी बढत के कारण ‘पर्यावरण संरक्षण’ या पर्यावरण को बचाने की आवाजें तेज हुई हैं. इसी तरह ‘ग्लोबल वार्मिंग’ का मुद्दा पर्यावरण के क्षरण की तरफ ध्यान खींचता है.

पर्यावरण संरक्षणवादियों का उद्देश्य है कि जंगल में बसे आदिवासी समुदाय के पारम्परिक अधिकारों को आमान्य कर जंगल से बेदखल किया जाए ताकि जंगलों को फिर से हरा – भरा किया जा सके और उसमें वन्यजीवों का संरक्षण किया जा सके.

आज भारत में पूरे वनक्षेत्र के सिर्फ 4 प्रतिशत पर संरक्षित (अभ्यारण्य, राष्ट्रीय-उद्यान, बॉयोस्फियर) क्षेत्र हैं. इसे 16 प्रतिशत तक बढाने की योजना पर काम चल रहा है. इसलिए मध्य प्रदेश में 10 ‘राष्ट्रीय-पार्क’ और 25 ‘अभयारण्य’ के बावजूद 2021 में 11 नये ‘अभयारण्य’ बनाने की दिशा में काम हो रहा है.

10 ‘राष्ट्रीय-पार्क’ में से 6 को ‘टाईगर रिजर्व’ घोषित कर ‘कोर’ एवं ‘बफर’ जोन के नाम पर सैकड़ों आदिवासी गांवों को हटाया जा रहा है. ‘रातापानी (रायसेन एवं सीहोर जिले में फैले) अभयारण्य’ को ‘टाईगर रिजर्व’ बनाने के नाम पर 32 गांवों के हजारों परिवारों को हटाए जाने की कार्यवाही प्रगति पर है.

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