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मणिपुर: आदिवासी विधायकों ने शांति और न्याय के लिए केंद्र से रोडमैप मांगा

मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद से दो मंत्रियों सहित ये दस विधायक सरकारी बैठकों और विधानसभा सत्रों में भाग लेने से बच रहे हैं.

संघर्षग्रस्त मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू होने के कुछ दिनों बाद दस आदिवासी विधायकों ने उम्मीद जताई है कि अब केंद्र शांति के लिए एक व्यापक राजनीतिक रोडमैप तैयार करेगा.

इन विधायकों ने मणिपुर विधानसभा को निलंबित करने के केंद्र के निर्णय को स्वीकार करते हुए आशा व्यक्त की कि सरकार बातचीत के माध्यम से समाधान के तहत शांति और न्याय के लिए एक व्यापक राजनीतिक रोडमैप तैयार करेगी.

कुकी-ज़ो के दस विधायकों, जिनमें से सात भाजपा के हैं. ये सभी लंबे वक्त से राज्य में आदिवासियों के लिए एक अलग प्रशासन या विधानसभा सहित केंद्र शासित प्रदेश की मांग कर रहे हैं.

मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद से दो मंत्रियों सहित ये दस विधायक सरकारी बैठकों और विधानसभा सत्रों में भाग लेने से बच रहे हैं.

वहीं इन दस विधायकों ने एक संयुक्त बयान में कहा, “हम, मणिपुर के 10 विधायक, विधानसभा को निलंबित करने के केंद्र के फैसले को स्वीकार करते हुए उम्मीद जताते हैं कि भारत सरकार बातचीत के जरिए समाधान के तहत शांति और न्याय के लिए एक व्यापक राजनीतिक रोडमैप तैयार करेगी.”

उन्होंने कहा कि हम संघर्ष प्रभावित और आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की पीड़ा को समाप्त करने के लिए समयबद्ध उपायों की भी आशा करते हैं.

मणिपुर में लगा राष्ट्रपति शासन

उधर एन बीरेन सिंह के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद कई दिनों की राजनीतिक अनिश्चितता के बाद गुरुवार को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.

लंबे समय से जातीय हिंसा के दौर से गुजर रहे मणिपुर में आखिरकार 13 फरवरी, 2025 को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. शायद केंद्र के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.

दरअसल, पिछले डेढ़ वर्ष से भी अधिक समय से मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने की मांग की जा रही थी, लेकिन उन पर दबाव तब बना, जब राजग की सहयोगी पार्टी एनपीपी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दे दिया.

नए मुख्यमंत्री के चयन के लिए सहमति न बनने पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के अलावा केंद्र के पास कोई रास्ता नहीं बचा था.

मणिपुर में 3 मई 2023 से आदिवासी कुकी-ज़ो और गैर-आदिवासी मैतेई लोगों के बीच जातीय हिंसा में कम से कम 258 लोग मारे गए हैं और एक हजार से अधिक लोग घायल हुए हैं. वहीं 60 हज़ार से अधिक लोग अपने घरों और गांवों से विस्थापित हो गए हैं जो विभिन्न जिलों में राहत शिविरों में रह रहे हैं.

दोनों समुदायों के बीच जातीय हिंसा 3 मई, 2023 को तब भड़क उठी, जब मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ का आयोजन किया गया था.

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