तमिलनाडु के कई एकलव्य मॉडल रेज़िडेंशियल स्कूल (EMRS) में कर्मचारियों और ज़रूरी बुनियादी ढांचे की कमी मुश्किलें बढ़ा रहा है.
राज्य में भले ही पिछले तीन सालों में इन स्कूलों में दाखिलों की दर में दूसरे राज्यों के मुक़ाबले बढ़ोतरी हुई है, लेकिन कई समस्याओं को दूर किया जाना अभी बाकि है.
तमिलनाडु में आठ ऐसे स्कूलों में से एक, महाबलीपुरम का ईएमआरएस मुख्य रूप से चेन्नई, कांचीपुरम, तिरुवल्लूर, चेंगलपट्टू और वेल्लोर के आदिवासियों बच्चों की शिक्षा ज़रूरतें पूरा करता है.
इस स्कूल में 11वीं कक्षा के लिए एक भी टीचर नहीं है. छात्रों ने कहा कि ज़्यादातर दिन वो हॉस्टल में खेलने में समय बिताते हैं. 11वीं की एक छात्रा ने स्थानीय मीडिया को बताया, “हमें नहीं पता कि टीचर के न होने से हम अगले साल बोर्ड की परीक्षा कैसे दे पाएंगे.”
स्कूल में 9वीं और 10वीं के लिए भी ज़रूरत के हिसाब से टीचर नहीं हैं.
फ़िलहाल स्कूल में 149 आदिवासी छात्र हैं, जिनमें से 13 ग्यारहवीं में हैं. ज़्यादातर बच्चे इरुला आदिवासी समुदाय से हैं, जबकि कुछ नारिकुरवर और मलई कुरवर समुदाय से हैं.
स्कूल के एक टीचर ने बताया, “अगले साल, 11वीं और 12वीं में 46 छात्र होंगे. सरकार को गणित, विज्ञान, कॉमर्स, कंप्यूटर, अंग्रेजी और भाषा के लिए कम से कम एक टीचर की नियुक्ति करनी चाहिए.”
स्कूल में एक चौकीदार, एक लाइब्रेरियन, एक सहायक रसोइया और लड़कों के हॉस्टल का वॉर्डन की भी नियुक्ति नहीं हुई है. स्कूल के कंपाउंड की दीवार भी नहीं है, जिससे छात्रों की सुरक्षा ख़तरे में पड़ जाती है.
इसके अलावा, छात्रों की पीने के साफ़ पानी तक भी पहुंच नहीं है. स्कूल में खेलकूद की भी कोई सुविधा नहीं है. स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर कहते हैं कि उनकी 13,000 रुपए का मासिक वेतन काफ़ी नहीं है.
जनजातीय कल्याण निदेशालय के एक अधिकारी ने एक अखबार को बताया, “हम दूसरे इलाक़े में एक अलग कैंपस खड़ा कर रहे हैं. स्कूलों से जुड़े सभी मुद्दों का समाधान किया जाएगा.”
एकलव्य मॉडल रेज़िडेंशियल स्कूल (EMRS) आदिवासी इलाक़ों में अच्छी क्वालिटी की शिक्षा देने के लिए बनाए जाते हैं. इन स्कूलों के लिए केन्द्र सरकार की तरफ़ से पैसा दिया जाता है.
इन स्कूलों को जवाहर नवोदय विद्यालयों की तर्ज़ पर तैयार किया गया है.