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माओवादियों ने सुरजागढ़ लौह अयस्क खदान में काम करने वाले आदिवासियों को दी चेतावनी

उपलब्ध जानकारी के मुताबिक भाकपा (माओवादी) ने न सिर्फ आदिवासियों को खनन स्थल पर काम करने के खिलाफ चेतावनी दी बल्कि कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) पहल के हिस्से के रूप में कंपनी द्वारा स्थापित की गई एक सिलाई यूनिट में महिला श्रमिकों को भी जाने से रोकने के लिए कहा है.

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली, रघु और गिरिधर में प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के वरिष्ठ सदस्यों ने छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे सुरजागढ़ खदानों का विरोध किया है. माओवादियों ने यहां काम करने वालों को चेतावनी दी है कि वो इन खदानों में काम न करें.

उन्होंने एटापल्ली तहसील में पुरसालगोंडी ग्राम पंचायत के तहत 13 गांवों के आदिवासियों को चेतावनी दी है. इस चेतावनी के बाद बहुत कम लोग काम करने जा रहे हैं. वर्तमान में लगभग 3,500 स्थानीय लोग इन खदानों में काम कर रहे हैं, जिनमें से ज्यादातर आदिवासी हैं.

लॉयड्स मेटल्स एंड एनर्जी लिमिटेड (LMEL) जो पहले से ही आदिवासी बहुल जिले में एक लौह अयस्क खदान का संचालन कर रही थी और अब आष्टी में एक इस्पात संयंत्र स्थापित कर रही है. यह गढ़चिरौली में पहला बड़ा उद्योग होगा क्योंकि यह राज्य का उद्योग रहित जिला है.

उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जो जिले के संरक्षक मंत्री भी हैं, उन्होंने दावा किया कि सुरजागढ़ लौह अयस्क साइट में खनन और अन्य क्षेत्रों में 35 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक का निवेश प्राप्त करने की क्षमता है और लगभग 35 हज़ार रोजगार के अवसर भी इससे मिलेगा.

यहां पाया जाने वाला लौह अयस्क उच्च श्रेणी का है लेकिन माओवादी की धमकियों और दूसरी कई वजहों से निवेशक वहां आने से कतराते थे. करीब 145 साल पहले जमशेदजी टाटा ने विदर्भ क्षेत्र की खोज की थी और वे यहां की खनिज संपदा से इतने प्रभावित हुए थे कि वे सुरजागढ़ को अपने इस्पात उद्यम की जगह बनाना चाहते थे.

हालांकि, रेलवे लाइन नहीं होने के कारण और उस समय की सरकार के ठंडे रवैये के चलते विदर्भ ने बड़े अवसर को खो दिया. इसके बाद जमशेदपुर (टाटा नगर) को उनके स्टील प्लांट की जगह के रूप में चुना गया. लेकिन अब सरकार बड़े पैमाने पर खनन शुरू करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. और उनका दावा है कि इससे जिले में निवेश की अपार संभावनाएं हैं.

उपलब्ध जानकारी के मुताबिक भाकपा (माओवादी) ने न सिर्फ आदिवासियों को खनन स्थल पर काम करने के खिलाफ चेतावनी दी बल्कि कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) पहल के हिस्से के रूप में कंपनी द्वारा स्थापित की गई एक सिलाई यूनिट में महिला श्रमिकों को भी जाने से रोकने के लिए कहा है.

खनन इकाई के अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने इस चेतावनी के बाद श्रमिकों की उपस्थिति में भारी गिरावट देखी है. अल्ट्रा-लेफ्ट विंग ने ग्रामीणों से कहा था कि आने वाले दिनों में उनके द्वारा किए जा रहे बड़े पैमाने के आंदोलन में प्रत्येक परिवार के कम से कम एक सदस्य को शामिल होना चाहिए.

साथ ही यह पता चला है कि कंपनी से “संरक्षण धन” लेने के आरोपों का सामना कर रहे माओवादियों ने परियोजना का विरोध करना शुरू कर दिया है क्योंकि कंपनी ने प्रति वर्ष 3 से 10 टन उत्पादन बढ़ाने की योजना की घोषणा की है. ऐसे में माना जा रहा है कि माओवादी कंपनी से और पैसा वसूलना चाहते हैं.

इस बीच गढ़चिरौली के एसपी नीलोत्पल ने स्वीकार किया कि उन्हें भी माओवादियों द्वारा ग्रामीणों को धमकी देने की सूचना मिली थी.

एसपी नीलोत्पल ने MBB से बातचीत में कहा, “हम गांव-गांव जाकर आदिवासियों और गांव प्रधानों से मिल रहे हैं और उन्हें जागरुक कर रहे हैं कि वो काम पर लौटे नहीं तो उनका जीवनयापन कैसे होगा. इन खदानों पर ग्रामीणों को सुरक्षा प्रदान की जा रही है. साथ ही इस क्षेत्र में कड़ी निगरानी भी रखी जा रही है. अब धीरे-धीरे लोग काम पर लौटने लगे हैं.”

वहीं पुलिस ने भी ‘ग्राम भेट’ के दौरान लोगों को जागरुक करना शुरू कर दिया है. उन्होंने लोगों को बताना शुरू कर दिया है कि अगर वो चेतावनी से डरते हैं तो उन्हें इससे आजीविका का नुकसान होगा और एक स्थिर आय का स्रोत खत्म हो सकता है.

वामपंथी चरमपंथियों ने पहले सूरजागढ़ में खनन गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाते हुए स्थानीय विधायक धर्मरावबाबा अत्राम और उनके परिवार को लक्षित करने वाले पर्चे और पोस्टर बांटे थे. महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री अत्राम का 90 के दशक में लाल विद्रोहियों ने अपहरण कर लिया था. जब राज्य सरकार ने माओवादियों को बदले में जेल से रिहा किया था तब सीपीआई (एमएल) के तत्कालीन पीपुल्स वार ग्रुप ने उन्हें रिहा कर दिया था.

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