HomeAdivasi Dailyजलगाँव:आदिवासियों की जमीन अवैध रूप से खरीदने के मामले में जिलाधिकारी के...

जलगाँव:आदिवासियों की जमीन अवैध रूप से खरीदने के मामले में जिलाधिकारी के खिलाफ सख्त कदम उठा सकता है NCST

2009 में शिकायत में नामजद कुछ लोगों ने कथित तौर पर जाली दस्तावेज़ बनाए और जमीन की बिक्री की अनुमति के लिए राजस्व और वन विभाग को एक आवेदन दिया. शिकायतकर्ता का आरोप है कि प्रभारी अधिकारी भूमि की बिक्री की अनुमति देने से पहले उचित सत्यापन करने में विफल रहे.

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने महाराष्ट्र के जलगाँव के जिला कलेक्टर को 3 फरवरी को दिल्ली स्थित अपने मुख्यालय में तलब किया है. क्योंकि वे एक निजी कंपनी द्वारा  आदिवासियों की भूमि की अवैध खरीद का आरोप लगाने वाली शिकायत पर कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने में विफल रहे हैं. जांच के दायरे में जो भूमि है वो 184 एकड़ में फैली हुई है.

आयोग को पिछले साल एक अभ्यावेदन प्राप्त हुआ था जिसमें शिकायतकर्ता ने एक निजी कंपनी के खिलाफ आदिवासियों की भूमि खरीदने का आरोप लगाया था. जिसमें कथित रूप से अवैध प्रथाओं का सहारा लिया गया था और इसमें भूमि पर रहने वाले आदिवासी परिवारों को आर्थिक रूप से धोखा दिया गया था.

जिसके बाद एनसीएसटी ने छह दिसंबर को नोटिस जारी कर 15 दिन में रिपोर्ट मांगी थी. हालांकि, जिला अधिकारियों ने आज तक कोई जवाब नहीं दिया है.

इस मामले के बाद एनसीएसटी ने इस महीने की शुरुआत में वर्तमान जिला कलेक्टर अमन मित्तल को इस सप्ताह शुक्रवार को आयोग के सदस्य अनंत नायक के सामने पेश होने के लिए सम्मन जारी किया. सम्मन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इस आदेश का पालन करने में विफल रहने पर नागरिक प्रक्रिया संहिता के तहत ऐसे मामलों में लागू कानून के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी.

एनसीएसटी के साथ साझा की गई शिकायत के विवरण के अनुसार “भील” जनजाति के लोग जो जलगाँव जिले के शिरसोली गाँव के निवासी हैं, कई दशकों से उस जमीन पर रह रहे हैं जिसे कथित रूप से एक निजी कंपनी द्वारा अवैध रूप से खरीदा गया है.

2009 में शिकायत में नामजद कुछ लोगों ने कथित तौर पर जाली दस्तावेज़ बनाए और जमीन की बिक्री की अनुमति के लिए राजस्व और वन विभाग को एक आवेदन दिया. शिकायतकर्ता का आरोप है कि प्रभारी अधिकारी भूमि की बिक्री की अनुमति देने से पहले उचित सत्यापन करने में विफल रहे. मंजूरी मिलने के बाद जमीन एक निजी कंपनी को बेच दी गई.

आदिवासियों को नौकरी, वैकल्पिक जमीन और पैसे का लालच दिया गया. करीब 30 एकड़ की भूमि के मालिक 22 आदिवासियों के नाम पर थे और अगर उनके परिवारों को ध्यान में रखा जाए तो यह संख्या लगभग 100 हो जाती है.

शिकायतकर्ता के अनुसार कंपनी द्वारा प्रतिबद्धता का सम्मान नहीं किया गया और परिवारों को खेती या किसी अन्य आजीविका उद्देश्य के लिए अनुपयुक्त भूमि पर छोड़ दिया गया. शिकायतकर्ता ने इस मामले के जांच की मांग की है क्योंकि आदिवासियों को उनकी आजीविका के स्रोत से वंचित किया गया है और कई शिकायतों के बावजूद कार्रवाई नहीं की गई है. शिकायतकर्ता का दावा है कि आखिरकार उन्हें मजबूर होकर एनसीएसटी से संपर्क करना पड़ा.

(प्रतिकात्मक तस्वीर)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments