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ओडिशा: जुआंग आदिवासी बच्चों में कुपोषण पर एनएचआरसी ने मांगी रिपोर्ट, सरकारी दावों की होगी पड़ताल

जुलाई 2016 में नगाड़ा में तीन से चार साल की उम्र के 19 बच्चों की मौत के बाद राज्य सरकार ने कुपोषण को कम करने और गांव के विकास तेज़ करने के लिए कई उपाय किए थे. लेकिन सरकारी दावों के विपरीत, छह साल बाद भी गांव के हालात नहीं बदले हैं. गांव के जुआंग बच्चे अभी भी कुपोषित हैं, और यहां के आदिवासी परिवार बेहद गरीब.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने ओडिशा के जाजपुर जिला प्रशासन को जिले के नगाड़ा गांव में जुआंग आदिवासी समुदाय के बच्चों में बढ़ते कुपोषण पर एक कार्रवाई रिपोर्ट (Action Taken Report – ATR) पेश करने का निर्देश दिया है.

आयोग ने जाजपुर जिला कलेक्टर को जुआंग जनजाति के बच्चों में बढ़ते कुपोषण को रोकने के लिए अब तक की गई कार्रवाई पर रिपोर्ट मांगी है. यह रिपोर्ट चार हफ़्तों के अंदर दिए जाने को कहा गया है.

एनएचआरसी ने गुरुवार को एक याचिका के जवाब में यह निर्देश जारी किया. याचिका एक मानवाधिकार कार्यकर्ता, अखंड द्वारा दायर की गई थी.

याचिकाकर्ता अखंड ने दलील दी थी कि जुलाई 2016 में नगाड़ा में तीन से चार साल की उम्र के 19 बच्चों की मौत के बाद राज्य सरकार ने कुपोषण को कम करने और गांव के विकास तेज़ करने के लिए कई उपाय किए थे.

लेकिन सरकारी दावों के विपरीत, छह साल बाद भी गांव के हालात नहीं बदले हैं. गांव के जुआंग बच्चे अभी भी कुपोषित हैं, और यहां के आदिवासी परिवार बेहद गरीब.

अखंड ने अपनी याचिका में कहा कि सरकार के हस्तक्षेप और योजनाओं के बावजूद आज तक गांव के जुआंग आदिवासियों का मुख्य भोजन सिर्फ़ चावल और दाल या चावल और नमक ही है.

दी गई अवधि के अंदर रिपोर्ट नहीं मिलने पर आयोग को मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा-13 के तहत रिपोर्ट पेश करने के लिए संबंधित प्राधिकारी (जाजपुर कलेक्टर) की व्यक्तिगत उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए क़दम उठाने को मजबूर होना पड़ेगा.

नगाड़ा गांव में स्वास्थ्य सेवा की हक़ीक़त

नगाड़ा गांव से सबसे निकटतम सरकारी स्वास्थ्य केंद्र 36 किलोमीटर दूर कुहिका में है. सुकिंदा में बना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र 46 किलोमीटर दूर है, और ज़िला अस्पताल की दूरी है 110 किलोमीटर.

नगाड़ा गांव एक पहाड़ी की चोटी पर बसा है, जिसकी तलहटी पर एक आंगनवाड़ी है. आंगनवाड़ी का काम ग्रामीणों को छटुआ, बंगाल चना, गेहूं, मूंगफली और चीनी के मिश्रण के पैकेट की आपूर्ति करने तक सीमित है. वो भी तब जब वो नीचे आते हैं.

वैसे आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पर न सिर्फ़ बच्चों का वज़न करने की ज़िम्मेदारी होती है, बल्कि उन्हें पोषक आहार देने का काम भी उन्हीं का होता है. इस काम के लिए आदर्श रूप से आंगनवाड़ी पहाड़ी की चोटी पर स्थित होना चाहिए.

क्या है मामला?

2016 में जून-जुलाई के महीनों में नगाड़ा गांव के 19 जुआंग बच्चों की मौत कुपोषण की वजह से हुई थी. खबर जब फैली तो अधिकारी हरकत में आए.

अधिकारियों ने गांव का दौरा किया और नगाड़ा और गुहियासला गांवों के छह साल से कम उम्र के 22 कुपोषित बच्चों को टाटा स्टील अस्पताल में भर्ती कराया गया.

जब मेडिकल टीम गांवों में पहुंचने लगी तो इनमें से ज़्यादातर बच्चे इलाज के बाद अपने गांव लौट आए. इन बच्चों को एक हफ़्ते तक अस्पताल में रखा गया था – उनकी स्थिति की बारीकी से निगरानी की गई क्योंकि उनमें से अधिकांश को मलेरिया और छाती में जमाव था. सभी ज़बरदस्त कुपोषण से भी पीड़ित थे, लेकिन सब बच गए.

कुपोषण के कारण होने वाली मौतों को स्वास्थ्य अधिकारी रिकॉर्ड में दर्ज करना पसंद नहीं करते हैं. इतने कम उम्र के बच्चों की मौत के सही कारणों का पता लगाना भी बेहद मुश्किल है, क्योंकि माता-पिता अपने छोट बच्चों को जल्दी ही दफना देते हैं.

उस समय जाजपुर के मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी फणींद्र कुमार पाणिग्रही ने कहा था कि टाटा स्टील अस्पताल में दर्ज दो मौतों को मलेरिया और प्रोटीन-एनर्जी कुपोषण की वजह से बताया गया है.

ओडिशा में जुआंग आदिवासियों की अपेक्षा

ओडिशा में 62 जनजातियाँ हैं, जो देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे ज़्यादा है. इनमें से 13 जनजातियों को पीवीटीजी यानि विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों के रूप में जाना जाता है. यह पीवीटीजी आदिवासी राज्य की 500 से ज़्यादा बस्तियों में रहते हैं, लेकिन ज्यादातर ओडिशा में जंगली पहाड़ियों के अंदर बसे गांवों में रहते हैं.

जुआंग आदिवासी भी पीवीटीजी हैं, जो मुंडा जातीय समूह से संबंध रखते हैं. यह आदिवासी ओडिशा के क्योंझर, धेनकनाल, अंगुल और जाजपुर जिलों में रहते हैं और जुआंग भाषा बोलते हैं.

जुआंग आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने के मकसद से 1975 में जुआंग विकास एजेंसी (जेडीए) की स्थापना की गई थी. लेकिन क़रीब पांच दशक बीत जाने के बाद भी एजेंसी क्योंझर के बांसपाल प्रखंड की छह ग्राम पंचायतों के 35 गांवों में बसे जुआंग आदिवासियों की मदद से आगे नहीं बढ़ पाई है. जेडीए की पहुंच के बाहर के जुआंग गांवों में ही नगाड़ा गांव भी आता है.

नगाड़ा में जुआंग आदिवासियों के साथ जो कुछ हो रहा है, वो पीवीटीजी के प्रति सरकार की उदासीनता को उजागर करता है.

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