साल के पत्ते और बीज जैसे माइनर फ़ॉरेस्ट प्रोड्यूस यानि मामूली वनोपज को इकट्ठा करने में लगी ओडिशा की आदिवासी महिलाओं को ख़राब सौदा मिल रहा है. राज्य सरकार, वन विभाग और ओडिशा के जनजातीय विकास सहकारी निगम (TDCCOL) की उदासीनता से इन महिलाओं को अपनी मेहनत का सही दाम नहीं मिल रहा है.
साल के बीजों का इस्तेमाल साबुन, सौंदर्य उत्पादों और विभिन्न आयुर्वेदिक दवाएं बनाने में किया जाता है. इन बीजों को इकट्ठा करने के लिए आदिवासी औरतों को रोज़ाना लगभग 10-12 घंटे जंगलों में बिताने पड़ते हैं. लेकिन इसके लिए उन्हें बीज के सिर्फ़ 15-20 रुपये प्रति किलो ही मिलते हैं.
इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है कि ओडिशा सरकार ने अब तक इस लघु वन उपज (MFP) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सुनिश्चित नहीं किया है.
ऐसे में यह आदिवासी ज़्यादातर समय इन बीजों को बाज़ार में बेचने को मजबूर हो जाते हैं. प्राइमरी प्रोक्योरमेंट एजेंसी (PPA) की वित्तीय बाधाओं, बिचौलियों की मौजूदगी और बाज़ार तक पहुंच की कमी भी इन आदिवासियों को किसी भी दाम पर साल के बीजों को बेचने पर मजबूर करते हैं.
ओडिशा पूरे देश के साल के बीज के 25 प्रतिशत हिस्से के लिए ज़िम्मेदार है. राज्य साल के जंगलों में समृद्ध है, और तटीय इलाकों को छोड़कर ओडिशा के अधिकांश हिस्सों में यह पेड़ देखे जाते हैं.
एक अनुमान के मुताबक़ कालाहांडी ज़िले का 60 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र साल के वनों से भरा है. गर्मी के मौसम में आदिवासी महिलाएं जंगलों में बीज और साल के फूल इकट्ठा करती हैं.

बीज इकट्ठा करने के बाद महिलाएं उन्हें कम आग में सेंकती हैं, और फिर बीज निकालती हैं. इसके बाद बाज़ार में बेचने के लिए बीज को धूप में सुखाया जाता है.
लाइसेंस वाले व्यापारी आदिवासी महिलाओं से बीज खरीदते हैं, और उन्हें राज्य के बाहर विभिन्न कारखानों और विनिर्माण इकाइयों में ले जाते हैं. व्यापारी चाहे जिस भी रेट पर इन बीजों को आगे बेचें, लेकिन इन आदिवासी महलाओं को एक किलो के सिर्फ़ 15-20 रुपये ही मिलते हैं.
आदिवासियों ने कई बार ओडिशा सरकार से साल के बीज की एमएसपी बढ़ाने की मांग की है, लेकिन यह नहीं हुआ है.
एमएफ़पी के लिए एमएसपी
जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने 2013-14 में माइनर फॉरेस्ट प्रोड्यूस स्कीम (एमएफ़पी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य) शुरु की थी. पहले इस योजना में 9 राज्यों के 10 एमएफ़पी शामिल थे. लेकिन बाद में इसे 24 एमएफ़पी और सभी राज्यों में विस्तारित कर दिया गया.
यह योजना राज्य सरकार द्वारा नियुक्त राज्य स्तरीय एजेंसी (State Level Agency) के माध्यम से लागू होती है. जनजातीय कार्य मंत्रालय इसके लिए एजेंसी को फंड देता है, और नुकसान केंद्र और राज्य द्वारा 75:25 के अनुपात में शेयर किया जाता है.