HomeAdivasi Dailyआदिवासी महिलाओं की बनाई हल्दी साबुन में कुछ ख़ास है

आदिवासी महिलाओं की बनाई हल्दी साबुन में कुछ ख़ास है

आदिवासी लोग खेतों से हल्दी इकट्ठा करते हैं और उन्हें बारीक पीसकर चूर्ण बना लेते हैं. पाउडर को बादाम के तेल के साथ एक हीट-सेफ कंटेनर में गूँथ लिया जाता है और गरम किया जाता है. इसके बाद मिश्रण को ठंडा करके सांचों का आकार दिया जाता है.

हल्दी की जड़ों से बने साबुन जो अपने एंटीसेप्टिक गुणों के लिए जानी जाती हैं ने ओडिशा के कोरापुट जिले में आदिवासी महिलाओं की आजीविका चलाने में मदद की है.

ओडिशा रूरल डेवलपमेंट एंड मार्केटिंग सोसाइटी (ORMAS) के एक अधिकारी के मुताबिक हर साल कोरापुट जिले के पहाड़ी इलाकों में करीब 1,000 टन हल्दी की कटाई की जाती है जो कि पौधे के विकास के लिए अनुकूल होती है. हाल ही में इस क्षेत्र की जनजातीय आबादी ने अधिशेष उपज का इस्तेमाल करने का एक तरीका खोजा है.

उन्हें सरकार द्वारा प्रबंधित ओआरएमएएस और सेंट्रल हॉर्टिकल्चर एक्सपेरिमेंट स्टेशन, भुवनेश्वर द्वारा ग्राइंडिंग मशीन और साबुन बनाने की ट्रेनिंग दी गई है.

ओआरएमएएस के उप मुख्य कार्यकारी अधिकारी रोशन कुमार कार्तिक ने कहा, “करीब 1,200 आदिवासी महिलाएं हल्दी साबुन बनाकर आय अर्जित कर रही हैं.”

(Image Credit: DownToEarth)

20 महिलाओं द्वारा संचालित एक स्वयं सहायता समूह द्वारा आयोजित ट्रेनिंग कार्यक्रमों में भाग लेने वाले कोनापडी गांव की कांति मिनियाका ने कहा, “हमारी जीवन स्थिति में सुधार हुआ है और अब हम 4,000 रुपये प्रति माह बचाने में सक्षम हैं.”

आदिवासी लोग खेतों से हल्दी इकट्ठा करते हैं और उन्हें बारीक पीसकर चूर्ण बना लेते हैं. पाउडर को बादाम के तेल के साथ एक हीट-सेफ कंटेनर में गूँथ लिया जाता है और गरम किया जाता है. इसके बाद मिश्रण को ठंडा करके सांचों का आकार दिया जाता है.

जड़ी बूटी सौंदर्य उद्योग में अपने शुद्धिकरण और मुँहासे विरोधी गुणों के लिए लोकप्रिय तो है ही साथ ही कटक और भुवनेश्वर जैसे शहरी क्षेत्रों में साबुन के कई खरीदार मिल गए हैं.

रोशन कुमार कार्तिक ने बताया कि हर एक साबुन 50 रुपये में बिकता है. तयापुट गांव की गीता मुस्का कहती हैं कि पिछले छह महीनों में मैंने हर महीने करीब 3,000 रुपये कमाए.

मुस्का अपने इलाके में एक स्वयं सहायता समूह में शामिल हुई थी जहां उन्हें हल्दी से साबुन बनाने की कला सिखाई गई थी.

ओडिशा का कोरापुट जिला आदिवासी आबादी के लिहाज से भारत का सबसे पिछड़ा हुआ जिला माना जाता है. हल्दी के बनाए साबुन के अलावा कॉफी की खेती ने भी यहां के आदिवासियों की जिंदगी बदल दी है.

जानकारी के मुताबिक, कोरापुट जिले के आठ ब्लॉकों में 2000 हेक्टेयर से अधिक जमीन पर कॉफी की खेती की जा रही है. पिछले फसल सीजन (2020-21) में लगभग 1100 मीट्रिक टन कॉफी का उत्पादन किया गया था.

समुद्र तल से 3,000 फीट की ऊंचाई पर पूर्वी घाट में स्थित कोरापुट अपनी ठंडी जलवायु और बारिश के चलते कॉफी की खेती के लिए सबसे उत्तम जगह है. कोरापुट कॉफी एक अनूठा मिश्रण है, जिसमें 100 फीसदी अरेबिका कॉफी शामिल है.

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