एक संसदीय पैनल ने सिफारिश की है कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए क़दम उठाए कि सेवा में शामिल होने के छह महीने के अंदर ही किसी भी कर्मचारी का अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र वेरिफ़ाई हो जाना चाहिए. इसके लिए सरकार को दिशा-निर्देश जारी करने की सिफ़ारिश की गई है.
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कल्याण पर संसदीय स्थायी समिति ने कहा है कि Department of personnel and Training – DoPT – को राज्य सरकारों के समन्वय से जाति प्रमाण पत्र को वेरिफ़ाई करने की एक समयबद्ध प्रक्रिया बनानी चाहिए, ताकि रिटायरमेंट के समय एससी/एसटी कर्मचारियों को तंग न किया जाए.
पैनल ने लोकसभा में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा, “Ministry of Personnel, Public Grievances and Pensions (Department of Pension and Pensioners Welfare) को सभी PSU, संगठनों, और सरकारी बैंकों को स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए कि किसी व्यक्ति के जाति प्रमाण पत्र को उसकी जॉइनिंग के छह महीने के अंदर वेरिफ़ाई किया जाए.”
राज्य स्तर पर जिस जांच समिति ने प्रमाण पत्र जारी किया है, उसको कम से कम छह महीने में या कर्मचारियों का प्रोबेशन ख़त्म होने से पहले, हर कीमत पर प्रमाण पत्र का वेरिफ़िकेशन पूरा करना होगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर किसी वजह से जांच समिति ऐसा नहीं कर पा रही है, तो उन वजहों को लिखित में दर्ज करना होगा, लेकिन वेरिफ़िकेशन का समय किसी भी कीमत पर छह महीने से ज़्यादा नहीं हो सकता.
समिति ने यह भी कहा है कि कई बार ऐसा देखा गया है कि वेरिफ़िकेशन प्रक्रिया में लंबा समय लगता है क्योंकि पुराने रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं होते.
यह मुश्किल खासतौर पर तब सामने आती है जब वेरिफ़िकेशन जॉइनिंग के 30-35 सालों बाद किया जा रहा हो. इन हालात में बहुत पुराने रिकॉर्ड तक पहुंचना मुश्किल होता है. पैनल ने आगे कहा कि तब तक कार्यालयों में अधिकांश कर्मचारी तब तक या तो रिटायर या फिर ट्रांस्फ़र हो चुके होते हैं, और उनके लिए वेरिफ़िकेशन करना मुश्किल हो जाता है.
समिति ने कहा कि यह हास्यास्पद है कि लगभग सभी मंत्रालयों, विभागों, पीएसयू, बैंकों और स्वायत्त निकायों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को रिटायरमेंट से पहले और बाद में, जॉइनिंग के समय, प्रमोशन के वक़्त, और प्रोबेशन के लिए जाति प्रमाण पत्र के वेरिफ़िकेशन की समस्या का सामना करना पड़ता है, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं ढूंढा गया है. यह इन कर्मचारियों की आजीविका और जीवन से जुड़े बेहद अहम मुद्दे हैं.
समिति ने संबंधित मंत्रालयों/विभागों के इसके लिए क़दम न उठाने पर असंतोष जताया है.