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NHRC ने घुमंतू जनजातियों के लिए इडेट आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का किया आग्रह

आयोग के सदस्य ज्ञानेश्वर एम. मुले ने चर्चा का उद्घाटन किया जिसमें राजीव जैन, विजया भारती सयानी, संयुक्त सचिव अनिता सिन्हा और देवेन्द्र कुमार निम सहित अन्य सदस्यों ने हिस्सा लिया.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission) ने शुक्रवार को इडेट आयोग (Idate Commission) की रिपोर्ट को लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया. क्योंकि इडेट आयोग की रिपोर्ट में भारत में खानाबदोश, अर्ध खानाबदोश और गैर-अधिसूचित जनजातियों (NTs, SNTs, and DNTs) के लिए एक स्थायी आयोग स्थापित करने की सिफारिश की गई है.

आयोग ने यह भी कहा कि सरकार को आदतन अपराधी अधिनियम, 1952 को निरस्त करने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए या फिर अधिनियम में निर्धारित नोडल अधिकारियों के साथ गैर-अधिसूचित जनजाति समुदाय के प्रतिनिधि की नियुक्ति करनी चाहिए.

आयोग ने कई अन्य बातों के अलावा डीएनटी/एनटी/एसएनटी को एससी/एसटी/ओबीसी के अंतर्गत शामिल न करने और पूर्व के लिए विशिष्ट नीतियां बनाने का भी सुझाव दिया.

NHRC द्वारा ‘भारत में खानाबदोश, अर्ध खानाबदोश और गैर-अधिसूचित जनजातियों की सुरक्षा और आगे बढ़ने’ पर आयोजित एक ओपन हाउस चर्चा के दौरान इन बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया.

आयोग के सदस्य ज्ञानेश्वर एम. मुले ने चर्चा का उद्घाटन किया जिसमें राजीव जैन, विजया भारती सयानी, संयुक्त सचिव अनिता सिन्हा और देवेन्द्र कुमार निम सहित अन्य सदस्यों ने हिस्सा लिया.

डॉक्टर मुले ने कहा कि गैर-अधिसूचित जनजातियों, घुमंतू जनजातियों और अर्ध-घुमंतू जनजातियों को भी आजीविका के उचित साधनों की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि “आपराधिक प्रवृत्ति” वाली विमुक्त जनजातियों के बारे में औपनिवेशिक मानसिकता को बदलने की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो.

उन्होंने आगे कहा, “उनकी पहचान के उचित दस्तावेजीकरण में तेजी लाने की जरूरत है ताकि उन्हें कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सके और उन्हें बुनियादी जरूरतें प्रदान की जा सकें. इसलिए विभिन्न हितधारकों को उनके मानवाधिकारों को प्रभावित करने वाले मुद्दों को सुव्यवस्थित करने के लिए ठोस प्रयासों और चर्चाओं की जरूरत है.”

वहीं देवेंद्र कुमार निम ने डी-नोटिफाइड समुदायों के पास नागरिकता दस्तावेजों की कमी के मुद्दे पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि डीएनटी के सामने आने वाली मूलभूत चुनौतियों में से एक पहचान के उचित दस्तावेजीकरण की कमी है. इससे न केवल उनकी पहचान ‘अदृश्य’ हो जाती है बल्कि कल्याणकारी योजनाओं, सरकारी लाभों और संवैधानिक अधिकारों तक उनकी पहुंच भी बाधित होती है.

आयोग ने शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य देखभाल और कानूनी दस्तावेजों जैसी बुनियादी सुविधाओं का लाभ उठाने में समुदायों के सामने आने वाली मुश्किलों को समझने की जरूरत पर भी जोर दिया.

इसके अलावा आयोग ने कानूनी दस्तावेजीकरण तक पहुंच में सुधार पर केंद्रित नीतियों की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि डीएनटी भारत के सामाजिक आर्थिक विकास में पूरी तरह से भाग ले सकें और लाभ उठा सकें.

आयोग ने कहा कि आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1872 और बाद में आदतन अपराधी अधिनियम, 1952 के द्वारा लगाए गए कलंक के कारण एनटी, एसएनटी और डीएनटी के सामने आने वाली चुनौतियों की पहचान करने और भेदभाव को खत्म करने का एक तरीका निकालने की जरूरत है.

NHRC ने सुझाव दिया कि इन समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों को कम करने के उपाय सुझाना, संसद, सरकारी संस्थानों और उच्च शिक्षा में गैर-अधिसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना और विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के लिए आगे बढ़ने का रास्ता निर्धारित करना बेहद जरूरी है.

इडेट आयोग की रिपोर्ट को लागू करके और वर्तमान कानून को संशोधित करके भारत इन समुदायों के समावेश, प्रतिनिधित्व और सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति कर सकता है.

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