HomeAdivasi Dailyकेरल: आदिवासी बहुल अट्टापडी में बाजरा की खेती तेजी से बढ़ रही...

केरल: आदिवासी बहुल अट्टापडी में बाजरा की खेती तेजी से बढ़ रही है

इस योजना के तहत अट्टापडी में बाजरा की खेती में तेजी से वृद्धि देखने को मिली है. 2017 में 40 आदिवासी बस्तियों के 150 एकड़ में बाजरा की खेती की जाती थी, जो पहले सीज़न में बढ़कर 950 एकड़ हो गई थी. वर्तमान में 97 बस्तियों के लगभग 1,220 आदिवासी किसान अब अट्टापडी में बाजरा की खेती कर रहे हैं.

पिछले सात साल केरल सरकार की बाज़रा ग्राम योजना के लिए काफी फायदेमंद रहे हैं. 2013 में केरल के आदिवासी क्षेत्रों में शिशुओं की मृत्यु दर काफी तेजी से बढ़ रही था. जिसके बाद अनुसूचित जनजाति विकास विभागों की संयुक्त पहल से 2017 में ग्राम योजना की शुरूआत की गई थी.

इस योजना का उद्देश्य आदिवासी किसान को उनके द्वारा उगाए गए खाद्यो से पोषण देना था. इन सात सालों में इस योजना के तहत अट्टापडी में बाजरा की खेती में तेजी से वृद्धि देखने को मिली है.

2017 में 40 आदिवासी बस्तियों के 150 एकड़ में बाजरा की खेती की जाती थी, जो पहले सीज़न में बढ़कर 950 एकड़ हो गई थी.

वर्तमान में 97 बस्तियों के लगभग 1,220 आदिवासी किसान अब अट्टापडी में बाजरा की खेती कर रहे हैं.

ये 1220 आदिवासी किसान अक्सर बाजरा (रागी), बढ़िया बाजरा (ज्वार, चोलम) और छोटे बाजरा (चामा) के साथ-साथ फॉक्सटेल बाजरा (थिना), कोदो बाजरा (वरगु), बार्नयार्ड बाजरा (कुथिरावली), कम्बू और मणि चोलम उगाते हैं.

आदिवासी किसान सेल्वन की कहानी
अट्टापडी में कोल्लकदावु आदिवासी बस्ती के 36 वर्षीय सेल्वन बताते है की वे 60 आदिवासियों के एक समूह का हिस्सा है, जो कोल्लकदावु में 30 एकड़ में बाजरा की खेती कर रहे हैं.

सेल्वन ने आगे कहा कि सरकारी आधिकारियों की जागरूकता से प्रोत्साहित होकर, 2018 में मैने बाजरा की खेती शुरू की थी.

उन्होंने ये भी बताया की इस सीज़न में आदिवासी किसानों की संख्या बढ़कर 60 हो गई है. ये सभी किसान दोनों सीज़न में खेती करते हैं.

आदिवासी किसानों के द्वारा उगाए गए उत्पाद के लिए बाजरा कार्यालय उन्हें 60 रुपये प्रति किलोग्राम देती है.
ऐसी ही एक और कहानी वरगमपदी आदिवासी बस्ती के मणिकंदन की भी है.

मणिकंदन के पास छह एकड़ जमीन है जहां वह ‘कारनेलु’ (जिसमें कम पानी की आवश्यकता होती है) के साथ-साथ रागी, चामा, कंबु और थिना की खेती करते हैं.

मणिकंदन बताते है की वे एक एकड़ में जैविक तरीके से रागी की खेती करते हैं. जिससे उन्हें एक सीजन में 600 किलोग्राम उपज मिलती है.

उन्होंने ये भी बताया की वे कुछ उपज अलग रखते हैं और अतिरिक्त बेच देते हैं.

अट्टापडी में बाजरा ग्राम योजना के कृषि अधिकारी टी के रंजीत ने बताया की वे इस योजना में बाजरे की खेती के लिए 1,200 हेक्टेयर तक ज़मीन शामिल करने पर विचार कर रहे है और उन्हें इसके लिए किसानों के आवेदन आना भी शुरू हो चुके हैं.

वहीं आधिकारियों द्वारा ये भी दावा किया गया है की बाजरा और दालों के लिए 12,000 रुपये प्रति हेक्टेयर और तिलहन और सब्जियों के लिए 15,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की सब्सिडी प्रदान की जाती है.

उन्होंने ये भी बताया की उत्पादनों को ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए कोरियर और पोस्ट के माध्यम से भेजा जाता है.
हालांकि किसानों द्वारा ये दावा किया गया है की वित्तीय संकट के कारण दलहन, तिलहन और सब्जियों पर सब्सिडी वापस ले ली गई है.

बाजरे की खेती के अलावा ग्राम बाजरा योजना के अधिकारी खाने के वस्तुएं बनाने पर भी विचार कर रहे हैं, इनमें बिस्कुट, कुकीज़, नूडल्स और पास्ता शामिल हैं. जगह कम पढ़ने के कारण, इन सभी के लिए एक अलग माध्यमिक इकाई बनाई जाएगी.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments