HomeAdivasi Dailyगुजरात: नर्मदा के स्कूलों में बच्चों को स्थानीय आदिवाासी बोलियों में पढ़ाया...

गुजरात: नर्मदा के स्कूलों में बच्चों को स्थानीय आदिवाासी बोलियों में पढ़ाया जा रहा

गुजरात में अब दैनिक बातचीत तक सीमित बोलियों को सागबारा और डेडियापाड़ा तालुको के छात्रों को पढ़ाया जाएगा. यह पहल नर्मदा ज़िला शिक्षा एवं प्रशिक्षण भवन के द्वारा की गई है.

गुजरात के एक आदिवासी गांव में छात्र कई सालों से पढ़ाई तो कर रहे थे लेकिन अपनी भाषा के बार में उनके पाठ्यक्रम में कोई विषय नहीं था. लेकिन अब एक पहल के कारण छात्र अपनी वहां की बोलियों भी सीख पाएंगे.

दरअसल गुजरात के दो तालुक – सागबारा और डेडियापाड़ा (Sagabara and Dediapada) के आदिवासी क्षेत्र में शिक्षा के क्षेत्र में एक अनूठी शैक्षिक पहल भाषा और सीखने के बीच की खाई को पाट रही है.

पहली बार नर्मदा ज़िला शिक्षा और प्रशिक्षण केंद्र (Narmada District Education and Training Centre) ने प्राथमिक विद्यालयों के लिए एक विशेष मॉड्यूल विकसित किया है. इस मॉड्यूल के जरिए स्थानीय देहवाली और अंबुडी बोलियों (Dehwali and Ambudi dialects) के माध्यम से बच्चों को शिक्षा दी जा रही है.

स्थानीय बोलियों किताबों में भी

ये बोलियाँ जो कभी दैनिक बातचीत तक ही सीमित थीं. अब पाठ्यपुस्तकों और शिक्षकों की जुबान पर अपनी जगह बना रही हैं. इसके अलावा पहले “सेप्टी” (पूंछ), “चाइड” (पक्षी), और “निंदा” (माथा) जैसे शब्द की जानकारी ज्यादातर गुजरातियों को नहीं थी लेकिन अब यह शब्द सैकड़ों आदिवासी बच्चों के शिक्षा का हिस्सा बन गया है.

भाषा के कारण पढ़ाई में दिक्कते

गांव के एक स्थानीय ग्रामीण ने बताया कि जब बाहर से शिक्षक उनके गांव में पढ़ाने के लिए आते थे तो वे गुजराती में पढ़ाते है. ऐसे में हमारे बच्चे उस भाषा को समझ नहीं पाते थे और इसकी वजह से वे खोया हुआ महसूस करते थे.

विविध भाषाई परिदृश्य वाले कई ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित यह अलगाव अक्सर युवा दिमागों के लिए सीखने की प्रक्रिया में बाधा बनता है.

लेकिन अब नर्मदा ज़िला शिक्षा एवं प्रशिक्षण भवन (Narmada District Education and Training Bhawan) ने अच्छा कदम उठाया है.

उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (National Education Policy 2020) में क्षेत्रीय भाषाओं पर जोर देने वाले नियम से प्रेरित होकर, राज्य भर में बोली जाने वाली 17 अलग-अलग बोलियों के लिए मॉड्यूल बनाने के लिए गुजरात शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (Gujarat Educational Research and Training Council) के साथ साझेदारी (partnered) की है.

पहल से बच्चों को लाभ

सागबारा और डेडियापाड़ा के बच्चों के लिए यह उनकी मातृभाषा में ज्ञान के 3,000 शब्दों के खजाने के समान है.

इसके साथ ही वह रोज उपयोग होने वाले अभिवादन जैसे “रोदिह निशालुम अवाजा यानी हर दिन स्कूल आएं से लेकर चंचल तुकबंदी और आकर्षक कहानियों तक के ऊपर मॉड्यूल विषयों के एक विशाल स्पेक्ट्रम को कवर करता है, जो सीखने को न केवल सुलभ बनाता है बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी प्रासंगिक बनाता है.

यह मॉड्यूल उनके बच्चों और शिक्षा प्रणाली के बीच एक पुल है. एक शिक्षक गर्व से मुस्कुराते हुए कहते हैं कि अब वे खुद को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने के साथ ही प्रश्न पूछ सकते हैं. वे कक्षा में सक्रिय रूप से भाग ले सकते हैं.

मॉड्यूल में प्रभाव पहले से ही स्पष्ट है. जैसे ही नए शिक्षक ज़िले में आते हैं, वे अपने छात्रों को प्रभावी ढंग से समझने और उनसे संवाद करने के लिए उपकरणों से लैस होते हैं.

डेडियापाड़ा में 160 से अधिक और सागबारा में 82 शिक्षकों ने अपनी-अपनी बोलियों में प्रशिक्षण प्राप्त किया है, जिससे शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए एक सुचारु परिवर्तन सुनिश्चित हुआ है.

साल 2011 की जनगणना के अनुसार डेडियापाड़ा तालुका में अनुसूचित जनजाति की संख्या लगभग 168,181 है. जिसमें पुरुष की संख्या लगभग 84,975 और महिलाओं की संख्या 83,206 है.

वहीं अगर पूरे डेडियापाड़ा तालुका में साल 2011 की जनगणना में औसत साक्षरता दर की बात करे तो वो लगभग 64.54 प्रतिशत है. इसमें महिलाओं का साक्षरता दर लगभग 53.94 प्रतिशत और पुरुषों का 74.92 प्रतिशत है.

वहीं साल 2011 की जनगणना के अनुसार सागबारा तालुक में अनुसूचित जनजाति की संख्या लगभग 101,157 है. जिसमें पुरुष की संख्या लगभग 50,058 और महिलाओं की संख्या 51,099 है.

अगर पूरे सागबारा तालुक में साल 2011 की जनगणना में औसत साक्षरता दर की बात करे तो वो लगभग 67.69 प्रतिशत है. इसमें महिलाओं का साक्षरता दर लगभग 58.75 प्रतिशत और पुरुषों का 76.81 प्रतिशत है.

आंकड़ों से पता चलता है कि इन दोनों ही तालुकाओं में महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों के मुकाबले कम है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments