मनरेगा के तहत जारी कार्य राजस्थान में विशेष रूप से आदिवासी जिलों में मानव तस्करी के लिए एक मारक के रूप में उभर रहा है. यह अवलोकन सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने किया है.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस योजना के तहत 200 दिनों के गारंटीकृत काम से पूरे साल पांच लोगों का परिवार टिक सकता है और जबरन पलायन की संभावना लगभग एक तिहाई कम हो सकती है.
वागधारा जो आदिवासी आबादी के साथ काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन है के सीईओ, जयेश जोशी ने कहा, “जनजातीय क्षेत्र से गुजरात और महाराष्ट्र जैसे अन्य राज्यों में मानव तस्करी के पीछे गरीबी ही एकमात्र कारण है. यह देखा गया है कि कम आय वाले परिवार जिनके बच्चे तस्करी के शिकार हैं, उन्हें मनरेगा के तहत लगातार काम मिलने पर पलायन करने की आवश्यकता नहीं होती है.”
अधिकारियों ने दावा किया कि पिछले कुछ वर्षों में बांसवाड़ा, डूंगरपुर और उदयपुर में मानव तस्करी में कमी आई है. इसका श्रेय नागरिक समाज के सदस्यों, गैर सरकारी संगठनों, वकालत समूहों और सरकारी विभागों के सामूहिक प्रयासों को दिया जाता है.
बांसवाड़ा के एसपी राजेश मीणा ने कहा कि पुलिस इस अवैध प्रथा को खत्म करने के लिए सामूहिक प्रयास कर रही है. मीणा ने कहा, “इस प्रयास ने व्यापक जागरूकता पैदा की है, एक मजबूत नेटवर्क बनाया है और अवैध व्यापार किए गए व्यक्तियों के पुनर्वास में मदद की है.”
अगस्त 2021 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को एक रिपोर्ट में, एसपी डूंगरपुर ने सूचित किया था कि कोई सक्रिय मानव तस्करी गिरोह नहीं था.
रिपोर्ट में कहा गया है, “जिले की एक विशेष टीम भी बनाई गई थी और इसकी रोकथाम के लिए गुजरात की सीमा से लगे थाना क्षेत्रों में लगातार नाकाबंदी और चेकिंग की जा रही है.”
(तस्वीर प्रतिकात्मक है)