HomeAdivasi Dailyलाल चींटियाँ आदिवासियों को आत्मनिर्भर बनने में मदद कर रही

लाल चींटियाँ आदिवासियों को आत्मनिर्भर बनने में मदद कर रही

लाल चींटियां ओडिशा के मयूरभंज, क्योंझर और सुंदरगढ़ जिलों के जंगलों में पाई जाती हैं. आदिवासी इन चींटियों का उपयोग खाने से लेकर दवाइयों के रूप में करते हैं. लाल चींटियों की चटनी बहुत फेमस है.

ओडिशा के क्योंझर जिले (Keonjhar district) के जंगलों में बड़ी संख्या में उपलब्ध लाल चींटियाँ (Red ants) आदिवासियों के लिए आय का स्रोत बन गई हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद मिली है. ये आदिवासी पहले लाल चींटियों को भोजन के पूरक के रूप में खाते थे.

हालांकि, अब वन विभाग द्वारा पक्षियों और अन्य जानवरों को खिलाने के लिए भारी मात्रा में चींटियाँ खरीदी जा रही हैं. वहीं आदिवासी भी अच्छी रकम कमाने के लिए खुशी-खुशी लाल चींटियों को पकड़ रहे हैं और बेच रहे हैं.

वन सुरक्षा समिति (Van Suraksha Samiti) के सदस्यों और महिला स्वयं सहायता समूहों ((SHGs) ने विभिन्न पेड़ों से लाल चींटियों (जिन्हें स्थानीय रूप से काई के रूप में जाना जाता है) को पकड़ना शुरू कर दिया है.

स्थानीय लोगों ने कहा कि वे लाल चींटियों को वन विभाग को बेच रहे हैं. क्योंझर एक आदिवासी बहुल जिला है जो पहाड़ियों और वनों से घिरा हुआ है. आदिवासी साल, जामुन और कुसुम के पेड़ों पर रहने वाली लाल चींटियों का सेवन करते हैं.

आदिवासी इन लाल चींटियों की चटनी भी बनाते हैं. कभी-कभी वे मुरमुरे के साथ चींटियों को कच्चा भी खाते हैं.

आदिवासी लाल चींटियों को विभिन्न आकार के पैकेटों में बेच रहे हैं. न्यूनतम राशि 20 प्रति पैकेट है. तेलकोई वन क्षेत्र के अंतर्गत बेताखाली, अकुला, पटाखाली, रायसुआ, भलियाडाला गांवों में स्थानीय वीएसएस आदिवासियों से चींटियां खरीद रहे हैं.

यह कारोबार पिछले साल अक्टूबर से चल रहा है. अधिकारियों ने बताया कि अब तक वन विभाग ने आदिवासियों से पांच क्विंटल लाल चींटियां खरीदी हैं.

एक आदिवासी महिला गमहारी मुंडा ने बताया कि वे पहले अपने उपभोग के लिए लाल चींटियाँ खरीदते थे. हालांकि, अब उसके लिए चींटियाँ बेचना और कुछ पैसे कमाना फायेदमंद साबित हो रहा है. वह इस पैसे का उपयोग परिवार के लिए अन्य जरूरी सामान खरीदने में करती है.

सहायक वन संरक्षक (ACF) अशोक दास ने कहा कि विभाग ज्यादातर चींटियों को भुवनेश्वर के नंदनकानन प्राणी उद्यान में भेज रहा है. चींटियों का उपयोग पक्षियों, पैंगोलिन और अन्य जंगली जानवरों को खिलाने के लिए किया जाता है.

विशेष रूप से क्योंझर वन प्रभाग के अधिकारियों ने पहले सैकड़ों आदिवासी महिलाओं को वर्मी-खाद तैयार करना सिखाया था. इससे उन्हें आजीविका कमाने में मदद मिली. अब लाल चींटियाँ इन आदिवासियों को अधिक से अधिक आत्मनिर्भर बनने में मदद कर रही हैं.

चटनी को मिला है GI टैग

लाल चींटियां ओडिशा के मयूरभंज, क्योंझर और सुंदरगढ़ जिलों के जंगलों में पाई जाती हैं. आदिवासी इन चींटियों का उपयोग खाने से लेकर दवाइयों के रूप में करते हैं. लाल चींटियों की चटनी बहुत फेमस है.

इसलिए ओडिशा की लाल चींटी की चटनी को हाल ही में यानि 2 जनवरी, 2024 को जीआई टैग (Geographical indication tag) के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है.

आदिवासियों के बीच इस चटनी को बनाने का तरीका भी बहुत खास है. चटनी बनाने के लिए पहले चींटियों और अंडों को उनके बिलों से इक्ट्ठा करने के बाद इन्हें साफ किया जाता है. उसके बाद इन्हें लहसुन, अदरक, मिर्च और नमक मिलाकर पीसते हैं. इस तरह से लाल चींटी की चटनी बनाकर लोग खाते हैं.

लाल चींटी के फायदे

ऐसा माना जाता है कि ये चटनी प्रोटीन, कैल्शियम, जिंक, विटामिन बी-12, आयरन, मैग्नीशियम, पोटैशियम आदि से भरपूर होती है. इसे खाने से दिमाग और नर्वस सिस्टम स्वस्थ रहता है. थकान, डिप्रेशन, मेमोरी लॉस की समस्या नहीं होती है.

इसके अलावा आदिवासी खांसी और जुकाम, जोड़ों के दर्द, हाइपरएसिडिटी, त्वचा के संक्रमण और पीलिया के इलाज के रूप में लाल चींटियों की प्रभावशीलता को मानते हैं.

आदिवासियों का मानना है कि यह सांस संबंधी समस्याओं और पेट दर्द के लिए सबसे आजमाई और परखी हुई दवा है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments