HomeAdivasi Dailyकेरल में शराब की लत और बाल मज़दूरी के शिकार आदिवासी बच्चे

केरल में शराब की लत और बाल मज़दूरी के शिकार आदिवासी बच्चे

बाग़ानों में बच्चों को पौधे लगाने, सुपारी तोड़ने और केले काटने के काम में लगाया जाता है. इस सिलसिले में बताया गया है कि बाग़ानों में मर्दों से 600 रूपये रोज़, औरतों को 500 रूपये रोज़ और बच्चों को 300-400 रूपये रोज़ पर काम लिया जाता है.

केरल में मलप्पुरम और कोझीकोड जिलों के आदिवासी इलाक़ों में बच्चों का स्कूल छूटने के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं. इसके कई कारणों में से एक है कि आदिवासी माँ बाप अपने बच्चों को मज़दूरी के लिए अपने साथ ले जाते हैं. 

एक ग़ैर सरकारी संगठन आदिवासी विकास फ़ाउंडेशन के हवाले से बताया गया है कि नीलांबुर के पहाड़ी इलाकों में कुछ बागानों में श्रम के लिए नियोजित करके स्कूली उम्र के आदिवासी बच्चों का शोषण हो रहा है. छोटे बच्चों को उनके माता-पिता के साथ काम पर लगाया जाता है और आधी मजदूरी का भुगतान किया जाता है. 

इस संगठन का दावा है कि इनमें से कुछ बच्चों की उम्र 10 साल से भी कम है. फ़ाउंडेशन का कहना है कि इन बच्चों में से कई ने मार्च में आयोजित अपनी वार्षिक स्कूल परीक्षा भी नहीं दी.

मलप्पुरम और कोझीकोड जिलों की सीमा से सटे चलियार, कूडारिंजी और उरंगट्टिरी ग्राम पंचायतों के अंतर्गत आने वाले कक्कड़मपोयिल, अकाम्पुझा, वेंडाक्कमपोयिल, अकामपदम, इदिवेना और वलंथोडु क्षेत्रों में रोजगार के नाम पर आदिवासी बच्चों के साथ दुर्व्यवहार पाया गया है. 

बाग़ानों में बच्चों को पौधे लगाने, सुपारी तोड़ने और केले काटने के काम में लगाया जाता है. इस सिलसिले में बताया गया है कि बाग़ानों में मर्दों से 600 रूपये रोज़, औरतों को 500 रूपये रोज़ और बच्चों को 300-400 रूपये रोज़ पर काम लिया जाता है.

एक अंग्रेज़ी अख़बार में छपी ख़बर में बताया गया है कि इस इलाक़े में बाग़ानों में काम करने वाले कई बच्चे कुपोषित हैं. इसके अलावा इन बच्चों में शराब की लत भी पाई गई है. इस इलाक़े में काम करने वाले ग़ैर सरकारी संगठन दावा करते हैं कि शराब की लत की वजह से भी बच्चे स्कूल छोड़ कर काम पर चले जाते हैं.

आमतौर पर बाग़ानों में मज़दूरी करने वाले परिवार वहीं पर खुले में रहते हैं. इन आदिवासी इलाक़ों में बढ़ते स्कूल ड्रॉप आउट रेट के बारे में स्थानीय प्रशासन ने कहा कि वो इस मसले पर काम कर रहा है. प्रशासन का कहना है कि उसकी कोशिश है कि आदिवासी इलाक़ों में सभी बच्चों को स्कूल में दाख़िला दिलाया जा सके.

एक अख़बार से बात करते हुए आदिवासी विकास विभाग की निदेशक टीवी अनुपमा के हवाले से बताया गया है कि इस दिशा में प्रशासन लगातार सचेत है. उन्होंने कहा कि बाल मज़दूरी के शोषण को ख़त्म करने सबसे बेहतर उपाय है कि बच्चों को स्कूल में लाया जाए. 

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