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आदिवासी का दर्जा मांगते हुए, हिमाचल के हाटी समुदाय ने सिरमौर में ‘खुंबली’ का आयोजन किया

हिमाचल प्रदेश में हाटी समुदाय ने राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि अगर केंद्र सरकार ने पिछड़े सिरमौर जिले के सुदूर क्षेत्र की 144 पंचायतों को आदिवासी का दर्जा देने की उसकी मांग को पूरा नहीं किया तो वह आंदोलन करेगी. समुदाय ने अपनी मांग के लिए दबाव बनाने के लिए सभी 144 पंचायतों में "खुंबली" मंडलियों का आयोजन किया.

केंद्रीय हाटी समिति ने शनिवार को सिरमौर के ट्रांस गिरी क्षेत्र में ‘खुम्बलिस’ का आयोजन किया. हाटी समिति की ग्राम पंचायतों और सभी तहसीलों में इकाइयां हैं.

हाटी समुदाय ने एक प्रस्ताव पारित कर प्रधानमंत्री से समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग की, जो कि पड़ोसी उत्तराखंड में आदिवासी जौनसार-बावर में रहने वालों के समान है.

उत्तराखंड के जौनसार-बावर क्षेत्र को 1967 में आदिवासी का दर्जा दिया गया था. जौनसार-बावर और हाटी क्षेत्रों पर हावी थे, दोनों तत्कालीन सिरमौर राज्य का हिस्सा थे. सिरमौर जिले के ट्रांस-गिरी क्षेत्र के लोग पिछले 54 वर्षों से उत्तराखंड के जौनसार-बावर क्षेत्र की तर्ज पर आदिवासी का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं.

ट्रांस-गिरी और जौनसार-बावर क्षेत्र तत्कालीन सिरमौर रियासत का हिस्सा थे और दोनों में सभी पहलुओं में अद्वितीय समानताएं हैं. हाटी समुदाय लंबे समय से आदिवासी का दर्जा मांग रहा था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

हिमाचल प्रदेश में हाटी समुदाय ने राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि अगर केंद्र सरकार ने पिछड़े सिरमौर जिले के सुदूर क्षेत्र की 144 पंचायतों को आदिवासी का दर्जा देने की उसकी मांग को पूरा नहीं किया तो वह आंदोलन करेगी. समुदाय ने अपनी मांग के लिए दबाव बनाने के लिए सभी 144 पंचायतों में “खुंबली” मंडलियों का आयोजन किया.

65 वर्षीय राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर अमी चंद कमल ने कहा, जो केंद्रीय हाटी समिति के प्रमुख हैं, “हम पिछले पांच दशकों से ट्रांस-गिरी क्षेत्र को आदिवासी का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. हमारी पारंपरिक जीवन शैली और स्थलाकृति जौनसार-बावर के समान है. सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए अन्यथा समुदाय आंदोलन का सहारा लेने के लिए मजबूर हो जाएगा.”

उन्होंने कहा कि मैंने कई बार प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क किया है. लेकिन सरकार हमारी मांगों को पूरा करने में बहुत समय ले रही है.

प्रमुख हाटी समुदाय सिरमौर जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों – पांवटा साहिब, रेणुका, शिलाई और पच्छाद में फैला हुआ है. इसमें करीब 2.76 लाख लोग शामिल हैं.

अमी चंद कमल ने कहा, “खुंबलियों में पारित प्रस्तावों को राज्य सरकार के माध्यम से प्रधान मंत्री कार्यालय और भारत के महापंजीयक कार्यालय को भेजा जाएगा.”

दरअसल मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने खुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सामने यह मांग उठाई थी.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, जो 2014 में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, ने नाहन में एक राजनीतिक रैली में हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की घोषणा की थी.

शिलाई विधानसभा क्षेत्र के कुहंट गांव के बलबीर सिंह चौहान ने कहा, “मुद्दा सिर्फ आदिवासी का दर्जा देने से संबंधित नहीं है, बल्कि हमारे बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता बढ़ रही है. पिछड़ापन है और नौकरी के अवसर कम हैं.”

हाटी समुदायके प्रतिनिधियों ने केंद्र सरकार को बार-बार अभ्यावेदन दिया. राज्य सरकार ने जनजातीय मामलों के संस्थान, शिमला द्वारा किए गए एक अध्ययन के आधार पर अगस्त 2016 में केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की थीं.

2016 में, तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की अध्यक्षता वाली राज्य सरकार ने रोहड़ू में ट्रांस-गिरी क्षेत्र, डोडरा क्वार को आदिवासी का दर्जा देने के लिए केंद्र में एक मामला चलाया. 2018 में, आदिवासी मामलों के मंत्रालय ने राज्य सरकार को यह कहते हुए वापस लिखा कि हाटी समुदाय के बारे में नृवंशविज्ञान रिपोर्ट में दिए गए विवरण “पर्याप्त” नहीं थे.

सरकार ने राज्य को पत्र लिखकर हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल करने के प्रस्ताव की फिर से जांच करने के लिए लिखा था और आगे सरकार को एक पूर्ण नृवंशविज्ञान अध्ययन करने की सिफारिश की थी.

(Image Credit: Hindustan Times)

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