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छत्तीसगढ़: आदिवासी छात्रों को अंग्रेज़ी सिखाने का तरीक़ा – रैपर बचाओ, भाषा का डर भगाओ

इस पूरे अभ्यास का नतीजा यह है कि पिछले एक दशक में कक्षा 10 में एक भी आदिवासी छात्र अंग्रेजी विषय में फ़ेल नहीं हुआ है. 12वीं कक्षा में 98% से ज़्यादा छात्र इस विषय में पास हुए हैं.

किसी चीज़ को इस्तेमाल करने के बाद, आप उसके रैपर का क्या करते हैं? वो सीधा कूड़े में जाता है, है ना?

लेकिन अगर आप छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासी छात्र हैं, तो हो सकता है कि आप हर रैपर को बचाकर रखते हैं, और उसे स्कूल में अंग्रेज़ी सीखने के लिए इस्तमाल करते हों. जी, यही करते हैं ज़िले के एक एकलव्य स्कूल के बच्चे.

छत्तीसगढ़ और देश भर में संचालित 366 एकलव्य मॉडल रेज़िडेंशियल स्कूलों में से टीचर्स डे पर राष्ट्रपति पुरस्कार पाने वाले इकलौते टीचर प्रमोद कुमार शुक्ला ने बस्तर के आदिवासी बच्चों को अंग्रेज़ी सिखाने का नायाब तरीक़ा निकाला है.

42 साल के प्रमोद कुमार शुक्ला ने गतिविधि-आधारित (Activity-based) पहल से बस्तर के आदिवासी छात्रों में अंग्रेजी की तरफ़ रुचि पैदा की है. वो छात्रों को अंग्रेज़ी में बात करने और भाषा को लेकर उनका संकोच दूर करने के लिए प्रॉडक्ट रैपर्स का इस्तेमाल करते हैं.

शुक्ला ने रेज़िडेंशियल स्कूलों के आदिवासी छात्रों को आश्वस्त किया कि ग़लतियाँ करना बुरा नहीं है. उन्होंने छात्रों का एक ‘इंग्लिश क्लब’ बनाया जिसमें हर हफ़्ते अलग-अलग एक्टिविटी की जाती हैं.

शुक्ला 2011 से 9 से 12 तक के छात्रों को, जो हॉस्टल में रहते हैं, अलग-अलग चीज़ों के पैकेट लाने को कहते हैं. चाहे वो रैपर खाने के सामान के हों, सफ़ाई के, या फिर रोज़मर्रा के इस्तेमाल की चीज़ों के.

शुक्ला ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “मैं हर छात्र को अंग्रेजी में रैपर पर जो लिखा है, उस पर अपनी समझ के साथ शुरू में बोलने की आज़ादी देता हूं. इस अभ्यास से न सिर्फ़ उनकी शब्दावली बनती है, बल्कि अंग्रेजी शब्दों के उच्चारण को भी ठीक किया जाता है. छात्रों को अपने सहपाठियों के साथ चर्चा करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है. इससे उनमें धीरे-धीरे अंग्रेजी के शब्दों में रुचि विकसित हुई है, इस भाषा से जुड़ा हुआ डर और बोलने में झिझक भी दूर हो गए हैं.”

रैपर्स के अलावा, छात्रों को उन विषयों या पात्रों की कहानी सुनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जो उन्हें अच्छे लगते हैं.

इस पूरे अभ्यास का नतीजा यह है कि पिछले एक दशक में कक्षा 10 में एक भी आदिवासी छात्र अंग्रेजी विषय में फ़ेल नहीं हुआ है. 12वीं कक्षा में 98% से ज़्यादा छात्र इस विषय में पास हुए हैं.

2006 से एकलव्य स्कूल से जुड़े रहे शुक्ला को गतिविधि-आधारित, शिक्षा में सूचना संचार प्रौद्योगिकी को अपनाने और ऑनलाइन शिक्षण में इनोवेशन के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार मिला. छत्तीसगढ़ के महासामुंड ज़िले के निवासी शुक्ला ने रायपुर के पंडित रविशंकर यूनिवर्सिटी से पीएचडी की है.

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