HomeAdivasi Dailyआदिवासी युवा अपनी जड़ें खोजने के मिशन पर

आदिवासी युवा अपनी जड़ें खोजने के मिशन पर

बिरसा मुंडा यूथ एंड रिसर्च सेंटर पिछले छह सालों से देश भर के 18 राज्यों में फील्ड-स्तरीय शोध कर रहा है, जिसके बारे में उनका कहना है कि यह खत्म हो गया है.

तेलंगाना में स्वदेशी समुदायों से संबंधित छात्रों का एक ग्रुप अपने मूल का पता लगाने के मिशन पर है. बिरसा मुंडा युवा और अनुसंधान केंद्र के बीस सदस्यों ने 16 से 20 अगस्त तक छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश को कवर करते हुए 3000 किलोमीटर की यात्रा की. उन्होंने गोंडवाना में प्रारंभिक मनुष्यों की उत्पत्ति, मौजूदा कोया और गोंड जनजातियों से उनके संबंध और इस क्षेत्र में अलग अलग जनजातियों के बीच जो समानताएं अभी भी मौजूद हैं उसका उत्तर खोजने कि कोशिश की.

आदिवासी रिसर्च टीम ने किलों, शैल चित्रों के केंद्रों, जनजातीय संग्रहालयों और मंदिरों का दौरा किया साथ ही इतिहासकारों और स्थानीय जनजातियों के साथ बातचीत भी की. उन्होंने मौजूदा साहित्य और स्वदेशी लोककथाओं की तुलना इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए की कि तेलंगाना के गोंड और कोया मूल रूप से कोयथुर जनजाति के वंशज थे, जिनकी जड़ें अमरकंटक में थीं, जहां से नर्मदा नदी मध्य प्रदेश में अनूपपुर जिले के विंध्य रेंज में उत्पन्न हुई थी.

टीम का नेतृत्व करने वाले उस्मानिया विश्वविद्यालय के एक रिसर्च स्कॉलर एम अरुण कुमार के मुताबिक उनके स्वदेशी लोककथाओं में गोंड और कोया की उत्पत्ति के कई सबूत थे. जो उन्हें अमरकंटक तक ले गए, यह बताते हुए कि नौवें कबीले के कोयथुर आदिवासी (गोट्टू) अभी भी शंभू शाक मंदिर के पुजारी थे.

अरुण का दावा है, “तेलंगाना गोंडों के तीसरे से सातवें कुलों का घर है. हमारे शोध से पता चला है कि देशभर में 750 उपनामों के साथ 12 कुल हैं. यहां तक कि भगवान शिव, जिन्हें तेलंगाना में पर्स पेन (Persa Pein), महाराष्ट्र में बड़ादेव, छत्तीसगढ़ में कृपालिंगो और मध्य प्रदेश में शंभू महादेव के रूप में पूजा जाता है, तीसरे कबीले से संबंधित हैं और आदिवासियों द्वारा गोंडवाना के राजा के रूप में माना जाता है.”

छात्रों ने महाराष्ट्र के सतपुड़ा रेंज में ‘ओके राजवंश’ (Ooke dynasty) के किले का दौरा किया, जिसमें सम्मक्का की मां तुल डोकिरी थी. अरुण ने कहा, “तुल डोकिरी पांचवें कुल के थे. महाराष्ट्र के गोंड साहित्य में कहा गया है कि राज्य पर पांचवें वंश के राजा रायबंदनी का शासन था. हम इस निष्कर्ष पर सम्मक्का के ‘पडिगे’ (पवित्र ध्वज) और मेदारम जतारा के दौरान गाए गए डोली लोककथाओं का अध्ययन करके आए हैं,”.

बिरसा मुंडा यूथ एंड रिसर्च सेंटर पिछले छह सालों से देश भर के 18 राज्यों में फील्ड-स्तरीय शोध कर रहा है, जिसके बारे में उनका कहना है कि यह खत्म हो गया है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments