झारखंड के पलामू ज़िले में एक आदिवासी लड़की को समाज की पंचायत ने अपमानित करने का आदेश दिया. इस फरमान के अनुसार लड़की को गंजा कर दिया गया. पंचायत के हाथों अपमानित होने के बाद यह लड़की गांव से गायब थी.
इस घटना के तीन दिन बाद पुलिस लड़की को खोज पाई है. यह घटना पलामू ज़िले के पाटन थाना क्षेत्र के जागोडीह गांव की बताई गई है.
पुलिस का कहना है कि लड़की को फिलहाल इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है. इस मामले में जानकारी देते हुए पुलिस वे बताया है कि इस लड़की ने परिवार द्वारा तय शादी से इंकार कर दिया था.
पुलिस का यह भी कहना है कि शायद इस लड़की ने पहले से ही किसी लड़के से शादी कर रखी थी. इसलिए वह लड़की परिवार द्वारा तय शादी से बचने के लिए अपनी बहन के घर चली गई थी.
यहां से उसके परिवार के लोग उसे 15-20 दिन बाद वापस गांव ले आए थे.
इस मामले में पुलिस ने अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं की है. पुलिस के अनुसार वह उन लोगों की तलाश में है जो इस पूरी वारदात में शामिल थे.
महिलाओं के मामले में विरोधाभासी समाज
आदिवासी समुदायों में अक्सर मुख्यधारा या संगठित धर्म और समाज में रहने वाले समुदायों की तुलना में महिलाओं को सामाजिक आज़ादी कहीं ज़्यादा है. मसलन आदिवासी समुदायों में विवाह की एक से ज्यादा पद्धति मौजूद मिलती हैं.
इन सभी पद्धतियों में स्त्री की सहमति और प्रेम को अहमियत दी जाती है. देश के कई आदिवासी समुदायों नें बिना विवाह के भी लड़का लड़की साथ रह सकते हैं. यहां तक की आदिवासी समुदायों में बिना ब्याह के बच्चा पैदा करना भी अपराध नहीं माना जाता है.
लेकिन वहीं दूसरी तरफ महिलाओं के साथ अत्याचार के मामले में भी आदिवासी समुदाय में अनेक घटनाएं सामने आती हैं. इन घटनाओं में अक्सर पंचायतें महिलाओं को अमानवीय सज़ा सुनाती हैं. अक्सर पंचायतें समुदाय के नियमों को तोड़ने वाली महिलाओं को अपमानित करती है.
इसके अलाव लड़की या महिला के परिवार पर भारी ज़ुर्माना लगाती है.
इस तरह के मामले यूं तो आदिवासी आबादी वाले सभी राज्यों से रिपोर्ट होते रहते हैं, लेकिन ओडिशा और झारखंड में इस तरह के मामले ज़्यादा देखे जाते हैं.
आदिवासी इलाकों में और ख़ासतौर से ओडिशा और झारखंड में औरतों को डायन बता कर उनकी हत्या के मामले भी एक गंभीर मुद्दा है.
इस मामले में ओडिशा पहले और झारखंड दूसरे नंबर पर आता है. अफ़सोस की बात ये है कि डायन बता कर मारने की घटना को रोकने के लिए विशेष कानून बनाए जाने के बाद भी इस तरह की घटनाओं को रोका नहीं जा सका है.
इसका सबसे बड़ा कारण है कि आदिवासी नेतृत्व और राजनीतिक दल समाज के डर से इन कानूनों को सख्ती से लागू ही नहीं करते हैं.