HomeAdivasi Dailyतमिलनाडु के 40,000 आदिवासी परिवारों को नहीं मिली सरकार से कोविड राहत

तमिलनाडु के 40,000 आदिवासी परिवारों को नहीं मिली सरकार से कोविड राहत

तमिलनाडु सरकार द्वारा बांटी गई कोरोना राहत किट जिसमें 4,000 रुपये की आर्थिक सहायता और किराने का सामान है, कई आदिवासी परिवारों तक नहीं पहुंची है. राशन कार्ड न होने की वजह शिक्षा की कमी और ई-गवर्नेंस के नाम पर टेक्नोलॉजी का बढ़ता इस्तेमाल है.

कोविड महामारी के चलते तमिलनाडु के कई आदिवासी परिवार भुखमरी की कगार पर हैं. कोविड लॉकडाउन ने उनकी आजीविका पर बुरा असर डाला है. आसपास के शहरों में छोटे वनोपज बेचकर आजीविका कमाने वाले यह आदिवासी लॉकडाउन में ऐसा नहीं कर पाए.

वैसे तो आदिवासियों के अलावा दूसरे लोगों की आजीविका पर भी लॉकडाउन का असर बुरा ही रहा है, लेकिन आदिवासियों के बारे में खास बात यह है कि उनमें से एक बड़े वर्ग के पास सरकारी राहत उपायों तक पहुंच नहीं है. वजह है राशन कार्ड और आधार कार्ड जैसे ज़रूरी दस्तावेज़ों की कमी.

तमिलनाडु सरकार द्वारा बांटी गई कोरोना राहत किट जिसमें 4,000 रुपये की आर्थिक सहायता और किराने का सामान है, कई आदिवासी परिवारों तक नहीं पहुंची है. राशन कार्ड न होने की वजह शिक्षा की कमी और ई-गवर्नेंस के नाम पर टेक्नोलॉजी का बढ़ता इस्तेमाल है.

तमिलनाडु सरकार 4000 रुपए की आर्थिक सहायता और राशन का सामान कोविड किट में दे रही है (प्रतीकात्मक तस्वीर)

भूमि और वन अधिकारों पर काम करने वाले संगठन एकता परिषद के एक अध्ययन में दावा है कि तमिलनाडु में 40,000 ऐसे आदिवासी परिवार हैं जिनके पास पात्र होने के बावजूद राशन कार्ड नहीं हैं.

संगठन ने राज्य सरकार से इन आदिवासियों को तत्काल राशन कार्ड उपलब्ध कराने की अपील की है.

ई-गवर्नेंस एक बड़ी परेशानी

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार तमिलनाडु में लगभग 7.94 लाख आदिवासी रहते हैं. इनमें से 6.6 लाख लोग जंगलों और वन क्षेत्रों में रहते हैं. आदिवासी समुदायों और बाकी के समाज और राज्य प्रशासन के बीच वैसे भी एक बड़ा फ़ासला है, जो लॉकडाउन के दौरान और बढ़ गया.

वनोपज पर निर्भर आदिवासियों के लिए अप्रैल, मई और जून के महीने सबसे अहम होते हैं. लेकिन 2020 और 2021 दोनों में इन महीनों कड़ा लॉकडाउन था. इन हालत में आदिवासियों के पास आय का दूसरा कोई साधन भी नहीं था.

ऊपर से सरकारी राहत की जिस समय उन्हें सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, उसी समय यह उन्हें नहीं मिली.

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत 100 दिनों के काम के लिए भी यह पात्र नहीं हैं, क्योंकि इनमें से ज़्यादातर के पास आधार कार्ड नहीं है. और यही आधार कार्ड उन्हें COVID-19 का वैक्सीन भी दिला सकता है. वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट दूसरी बड़ी समस्या है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments