तमिलनाडु के कोयंबटूर में स्थित मेल मारुतंगराई गांव में इरूला आदिवासी रहते हैं. यहां के आदिवासी परिवार आज भी पक्के मकान और पीने के लिए साफ पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं.
यहां के आदिवासी मिट्टी के बने एक कमरे के मकान पर रहे रहें हैं और पीने के लिए बोरवेल के पानी का इस्तेमाल करते हैं.
गाँव की हालत इतनी बुरी है कि इसी बोरवेल के पानी के लिए भी जंगली जानवरों के साथ संघंर्ष करना पड़ता है.
10 सालों से यहां रहने वाले 48 इरूला आदिवासियों के परिवार पंचयाती चुनाव हो या फिर अन्य कोई भी चुनाव यहीं मांग करते आए हैं की उन्हें पक्के मकान और पीने के लिए स्वच्छ पानी उपलब्ध करवाया जाए.
यहां पर चुनाव के दौरान उम्मीदवार आते हैं और आदिवासियों को पक्के मकान और स्वच्छ पानी देने का वादा करते हैं. फिर चुनाव जीतने के बाद अपने वादों को भूल जाते हैं.
10 सालों से यहीं दोहराया जा रहा है और चुनाव में किए गए वादे महज़ वादे बनकर ही रह जाते हैं.
दरअसल इरुला आदिवासियों का गांव यहां पर काफी पुराना है. इन आदिवासियों में परंपरा के अनुसार जब परिवार में लोगों की संख्या बढ़ जाती है तो वे जंगल में ज़मीन की पहचान कर नए घर बनाते हैं.
लेकिन मुश्किल ये होती है कि प्रशासन उनको अलग परिवार के तौर पर नहीं पहचानता है.
गांव के लोगों ने बताया कि इस गांव में सभी मकान कम से कम 40 साल पुराने हो चुके हैं. गांव में कुल 48 परिवार हैं.
यहां के सभी परिवार गरीब रेखा के नीचे जीते हैं. ये परिवार दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं या फिर जंगल से लकड़ी बेच कर अपना गुज़ारा करता हैं.
इन आदिवासियों के पास इतने पैसे नहीं है की वे अपने लिए एक मजबूत पक्का मकान बना सके.
इस इलाके में बारिश आदिवासियों के लिए श्राप है क्योंकि बारिश में इनके मिट्टी के कच्चे मकान टूटने लगते हैं और इनका जीवन और भी कठिन हो जाता है.
ज़िला कलेक्टर ने बताया कि गाँव का नाम केंद्रीय स्कीम पीएम- जनमन में जोड़ा गया है और राज्य सराकार की योजना से भी जोड़ा गया है.
उन्होंने कहा कि चुनाव ख़त्म होने के बाद जब आचार संहिता हट जाएगी तो उन्हें पीएम जनमन के तहत पक्के मकान ज़रूर उपलब्ध करा दिये जाएँगे.
इसके साथ ही पीने के लिए साफ पानी का इंतज़ाम भी किया जाएगा.
इरुला आदिवासी कौन हैं
इरुला आदिवासी जंगल से साँप में पकड़ने के लिए जाने जाते हैं. ये आदिवासी साँप पकड़ने के अलावा जंगल से तरह तरह की जड़ी बूटी भी जमा करते हैं.
देश में वन्य जीव को शिकार पर प्रतिबंध लगाने के लिए बने 1972 के कानून के बाद इनकी जीवन शैली बुरी तरह से प्रभावित हुई है.
हांलाकि अब सरकार ने सांप के ज़हर निकालने के लिए उन्हें साँप पकड़ने की अनुमति दी है. लेकिन ज़्यादातर परिवार यह काम छोड़ चुके हैं.