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केरल: 2019 की बाढ़ के बाद से जंगल में फंसे आदिवासी परिवारों की मुश्किलों का कोई अंत नहीं

जब बाढ़ आई थी, तब यह सभी लोग जंगल की तरफ़ भागे थे. तब से वो जंगल के अंदर तिरपाल से बने टेंटों में रह रहे हैं.

केरल के निलम्बूर जंगल की वानियम्पुझा, इरुट्टुकुत्ती, तरिप्पपोटी और कुंबलप्पारा बस्तियों में रहने वाले दर्जनों आदिवासी परिवारों की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रहीं.

2019 में आई बाढ़ के बाद से वो एक जगह फंसे हुए हैं, और उनका जीवन निरंतर डर में बीतता है.

बाढ़ में मुंडेरी में बने दो कंक्रीट पुल बह गए थे, और उसके बाद से ही इलाक़े के आदिवसी चलियार नदी के ऊपर पुल के निर्माण के इंतज़ार में हैं. इस नए पुल के बिना इन आदिवसियों का नदी पार करना नामुमकिन है, इसलिए वह फंसे हैं.

वानियम्पुझा के तीन दर्जन आदिवासी परिवारों के घर दो साल पहले बाढ़ में बर्बाद हो गए थे, लेकिन उनके लिए पक्के घर अभी तक नहीं बनाए गए हैं.

जब बाढ़ आई थी, तब यह सभी लोग जंगल की तरफ़ भागे थे. तब से वो जंगल के अंदर तिरपाल से बने टेंटों में रह रहे हैं.

इस क्षेत्र में जंगली हाथियों का भी प्रकोप है. पिछले दो सालों में इन आदिवासी बस्तियों के आसपास जंगली हाथी के हमलों की कई घटनाएं हुई हैं. कुछ हफ़्ते पहले वानियम्पुझा में एक हाथी के हमले में दो आदिवासी घायल हो गए थे.

रात में हाथी और दूसरे जंगली जानवरों से बचने के लिए यह परिवार पेड़ों के ऊपर सोते हैं.

डर सिर्फ़ रात में ही नहीं है, दिन में बच्चों को अकेले खेलने नहीं दिया जाता क्योंकि यह इलाक़ा सुरक्षित नहीं है.

लेकिन यह आदिवासी अपने घरों को वापस जाने से भी डरते हैं. इनमें से कुछ परिवारों के घर बह गए थे, तो दूसरे कीचड़ से भर गए. यह लोग कहते हैं कि वापस जाना जंगल में टेंटों में रहने से ज़्यादा खतरनाक है.

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