अट्टपाड़ी में तीन नाबालिग आदिवासी लड़कियों का एक व्यक्ति द्वारा कथित तौर पर यौन उत्पीड़न किया गया. यह भी आरोप लगाया गया कि मामले की जांच करने वाली पुलिस ने घटना को छिपाने के लिए संबंधित अधिकारियों के साथ मिलकर काम किया.
पुलिस अधिकारियों का दावा है कि इस मामले को गढ़ा गया था और उनके पास अपराधी के खिलाफ जाने के लिए कोई सबूत नहीं है. लेकिन कार्यकर्ता बताते हैं कि राज्य सरकार के इस दावे के बावजूद कि अट्टपाड़ी में आदिवासियों के कल्याण को सुनिश्चित करने के उपाय पूरे जोरों पर हैं, इन लड़कियों को प्रशासन द्वारा न्याय से वंचित रखा गया है.
उनका कहना है कि पुलिस ने न्याय देने के बजाय पीड़ितों के लिए आवाज उठाने वाले लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है.
औपचारिक शिकायत करने के बावजूद पलक्कड़ जिला बाल संरक्षण समिति, जो बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने वाली थी, ने पीड़ितों के घरों का दौरा भी नहीं किया और न ही बयान दर्ज किए.
यह घटना अट्टपाड़ी में आदिवासियों के प्रति विभिन्न सरकारी प्रणालियों के वास्तविक रवैये और उनके सामने आने वाली समस्याओं को उजागर करती है.
थायकुलसंघम के अध्यक्ष मारुति ने कहा, “यहां एक परिवार की दो बेटियों (17 और 14 वर्ष की आयु) का एक व्यक्ति द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया, जो वर्षों पहले एक व्यवसाय शुरू करने के लिए अट्टपाड़ी चले गए थे. बाद में उनके चाचा की बेटी (16 वर्ष की आयु) का भी यौन उत्पीड़न किया गया. इसका पता तब चला जब लड़कियों में से एक ने अपनी सहपाठी को इसके बारे में बताया. इसकी जानकारी होने पर उनके माता-पिता ने बाल संरक्षण समिति और बाद में पुलिस से संपर्क किया. शिकायतों को दर्ज हुए लगभग एक महीना हो चुका है, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. पुलिस ने बाद में हमारे खिलाफ मामला दर्ज किया.”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने पीड़ितों में से एक का ब्रेनवॉश किया और मामले को छिपाने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि हम घटना के बाद उससे मिल भी नहीं पाए क्योंकि वह एक आदिवासी छात्रावास में रहती है. कथित तौर पर उसने अब आरोपी द्वारा किसी भी गलत काम करने से इनकार किया. उसके बयान के आधार पर पुलिस ने इसे मनगढ़ंत मामला बताया.
हालांकि, अन्य लड़कियों ने मामले को दबाने की कोशिशों के बावजूद कड़ा रुख अपनाया. लेकिन पुलिस उनकी बातों पर ध्यान देने को तैयार नहीं थी.
दो बच्चियों के पिता की सालों पहले मौत हो गई थी और मां दूसरे जिले की एक निजी फर्म में काम करती थी. मारुति ने कहा, “आरोपी अपने घर के पास एक व्यवसाय चला रहे थे और अक्सर उनकी आर्थिक मदद करते थे. आरोपी उसे अपनी कार में हॉस्टल छोड़ देता था. यह उसके माध्यम से था, आरोपी अन्य लड़कियों के संपर्क में था.”
लड़कियों में से एक ने मातृभूमि डॉट कॉम को बताया कि उनके भाई को आरोपी ने ड्रग्स दिया और उसे गुलाम की तरह रखा. उन्हें बाल श्रम करने के लिए मजबूर किया गया और जिससे उनकी शिक्षा बाधित हो गई. आरोप है कि पुलिस आरोपी का समर्थन करती है क्योंकि वह प्रभावशाली और अमीर है.
लड़कियों को न्याय दिलाने में पुलिस और संबंधित अधिकारियों के ढुलमुल रवैये को देखते हुए आदिवासी लोगों के कल्याण के लिए काम करने वाली संस्था थायकुलसंघम ने थाने तक विरोध मार्च निकाला. हालांकि पुलिस ने आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज करने की बजाय थायकुलसंघम के सदस्यों के खिलाफ थाने का कामकाज बाधित करने के आरोप में मामला दर्ज कर लिया.
अगली थाने में दर्ज शिकायत की जांच उपाधीक्षक मुरलीधरन ने की. जब मातृभूमि डॉट कॉम ने मुरलीधरन से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा, “आरोपी के खिलाफ जमीन से बेदखल करने के लिए शिकायत की गई थी. जिसे उसने एक अन्य आदिवासी महिला के माध्यम से लड़की के दादा से लीज पर लिया था. पांच डॉक्टरों ने बच्ची की जांच की और उसकी काउंसलिंग की गई. जैसा कि आरोप लगाया गया है ऐसा कोई यौन हमला नहीं हुआ.”
उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले को जल्द ही बंद कर दिया जाएगा. अन्य लड़कियों की शिकायत के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि हमें आरोपी के खिलाफ ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है.
जिला बाल संरक्षण अधिकारी सुभा से संपर्क करने पर वह टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं हो सकीं. हालांकि कार्यालय में एक अन्य अधिकारी प्रभुदास ने मातृभूमि डॉट कॉम को बताया कि, हमने पुलिस को आवश्यक रिपोर्ट दे दी है. इस मामले के अधिक विवरण का खुलासा नहीं किया जा सकता है.
(यह लेख Mathrubhumi.com में छपा है)