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पानी बना स्कूल से ज्यादा जरूरी, दो साल में 15 आदिवासी लड़कियों ने छोड़ी पढ़ाई

ग्रामीणों के अनुसार, महिलाओं, खासकर लड़कियों को, अपने और अपने मवेशियों के लिए पानी इकट्ठा करने के लिए हर दिन घने जंगल से होकर गुजरना पड़ता है. कई बार तो उन्हें साफ पानी मिलता भी नहीं है, और गंदे पानी को पीने लायक बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है.

पीने के पानी की भारी किल्लत के बीच जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले के एक सुदूर गांव में पिछले दो साल में एक दर्जन से ज्यादा आदिवासी लड़कियों ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी है.

चेनारा गांव भदरवाह उप-मंडल में मिसराता पंचायत के तहत आता है और डोडा जिला मुख्यालय से 57 किलोमीटर दूर है. यहां ज्यादातर गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) गुर्जर परिवार रहते हैं.

पिछले दो सालों में बारिश की कमी ने यहां के प्राकृतिक जल संसाधनों को सुखा दिया है, और इलाके में गंभीर जल संकट पैदा किया है.

पढ़ाई छोड़ने वाली लड़कियों ने दावा किया कि पानी न मिलने की वजह से ही उन्हें ऐसा करना पड़ा. अब जब खबर सामने आई है तो एक अधिकारी ने कहा है कि गांव को जल जीवन मिशन (JJM) के तहत जल्द ही कवर किया जाएगा.

हालांकि अधिकारी ने माना कि परियोजना को लागू करने और ग्रामीणों को पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने में कुछ समय लगेगा.

ग्रामीणों के अनुसार, महिलाओं, खासकर लड़कियों को, अपने और अपने मवेशियों के लिए पानी इकट्ठा करने के लिए हर दिन घने जंगल से होकर गुजरना पड़ता है. कई बार तो उन्हें साफ पानी मिलता भी नहीं है, और गंदे पानी को पीने लायक बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है.

18 साल की रुबीना बानो ने Daily Excelsior को बताया, “मुझे पढ़ाई का शौक है और बड़ी मुश्किल से मैंने 12वीं तक पढ़ाई की. मैंने पिछले साल अपने परिवार की खातिर पढ़ाई छोड़ दी थी क्योंकि मुझे हर दिन पानी इकट्ठा करना पड़ता था और मुझे पढ़ाई के लिए समय नहीं मिल रहा था.”

बानो ने यह भी कहा कि उनके जैसी लड़कियों के पास पढ़ाई छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि उन्हें दूर-दराज के इलाकों से पानी खोजने और लाने में हर दिन घंटों लग जाते हैं.

इस बात को 16 साल की फातिमा ने दोहराया, और कहा कि पढ़ाई के लिए समय नहीं है, और वो आठवीं कक्षा की परीक्षा में दो बार फेल हो गई.

“मेरे खराब प्रदर्शन की बड़ी वजह यह है कि मैं हर दिन पढ़ाई के बजाय पानी लाने पर घंटों लगा रही थी. मैं दोबारा परीक्षा नहीं देना चाहती क्योंकि मुझे नहीं लगता कि मैं इस बार भी बेहतर कर पाऊंगी.”

एक दिन के लिए पानी की आपूर्ति का मतलब है घर से झरनों तक कई चक्कर.

एक स्थानीय निवासी अब्दुल राशिद गुर्जर का कहना है कि घरों में पाइप से पानी की आपूर्ति न होने पर, इसे लाने का बोझ महिलाओं और बच्चों, खासकर लड़कियों पर पड़ता है.

गुज्जर ने कहा, “ऐसी परिस्थिति ने लड़कियों की शिक्षा पर गंभीर असर डाला है क्योंकि उनमें से कम से कम 15 ने पिछले दो सालों में अपनी पढ़ाई छोड़ दी है.”

गुर्जर की बेटी नाजिया, जो पांचवीं कक्षा में थी, ने हाल ही में स्कूल छोड़ दिया. हालात इतने बुरे हैं कि लड़कियां रोजाना लगभग आठ से 10 घंटे पानी लाने में बिताती हैं.

इलाके के लोग कहते हैं कि वो चाहते तो हैं कि लड़कियां स्कूल जाएं, लेकिन पीने योग्य पानी तक पहुंच सर्वोच्च प्राथमिकता है.

डोडा के जल शक्ति विभाग के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर हरजीत सिंह ने कहा कि फील्ड स्टाफ की रिपोर्ट के अनुसार, गांव में पाइप से पानी की आपूर्ति नहीं है.

अब एक विस्तृत परियोजना बनाने के लिए, एक टीम वहां भेजी जाएगी और जेजेएम के तहत गांव को पीने का पानी उपलब्ध कराने की कोशिश कर जाएगी.

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